2001 से 2015 के बीच देश में हर दिन छह लोगों ने बेरोजगारी के कारण अपनी जान दी. यदि इसमें गरीबी के कारण को और शामिल कर लें तो 13 लोगों ने हर दिन खुद अपनी मौत को गले लगाया. भयावह संख्याओं की इस पृष्ठभूमि को जेहन में रखते हुए देखिए कि अब बजाए नई नौकरियां पैदा करने के कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाई जा रही है. मध्यप्रदेश देश में ऐेसा पहला राज्य बन गया है, जहां कि रिटायरमेंट की उम्र को 60 से 62 साल कर दिया गया. देश में अब तक डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र को 65 साल तक जरूर बढ़ाया गया है, क्योंकि देश में जरूरत के मुताबिक चिकित्सक पैदा नहीं हो रहे, जो पैदा हो रहे हैं वह या तो गैर सरकारी प्रैक्टिस में चल जा रहे हैं, या फिर विदेश, उनके पास नौकरियों के दसियों विकल्प हैं, यह एक अलग स्वतंत्र चर्चा का विषय है.
हर दिन चुनावी तैयारी में दिख रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों यह घोषणा की और अगले दिन ही इसका आदेश भी जारी कर दिया गया, मामला सरकारी कर्मचारियों का था, इसकी फाइल चौगुनी गति से दौड़ पड़ी. अलबत्ता किसानों के लिए समर्थन मूल्य के साथ प्रोत्साहन राशि कब से दी जाएगी, इसका पता तीन महीने लग सका. शिवराज के इस फैसले से सरकारी कर्मचारियों के वारे-न्यारे हो गए. उन्होंने प्रसन्नता का इजहार किया. ऐसे ही एक मामले में जब तमिलनाडु सरकार ने अपने बजट में सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का प्रावधान किया था तो वहां के कर्मचारी संघ ने सरकार से अपील की कि उम्र नहीं बढ़ायी जानी चाहिए, क्योंकि इससे प्रशासन के कामकाज की गति पर असर पड़ेगा.
मध्यप्रदेश के कर्मचारियों ने ऐसी साफगोई नहीं दिखाई, सेवानिवृत्त होने वाले 15 हजार कर्मचारियों के चेहरों पर मुस्कान तैर गई, लेकिन नौकरी की उम्मीद में बैठे हजारों बेरोजगार की उम्मीदों पर पानी फिर गया. जब सरकार को यह महसूस हुआ तो उसने आनन—फानन में एक लाख नौकरी दिए जाने का समाचार अखबारों में छपवाया.
जिस दिन यह ब्लॉग लिखा गया उसी दिन के अखबार में दो भयावह खबरें थीं. इंदौर में एक चारमंजिला होटल अचानक जमींदोज हो गया. यह 80 साल पुराना था. इसे नगर निगम ने खतरनाक भवनों की सूची में डाल रखा था. एक और खबर यह भी थी कि राजस्थान में हाल ही बनाया गया एक बांध टूट गया. लाखों लीटर पानी बह गया. इन दोनों ही मामलों की जिम्मेदारी उन बॉडीज पर बनती है, जिनपर आम आदमी की जानमाल का जिम्मा होता है, पर विकास की रफ्तार के साथ यह भरोसा चूर—चूर होता जा रहा है. इसे विकास का कमाल ही कहिए कि अस्सी साल पहले बनी इमारत और आठ महीने पहले बना बांध एक साथ जमींदोज हो जाते हैं. कारण पर आप विचार कर सकते हैं.
इसी दिन दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से खबर छापी है कि मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरियां के लिए प्रक्रिया चलाने वाले व्यापमं ने बीते पांच सालों में परीक्षा फीस के नाम पर ही 350 करोड़ रुपए की भारी रकम वसूल ली है. बीते पांच साल के व्यापमं के रिकॉर्ड को खंगाला गया तो पता चला कि 86 लाख बेरोजगारों ने अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं के नाम पर 350 करोड़ की परीक्षा फीस दी है.
पीएससी में पांच साल में 12 लाख छात्रों ने 80 करोड़ रुपए फीस दी है, पर मीडिया भी सरकार से नौकरी पाने वाले युवाओं का हिसाब—किताब नहीं ले पाया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्यप्रदेश में ढाई करोड़ युवाओं में 50 लाख शिक्षित बेरोजगार युवा 33 से 35 साल की उम्र के हैं. यदि इन्हें दो साल और कहीं नौकरी नहीं मिली तो यह अपनी योग्यता खो देंगे. सोचिए यह दो साल इन युवाओं के सपनों पर कितने भारी होंगे.
आपत्ति यह नहीं है कि सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र क्यों बढ़ाई गई. दुनिया के कई देश हैं जहां 65 साल के बाद भी कर्मचारी नौकरी में पूरी मुस्तैदी से काम करता है. यदि सरकार को लगता है कि इस उम्र के बाद भी शासकीय कर्मचारियों की सेवाओं का लाभ लिया जाना चाहिए तो सरकार ले, लेकिन जब इस सिक्के के दूसरी तरफ देखते हैं तो हमें करोड़ों बेरोजगार युवाओं के मायूस चेहरे नजर आते हैं. ऐसे समय में यह भी देखना चाहिए कि यह चुनावी परिप्रेक्ष्य में एक राजनैतिक फायदा पाने की घोषणा है या किसी तरह के आर्थिक संकट से निपटने का एक तरीका, यह तो वही बेहतर जानती है. हैप्पीनेस विभाग वाले मध्यप्रदेश में बुजुर्ग कर्मचारियों की हैप्पीनेस तो मुख्यमंत्रीजी की घोषणा ने बढ़ा दी, लेकिन युवा उदास हैं.
(राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...)
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This Article is From Apr 02, 2018
हैप्पीनेस वाले एमपी में बुजुर्ग खुश, युवा उदास
Rakesh Kumar Malviya
- ब्लॉग,
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Updated:अप्रैल 02, 2018 18:05 pm IST
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Published On अप्रैल 02, 2018 18:05 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 02, 2018 18:05 pm IST
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