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This Article is From Mar 25, 2016

भारत-पाकिस्तान टी-20 पर खास : अधूरी ख्वाहिश के साथ लौटे लाला

Sanjay Kishore
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 25, 2016 19:15 pm IST
    • Published On मार्च 25, 2016 19:07 pm IST
    • Last Updated On मार्च 25, 2016 19:15 pm IST
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले।


कुछ बाकी रह गए अरमानों के साथ भारत आए थे शाहिद "लाला" आफ़रीदी। दिल जरूर जीत लिया लेकिन तोहफे में हिंदुस्तान से उन्हें हार ही मिलनी थी। उनकी टीम को आईसीसी वर्ल्ड T20 के सुपर-10 स्टेज में ही बोरिया बिस्तर बांधना पड़ा। भारत में आने के पहले सुरक्षा मांग रही टीम को देश लौटने पर सुरक्षा की जरूरत न पड़ जाए। 20 साल तक दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले 36 साल के शाहिद आफ़रीदी को यह कहते हुए विदा न लेना पड़े...

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।


बहरहाल हम याद कर रहे थे 2006 के भारत के पाकिस्तान दौरे की। पहले भाग में हमने लाहौर की बात की और दूसरे में नुसरत फतेह अली खान के शहर फैसलाबाद और कराची के अनुभव साझा किए। लेख के आखिरी भाग में बातें पेशावर रावलपिंडी और मुल्तान की साथ ही दूसरी बार जब लाहौर और कराची गए तो क्या देखा।

पेशावर : लाला के शहर में कपूर और खान के खानदानों की जड़ें
टेस्ट के बाद वनडे सीरीज़ की बारी थी। पहला मैच पेशावर में खेला गया। तब यह शहर उतना खतरनाक नहीं था। टीम होटल में सुरक्षा के मामूली इंतज़ाम थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि होटल की लॉबी में पठानी सूट पहने क्रिकेट प्रेमियों की भीड़ लग गई थी। खिलाड़ी भी आराम से अपने पठान प्रशंसकों से मिल रहे थे। साल 2009 में टीम होटल को विस्फोट में उड़ा दिया गया। अब तो अमूमन पेशावर में हर हफ़्ते धमाके हो रहे हैं। आज पेशावर शायद पाकिस्तान का सबसे खतरनाक शहर बन गया है। इसकी वज़ह भी है। दरअसल पेशावर शहर खैबर सुरंग के पूर्व हिस्से में बसा हुआ है और अफगानिस्तान की सीमा से सटा हुआ है। पाकिस्तान के कप्तान शाहिद आफ़रीदी पेशावर से ही आते हैं। हमारे कुछ पत्रकार मित्र चेतावनी के बावजूद चुपके से अफगानिस्तान बॉर्डर पर घूम आए। हमने बॉर्डर जाने की बजाए पेशावर की गलियों में अतीत तलाशने की कोशिश की।

इतिहास पढ़ें तो यह साफ हो जाता है कि भारत की सरजमीं पर ज्यादातर हमलावर और व्यापारी पेशावर के ही रास्ते आए। लेकिन यह जानकर शायद आपको हैरानी हो कि बॉलीवुड के कई बड़े सितारों की जड़ें भी यहीं से जुड़ती है। अफगानिस्तान की सीमा के पास बसे इस शहर में जब हम पहुंचे तो इस शहर के कई राजों से रूबरू हुए। शाहरुख खान के हाथों से चाय पीना भले सिर्फ फिल्मों में ही मुमकिन हो, लेकिन पेशावर में उनके चचेरे भाई मसूद अहमद ने हमारी खूब मेहमानवाज़ी की। हम बॉलीवुड के बादशाह के पुश्तैनी मकान को देखने पहुंचे। हमें लगा ही नहीं कि हम मुंबई से हजारों मील दूर आए हैं। और जब बात से बात निकली तो पुरानी यादों तक जा पहुंची। शाहरुख का जिक्र यहां के बच्चों में भी वैसा ही उत्साह भर देता है, जैसा कि हिन्दुस्तान के किसी कोने में। लोगों का जोश देखकर समझना मुश्किल नहीं था कि बॉलीवुड यहां लोगों की रग-रग में बहता है। किस्सा ख्वानी बाजार की तंग गलियों की एक कहानी को दूसरी से जोड़ती हैं। कनिष्क शासन के समय व्यापारी पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार आया करते थे। रात में सराय में ठहरते और कहवा पीते हुए कहानियां सुनाते। इसी कारण इसका नाम किस्सा ख्वानी बाजार पड़ा।

बॉलीवुड से इस इलाके का रिश्ता काफी पुराना है। थोड़ी ही दूर चलने पर आती है वह हवेली, जहां भारत के कपूर खानदान की जड़ें हैं। इसे देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बॉलीवुड के सबसे बड़े शोमैन के परिवार की यहां उस जमाने में भी क्या धाक रही होगी। यही वजह है कि कपूर खानदान आज भी इस घर को लेकर भावुक हो उठता है। यहां हमारी मुलाकात हुई इफ्तिखारुउद्दीन से जो पृथ्वीराज कपूर की हवेली के पास ही में रहते हैं। पड़ोसी इफ्तिखारुउद्दीन ने बताया कि कैसे ऋषि कपूर यहां आकर रो पड़े थे। लेकिन इस मिट्टी में सिर्फ कपूर खानदान या शाहरुख की ही जड़ें नहीं, बल्कि दिलीप कुमार, अमजद खान और अनिल कपूर जैसी हस्तियों का भी इतिहास समाया है। शायद थोड़ी और तलाश से जाने कितने रिश्ते और निकल आते।

अब लौटते हैं क्रिकेट के मैदान पर। मैच के पहले दोनों टीमें अभ्यास कर रही थीं यहां भी सुरक्षा की खास व्यवस्था नहीं थी। कोई भी मैदान पर घुस जाता था। इन सबके बीच टीमें अभ्यास भी कर रहीं थी और ऑटोग्राफ भी दे रहीं थीं। शाम को पास की मस्जिद से अजान की आवाज़ आई। एक पठान के प्यारे बच्चे ने हमारी एक महिला सहयोगी से कहा-"बीबी सर पर दुपट्टा डालो, वरना जलजला आ जाएगा। नमाज शुरू हो गई है।''

फ़ैसलाबाद वनडे में भारत ने पहले खेलते हुए 328 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। सचिन तेंदुलकर ने 100 रनों की शानदार पारी खेली जबकि एमएस धोनी ने 68 रन बनाए। लेकिन अफसोस कि पाकिस्तान से डकवर्थ लुइस नियम से 7 रन से हार गया। निराश नहीं हों, सीरीज़ में यह भारत की आखिरी हार थी।

रावलपिंडी, लाहौर, मुल्तान और कराची
रावलपिंडी और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद ट्विन सिटीज़ हैं, दिल्ली-नोएडा या दिल्ली-गुड़गांव की तरह। रावलपिंडी पाकिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर है। रावलपिंडी के पास ही है मारी हिल स्टेशन। यह इस्लामाबाद से 60 किलोमीटर दूर है। सन 1864 तक यह ब्रिटिश इंडिया के पंजाब प्रोविंस की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। इस्लामाबाद और रावलपिंडी के लोगों का यह पसंदीदा 'वीकेंट गेटवे' है। क्रिकेट से समय निकालकर हम भी वहां गए। यहां आकर आप हिमालय के पीर पांजाल रेंज की खूबसूरती में डूब जाते हैं।

रावलपिंडी वनडे में भारत ने 7 विकेट से शानदार जीत दर्ज की। वीरेंद्र सहवाग ने 67, सचिन तेंदुलकर ने 42, राहुल द्रविड़ ने 56 और युवराज सिंह ने नाबाद 82 रनों की पारी खेली।

इस बीच मेरे साथ आए भारतीय पत्रकारों का वीज़ा खत्म हो रहा था। हमें एक महीने का ही वीज़ा मिला था। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने हमारे पासपोर्ट लिए और दो दिनों में ही वीज़ा के साथ हमारा पासपोर्ट वापस मिल गया। हमें दूतावास जाने की जरुरत भी नहीं पड़ी।

रावलपिंडी के बाद तीसरे वनडे के लिए हम दुबारा लाहौर आए। इस्लामाबाद से हम सड़क के रास्ते लाहौर जा रहे थे। पाकिस्तान में इतनी खूबसूरत सड़क देखकर हैरान थे। दरअसल वह पाकिस्तान मोटरवे नेटवर्क की एम-2 हाइवे थी। 367 किलोमीटर लंबे इस हाइवे को वर्ल्ड बैंक की मदद से बनाया गया है। अमूमन तब पाकिस्तान के शहरों की सड़कें बहुत अच्छी नहीं थी। शहर की सड़कों पर ट्रैफिक का बुरा हाल होता है। पाकिस्तान में ट्रक और बस की सजावट किसी कलाकृति से कम नहीं। ट्रक ड्राइवर बहुत समय तक घरों से दूर रहते हैं। इसलिए वे अपने ट्रक को घर की तरह सजाते हैं ताकि घर की याद बनी रहे। लेकिन उस हाइवे पर गजब का अनुशासन था। रात में भी हमारा ड्राइवर सिर्फ ओवरटेक करने के लिए सबसे दाहिनी लेन में जाता था। ओवरटेक करते ही वापस आ जाता था। मैंने ड्राइवर से कहा रात को कौन देख रहा है। उसने कहा हर जगह कैमरे लगे हुए हैं।

लाहौर में इमरान खान ने भारतीय क्रिकेट टीम को अपनी मां के नाम पर बने शौकत खानम कैंसर हॉस्पिटल दिखाने के लिए बुलाया। कैंसर से पीड़ित छोटे-छोटे बच्चे भारतीय खिलाड़ियों से मिलकर खूब खुश हुए। अब तो पेशावर में भी इस हॉस्पिटल की शाखा खुल गई है और कराची में भी खोलने की तैयारी है। लाहौर में एक रात हम एक पत्रकार दोस्त के घर उनसे मिलने गए। वहां गौतम गंभीर और कुछ और खिलाड़ियों से मुलाकात हुई। हमने साथ खाना खाया। ढेर सारी बातें हुईं।

लाहौर, मुल्तान और कराची वनडे में भारत ने 5 वनडे की सीरीज़ 4-1 से जीत ली। युवराज सिंह मैन ऑफ द सीरीज़ रहे। टेस्ट सीरीज़ 0-1 से गंवाना किसी को याद नहीं रहा।

कराची से हम दिल्ली रवाना हुए। दो महीने बाद पाकिस्तान से लौटे। ढेर सारी यादें साथ थी। ज्यादातर अनुभव अच्छे थे। यादें मीठी थीं, कई नए दोस्त मिले, रिश्ते बने। जाहिर था दोनों देशों के आम लोग एक-दूसरे को नापसंद नहीं करते। हमारी जनता और उनकी आवाम चाहते हैं दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ते। लेकिन फिर वही हुआ। इसके पहले कि क्रिकेट के जरिए सौहार्द और दोस्ती की नई इबारद लिखी जाती 2008 में 26/11 हो गया। मुंबई पर फिदाइन हमले ने क्रिकेट डिप्लोमेसी को ताबूत में डाल दिया।

संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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