टेरी वॉल्श, भारतीय हॉकी टीम के पांचवें विदेशी कोच हैं। उनके इस्तीफ़े की ख़बर के साथ एक बार फिर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
ऐसी क्या बात है कि कोई भी विदेशी कोच भारतीय हॉकी के साथ तालमेल नहीं बैठा पाता।
एशियाड में कामयाबी की तस्वीर हॉकी फ़ैन्स के ज़ेहन में इतनी ताज़ा है कि दिवाली से पहले कोच टेरी वाल्श के इस्तीफ़े की ख़बर फ़ैन्स के लिए चौंकाने वाली थी। जिस ऑस्ट्रेलियाई कोच की अगुआई में भारत ने ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में रजत और फिर एशियाड में 16 साल बाद स्वर्ण पदक जीता, उस कोच ने
इस्तीफ़े का ऐलान कर दिया।
जानकारों के मुताबिक मसला टेरी वॉल्श के वेतन और साई के साथ क़रार को लेकर था। टेरी वाल्श के मसले पर खेल मंत्री ने फ़ौरन साई से 24 घंटे के अंदर रिपोर्ट मांगी। साई ने ये मसला आनन फ़ानन में सुलझा भी लिया, लेकिन हॉकी के विदेशी हॉकी कोच और भारतीय खेल सिस्टम में तकरार का मसला नया नहीं है।
क़रीब दस साल पहले जर्मनी के गेरार्ड राक़ (वर्ष 2004, एथेंस ओलिंपिक्स से ठीक पहले और जनवरी 2005 तक रहे) भारतीय हॉकी टीम के पहले विदेशी कोच बने जिन्हें क़रीब लाख रुपया महीना तनख्वाह दी जाती थी। लेकिन, एथेंस ओलिंपिक्स में भारत सातवें नंबर पर रहा और गेरार्ड राक़ को थोड़े दिनों बाद हॉकी संघ का साथ छोड़ना पड़ा। राक़ ने जाते−जाते भारतीय हॉकी संघ को लेकर खूब शिकायतें कीं।
क़रीब साढ़े चार लाख रुपये की तनख्वाह वाले मशहूर ऑस्ट्रेलियाई कोच रिक चार्ल्सवर्थ (2007-08 में करीब सात महीने का कार्यकाल) भी नाराज़ होकर ही भारत से गए।
क़रीब साढ़े तीन लाख रुपये लेने वाले स्पेन के होसे ब्रासा (मई 2009- दिसंबर 2010) ने भारतीय हॉकी को संवारने की कोशिश की। लेकिन, ब्रासा के कार्यकाल के दौरान खिलाड़ी कैंप के दौरान ही स्ट्राइक पर चले गए।
ब्रासा इस मसले पर खिलाड़ियों के साथ थे, लेकिन बाद में उनकी न साई से बनी और न ही हॉकी इंडिया से। आख़िरकार
उन्हें भी भारतीय हॉकी का साथ छोड़ना पड़ा। लेकिन उनके योगदान को हॉकी खिलाड़ी आज भी खूब सराहते हैं।
क़रीब आठ लाख रुपये कमाने वाले ऑस्ट्रेलियाई कोच माइकल नॉब्स (जून 2011- जुलाई 2013) ने भारतीय हॉकी को आगे ले जाने की उम्मीद तो दिखाई, लेकिन वह भी लंबे समय तक भारतीय हॉकी के साथ नहीं रह सके।
क़रीब बारह लाख रुपये की तनख्वाह वाले ऑस्ट्रेलियाई कोच टेरी वॉल्श (अक्टूबर 2013 से वर्तमान समय तक) ने भारतीय हॉकी को बड़ी कामयाबी दिलाई है। उनका मसला फ़िलहाल सुलझ भी गया हो, लेकिन भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई और हॉकी इंडिया की ख़ींचतान के बीच वह भारतीय हॉकी का साथ कितना निभा सकेंगे और भारतीय हॉकी को कितना फ़ायदा पहुंचा पाएंगे ये बड़ा सवाल है।
This Article is From Oct 22, 2014
भारतीय हॉकी : क्यों नहीं संभलते विदेशी हॉकी कोच?
Vimal Mohan, Rajeev Mishra
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Updated:नवंबर 19, 2014 16:12 pm IST
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Published On अक्टूबर 22, 2014 18:50 pm IST
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Last Updated On नवंबर 19, 2014 16:12 pm IST
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