विज्ञापन
This Article is From Jan 15, 2018

रघुनाथ झा नहीं होते तो लालू मुख्यमंत्री नहीं बनते...

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 15, 2018 16:33 pm IST
    • Published On जनवरी 15, 2018 16:33 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 15, 2018 16:33 pm IST
रविवार देर रात दिल्ली में बिहार से पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व सांसद और कई बार विधायक रहे रघुनाथ झा का निधन हो गया. लेकिन बहुत कम लोगों को याद होगा कि 1990 में जब लालू यादव पहली बार मुख्यमंत्री चुने गए थे, अगर रघुनाथ झा की उम्मीदवारी नहीं होती तो शायद लालू की जगह रामसुंदर दास मुख्यमंत्री होते.

1989 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस पार्टी के हाथ से सत्ता गई और कुछ महीनों बाद बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो यह तय माना जा रहा था कि बिहार में भी सत्ता परिवर्तन होगा. पूरे देश में परिवर्तन का दौर और कांग्रेस विरोधी लहर जारी थी. बिहार में भी डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद वही हुआ. जनता दल को जीत हासिल हुई. लेकिन बहुमत का आंकड़ा नहीं था. इतना तय था कि भाजपा और वामपंथी दलों की मदद से जनता दल के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार बन जाएगी.

लेकिन उतर प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए थे और वहां मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सरकार बन गयी थी. इसलिए बिहार में तय माना जा रहा था कि रामसुंदर दास के नेतृत्व में ही सरकार बनेगी. इसके पीछे ये तर्क दिया जा रहा था कि अग़ल-बग़ल के राज्य में एक जाति का मुख्यमंत्री नहीं बनेगा. दूसरा, रामसुंदर दास के पास पहले से मुख्यमंत्री बनने का अनुभव था और वो उस समय के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री वीपी सिंह की पहली पसंद थे.

वहीं लालू यादव इस दौर में मैदान में टिके थे. उनका दावा था कि कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद वो विपक्ष के नेता चुने गए थे, इसलिए ताज के उत्तराधिकारी वही थे. हालांकि वो 89 के लोकसभा चुनाव में छपरा से सांसद चुने गये थे. लालू के पीछे देवीलाल से लेकर शरद यादव और नीतीश कुमार सब थे. शरद यादव ने देवीलाल से मिलकर यादव जाति के लोगों को ख़ूब टिकट दिलवाया और इस जाति के लोग अछी संख्या में जीत कर विधायक भी बने.

लेकिन लालू समर्थक अभी भी जीत के प्रति आश्‍वस्‍त नहीं थे क्योंकि ग़ैर यादव और दलित समुदय के विधायक यादव जाति के विधायकों पर भारी पड़ रहे थे. तब प्रधानमंत्री की दौड़ में वीपी सिंह से मात खाये बैठे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अपने समर्थकों की संख्या का आकलन किया और लालू यादव की जीत से ज़्यादा वीपी सिंह समर्थित रामसुंदर दास की हार तय करने के लिए रघुनाथ झा को मैदान में उतारा. रघुनाथ झा को 13 विधायकों का वोट मिला लेकिन इनमें से अधिकांश राजपूत जाति के विधायक थे जिनका वोट सीधी टक्कर में लालू यादव को नहीं जाता.

इस चुनाव में लालू यादव तीन वोट से जीते. कुछ समय के सस्पेंस के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उसके बाद की कहानी इतिहास बन गयी. लेकिन जिस चारा घोटाले में आज लालू यादव जेल में बंद हैं, उस घोटाले के जनक माने जाने वाले डॉक्टर श्याम बिहारी सिन्हा ने स्वीकार किया था कि इस विधायक दल के चुनाव के पहले उन्होंने लालू यादव को आर्थिक मदद भी की थी. हो सकता है इस एहसान का बदला लालू को सत्ता से इस्तीफ़ा जैसे बड़ी कीमत चुका कर देना पड़ा.

हालांकि सोमवार को कोर्ट पहुंचते ही राजद अध्यक्ष लालू यादव ने उनकी मौत पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि आज वो बंदी हैं इसलिए वो उन्हें व्यक्तिगत रूप से श्रद्धांजलि देने नहीं जा सकते. वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर का कहना है कि झा जब कांग्रेस पार्टी से विधायक थे तब 1977 के बाद बनी कर्पूरी ठाकुर सरकार के एक वरिष्‍ठ मंत्री के कारनामों को उजागर किया था तब सरकार ने उनकी बातों को माना था.

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायीनहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
BLOG : हिंदी में तेजी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना जरूरी है!
रघुनाथ झा नहीं होते तो लालू मुख्यमंत्री नहीं बनते...
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Next Article
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com