"मैं आपके सामने प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं, बल्कि 'प्रधानसेवक' के तौर पर आया हूं..." प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन की शुरुआत इसी वाक्य से की थी।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वह सचमुच देश के 'प्रधानसेवक' हैं...? इसका फैसला फिलहाल तो आम जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए, लेकिन जब वह स्वाधीनता दिवस समारोह के लिए लालकिला जा रहे थे, तो उस रास्ते को तकरीबन एक घंटे पहले उसी आम आदमी के लिए बंद कर दिया गया था, जिसकी कसमें मोदी खाते रहे हैं।
आमतौर पर अब तक किसी भी प्रधानमंत्री के लिए केवल एक रूट बंद किया जाता था, लेकिन इस बार तीन तरफ के रास्ते बंद कर दिए गए। यानि अगर कोई सुबह-सुबह सरोजिनी नगर, करोलबाग, गोल्फ लिंक्स जैसी जगहों से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, बस अड्डा या फिर किसी अस्पताल जाना चाहे, तो इसकी इजाजत नहीं थी। पूरे साढ़े तीन घंटे के लिए सड़क पर आवाजाही बंद थी और कर्फ्यू-सा माहौल था।
वैसे, अगर नरेंद्र मोदी जी चाहते तो एक और नई परंपरा कायम करते हुए लालकिले तक हेलीकॉप्टर से आ सकते थे, जिससे दिल्ली में 'वीआईपी मूवमेंट' के लिए एक नया मार्ग खुल जाता और आम आदमी को इस वजह से परेशान नहीं होना पड़ता।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी ने लालकिले से एक नहीं, बहुत-सी अच्छी बातें कीं। ऐसी बातें कीं, जो सीधे दिल को छू जाएं... हो सकता है ये नसीहतें कइयों को अच्छी नहीं लगी होंगी, क्योंकि मोदी ने वही बातें कीं, जो सुनाई जानी चाहिए थीं... साफ है, आप खुद नहीं बदलेंगे, तो देश कैसे बदलेगा, लेकिन मोदी जी, आपने बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी कीं, मगर आपकी पार्टी के लोग क्या कर रहे हैं, इस पर आपकी नजर नहीं है क्या...? अगर उत्तर प्रदेश के दंगों के लिए समाजवादी पार्टी के नेता जिम्मेदार हैं, तो आपकी पार्टी के नेता भी बेदाग नहीं हैं... इन्हीं में से एक को आपने पार्टी अध्यक्ष पद और दूसरे को मंत्री पद से नवाज़ दिया?
आपको याद दिलाने के लिए, ईमानदार प्रधानमंत्री तो मनमोहन सिंह भी थे, पर उनकी पार्टी के क्या हालात थे, इसे आपसे बेहतर कौन जान सकता है... और नतीजा सबके सामने है... सरकार बनने के बाद आपने लगभग कई मसलों पर चुप्पी साध ली है, और आज खुले तो इतना ज़्यादा खुले कि रुकने का नाम नहीं लिया, लेकिन महंगाई से जूझ रही आम जनता को राहत देने का कोई ठोस ऐलान भी नहीं किया। जिस महंगाई, भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दों पर आप कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाए, उन पर आपने बोलना भी जरूरी नहीं समझा।
आम लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि आप जमाखोरों, कालाबाजारियों और काले धन के कुबेरों की सफाई की बात करेंगे, परंतु आपने तो सफाई की दिशा ही बदल दी। पेट्रोल के रेट तो कम किए, लेकिन आम जनता की महंगाई से जुड़े डीजल के रेट में कमी करने की जरूरत नहीं समझी।
एक बात तो है... आप जिम्मेदारी डालने में माहिर हैं। अब देखिए न, आपने देश में साफ-सफाई और स्वच्छता का पूरा जिम्मा जनता पर डाल दिया, तो फिर सरकारी खजाने पर बोझ बना सरकारी कर्मियों का अमला क्या करेगा? नक्सली-माओवादी और बलात्कारी बेटों को सुधारने का दायित्व मां-बाप को सौंपकर आप सरकार की इस जिम्मेदारी से भी मुक्त हो गए। इसी तरह, शौचालय और आदर्श गांव बनाने का ठेका भी सांसदों, राज्य सरकारों और विधायकों को दे दिया।
अब सारे काम तो बांट दिए, इसलिए आप अपना ध्यान कम से कम महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं को जड़ से खत्म करने में ही लगा दीजिए तो शायद उस जतना को भी कुछ राहत मिले, जिसके आप 'प्रधानसेवक' हैं।
एक बात तो साफ है कि ब्रान्डिंग में मोदी और उनकी टीम का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। लालकिले से न कोई बड़ी घोषणा हुई, और न भविष्य को लेकर कोई स्पष्ट विज़न नजर आया, फिर भी इस भाषण की मार्केटिंग ऐसी हुई कि हर कोई वाह-वाह कर रहा है। पहले पानी पी-पीकर मनमोहन सिंह को कोसते थे, अब उनकी तारीफ करते हैं।
वैसे मोदी जी, आपको बहुत कुछ करना है, लोगों की आपसे बहुत उम्मीदें हैं। हम जैसे कई लोगों को लगता है कि आप जब गरीबी की बात करते हैं, तो लगता है, उसे दिल से महसूस करते होंगे और इस तकलीफ को भली-भांति समझते भी होंगे, लेकिन जमीन पर कुछ तो ठोस कीजिए, तभी कामयाब हो पाएंगे, वरना भविष्य में बस 'बातों के प्रधानमंत्री या प्रधानसेवक' के तौर पर ही जाने जाएंगे।
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This Article is From Aug 16, 2014
राजीव रंजन की कलम से : 'प्रधानसेवक' हैं तो सेवा करते नजर भी आइए
Rajeev Ranjan
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Updated:नवंबर 19, 2014 16:25 pm IST
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Published On अगस्त 16, 2014 09:49 am IST
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Last Updated On नवंबर 19, 2014 16:25 pm IST
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