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कैमरे की नजर से भारत की विराट आध्यात्मिक परंपरा 'महाकुंभ' के कुछ 'रंग'

Poonam Arora
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 10, 2025 18:01 pm IST
    • Published On जून 10, 2025 17:34 pm IST
    • Last Updated On जून 10, 2025 18:01 pm IST
कैमरे की नजर से भारत की विराट आध्यात्मिक परंपरा 'महाकुंभ' के कुछ 'रंग'

हाल ही में दिल्ली के इंडिया हैबीटाट सेंटर में आयोजित एक फोटो प्रदर्शनी ने ध्यान खींचा, जिसका थीम था- महाकुंभ: एक संघर्षपूर्ण यात्रा. ये तस्वीरें महाकुंभ से जुड़ी हैं. इन्हें अपने कैमरे से उतारा है नितिन गुप्ता ने. पहली ही नजर में ये तस्वीरें महाकुंभ के कुछ अनचीन्हें दृश्य हमारे सामने ले आती हैं. फोटोग्राफर ने अपने कैमरे द्वारा केवल दृश्य नहीं पकड़े बल्कि उन दृश्यों की मार्मिकता के अनुभव को भी जिया है. कुछ ऐसा ही अनुभव इस प्रदर्शनी को देखने के बाद दर्शकों को भी होता है, जहां कैमरे की आंख से झरते हैं भारत की सबसे विराट आध्यात्मिक परंपरा के असंख्य रंग, भाव और अर्थ. यह प्रदर्शनी केवल एक दृश्यावलोकन नहीं है, बल्कि एक साक्षात्कार है- श्रद्धा, जीवन, समय और संघर्षपूर्ण यात्रा का. 

महाकुंभ यानी समर्पण और धैर्य की कथा

महाकुंभ, यानी आस्था और विश्वास का ठहराव. भारतीय सांस्कृतिक चेतना का वह महासागर जिसमें विविध आस्थाएं, परंपराएं और जीवन-दर्शन एक साथ प्रवाहित होते हैं. यह वह स्थल है जहां समय रुकता नहीं, पर ठहरता ज़रूर है, क्षणभर के लिए, ताकि व्यक्ति अपने भीतर झांक सके. अपनी यात्रा का साक्षी बन सके. नितिन गुप्ता ने इस ठहराव और गति के द्वंद्व को अपनी फोटोग्राफी में अनूठे ढंग से आत्मसात किया है.

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फोटोग्राफर नितिन गुप्ता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह दृश्य को केवल 'दिखाते' नहीं, बल्कि उसे 'प्रस्तुत' करते हैं.

प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों में कई ऐसे चित्र हैं जो महाकुंभ की भीतरी लय को पकड़ते हैं, उसके धैर्य और अधैर्य में समाई चुप्पी के संकेतों को चिन्हित करते हैं. तस्वीरों में उतारे गए चेहरों पर शांति है, आंखों में प्रतीक्षा और देह में संकल्प. ये तस्वीर न केवल महाकुंभ के यात्रियों को दिखाती है, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता को भी उजागर करती है कि आस्था भी तैयारी चाहती है, समर्पण और धैर्य के साथ.  

कैमरे की आंख और केंद्रीय थीम

नितिन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह दृश्य को केवल 'दिखाते' नहीं, बल्कि उसे 'प्रस्तुत' करते हैं. उनकी तस्वीरों में हम महाकुंभ से जुड़ी आस्थाओं को लोगों की यात्रा में, उनकी प्रतीक्षा और थकान में धीमे बुदबुदाते देख सकते हैं, जैसे यह दो संसारों का मिलन है. कुंभ की यह द्वैदता नितिन की फोटोग्राफी की केंद्रीय थीम बन जाती है.

एक बेहद प्रभावशाली चित्र में एक गाय, जो ठीक नदी के सामने है, उसे देखकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के मन में आश्चर्य और श्रद्धा मिश्रित भाव उभर सकते हैं. उसके पीछे एक स्त्री गंगा की ओर हाथ जोड़े खड़ी हैं. यह एक अद्भुत दृश्य है जिसे शब्दों में बांध पाना कठिन है. यह चित्र उस 'आम' श्रद्धालु को केंद्र में लाता है जो कुंभ का असली श्रद्धालु है- कोई धर्मगुरु नहीं, कोई कैमरा-फ्रेंडली साधु नहीं, बल्कि ऐसा श्रद्धालु है जो आस्था के सहारे अपने भीतर के संसार में डुबकी लगाता है.  

प्रदर्शनी में प्रदर्शित सभी तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाइट हैं. रंगों की अनुपस्थिति यहां संवेदना को और अधिक तीव्र कर देती है.

प्रदर्शनी में प्रदर्शित सभी तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाइट हैं. रंगों की अनुपस्थिति यहां संवेदना को और अधिक तीव्र कर देती है.

तकनीक और दृष्टिकोण: सौंदर्य और संवेदना का संगम

नितिन गुप्ता की फोटोग्राफी में तकनीक भावना पर भारी पड़ती नहीं दिखाई देती. उनके छाया चित्रों में रोशनी और फ्रेमिंग का ऐसा संतुलन है जो दृश्य को अर्थपूर्ण बनाता है. एक तस्वीर में तीन स्त्रियां हैं जो आस्था, परंपरा और गरिमा की एक त्रयी रच रही हैं- एक तरह का त्रिकालदर्शी अनुभव जिसमें दर्शक खुद को भीगता हुआ महसूस करता है. इस प्रदर्शनी में तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाइट हैं. रंगों की अनुपस्थिति यहां संवेदना को और अधिक तीव्र कर देती है. जैसे-जैसे दर्शक एक चित्र से दूसरे की ओर बढ़ता है, उसे लगता है मानो वह खुद भी उस आस्था-यात्रा का हिस्सा बन गया हो.

महाकुंभ: संवाद से साक्षात्कार तक

इस प्रदर्शनी की एक और बड़ी विशेषता यह है कि यह केवल तस्वीरों का संकलन नहीं, बल्कि एक सूक्ष्म मानसिक-सामाजिक-धार्मिक संवाद भी है जो दृश्यों में समाने और आत्मसंवाद की ओर प्रेरित करता है. आज के डिजिटल युग में, जहां आस्था और आडंबर के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है, नितिन गुप्ता की यह प्रदर्शनी कुंभ को एक नए दृष्टिकोण से पेश करती है. यह न तो इसका अतिशयोक्तिपूर्ण महिमामंडन करती है, न ही उसे केवल एक भीड़भाड़ वाला आयोजन बताती है. यह प्रदर्शनी कुंभ को उसकी विविधताओं, विरोधाभासों और गहराइयों के साथ देखने का आमंत्रण देती है. इन चित्रों के माध्यम से यह भी स्पष्ट होता है कि भारतीय आस्था-परंपरा कोई एकरूप शिला नहीं, बल्कि एक बहुरूपी जलधारा है.

महाकुंभ भारतीय सांस्कृतिक चेतना का वह महासागर है, जिसमें विविध आस्थाएं, परंपराएं और जीवन-दर्शन एक साथ प्रवाहित होते हैं.

महाकुंभ भारतीय सांस्कृतिक चेतना का वह महासागर है, जिसमें विविध आस्थाएं, परंपराएं और जीवन-दर्शन एक साथ प्रवाहित होते हैं.

दृश्य जो स्मृति बन जाते हैं

नितिन गुप्ता की यह फोटो प्रदर्शनी दर्शकों को केवल 'देखने' का अवसर नहीं देती, यह 'महसूस करने', 'समझने' और कहीं न कहीं 'बदलने' का अवसर भी प्रदान करती है. उनके चित्र किसी वृत्तांत की तरह नहीं चलते, बल्कि वे एक प्रतीकात्मक भाषा में बात करते हैं, जहां हर फ्रेम एक कथा है और हर चेहरा एक दर्पण है. महाकुंभ एक आस्था का पर्व है, और नितिन की यह प्रदर्शनी उस पर्व की छाया चित्रमाला है. एक ऐसी माला, जिसमें हर मोती किसी न किसी अनुभव, पीड़ा, प्रश्न या उत्तर का प्रतिनिधि है. यह प्रदर्शनी केवल कला-प्रेमियों के लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए है जो जीवन के गहरे प्रश्नों से जूझते हैं और कभी-कभी उत्तर ढूंढने मां गंगा के किनारे चले आते हैं.  

पूनम अरोड़ा 'कामनाहीन पत्ता' और 'नीला आईना' की लेखिका हैं. उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार, फिक्की यंग अचीवर, और सनातन संगीत संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. संप्रति - पूनम NDTV इंडिया में कार्यरत हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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