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बिहार चुनावः शिवहर में ‘रघुनाथ झा परिवार’ की तीसरी पीढ़ी मैदान में, विरासत और वास्तविकता की होगी जंग!

बिहार चुनाव में शिवहर की लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है. शिवहर के निर्माता कहे जाने वाले पंडित स्वर्गीय रघुनाथ झा की तीसरी पीढ़ी राजनीति के अखाड़े में उतरने की तैयारी में हैं. सवाल ये है कि क्या वो अपने बाबा की तरह जनता का विश्वास जीत पाएंगे?

बिहार चुनावः शिवहर में ‘रघुनाथ झा परिवार’ की तीसरी पीढ़ी मैदान में, विरासत और वास्तविकता की होगी जंग!
शिवहर:

बिहार की राजनीति में कई ऐसे नाम दर्ज हैं, जिन्होंने अपनी पहचान केवल चुनाव जीतने तक सीमित नहीं रखी बल्कि जनता के दिलो-दिमाग पर स्थायी छाप छोड़ी है. शिवहर की राजनीति का ज़िक्र जब-जब होता है, तो एक नाम सबसे पहले सामने आता है- पंडित स्वर्गीय रघुनाथ झा. उन्हें शिवहर का निर्माता कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ क्षेत्र की राजनीति को आकार दिया बल्कि 1994 में शिवहर को जिला भी बनवाया. अब जबकि झा परिवार की तीसरी पीढ़ी (रघुनाथ झा के पौत्र नवनीत झा और राकेश झा) राजनीतिक अखाड़े में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, तो सवाल उठता है कि क्या वे अपने बाबा की तरह जनता का विश्वास जीत पाएंगे? क्या विरासत का भार उनके कंधों पर राजनीतिक ताक़त में बदल पाएगा, या यह सिर्फ़ एक पारिवारिक प्रयोग साबित होगा?

रघुनाथ झा: शिवहर के निर्माता

रघुनाथ झा का राजनीतिक सफर काफी लंबा और प्रभावशाली रहा है. वर्ष 1972 से लेकर 1998 तक पूरे 28 वर्षों तक वह लगातार शिवहर के विधायक रहे. इस दौरान राज्य सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बने. 1994 में उन्होंने शिवहर को नया ज़िला बनाने का सपना पूरा किया. वह शिवहर की अस्मिता और स्वाभिमान के प्रतीक बन गए थे. उन्हें बार-बार जनता का समर्थन मिला. 

हालांकि राजनीति का रास्ता कभी भी एकतरफा नहीं होता. 1998 का उपचुनाव उनके लिए करारी हार लेकर आया. वजह थी लालू प्रसाद यादव से अनबन. राजद छोड़कर जब वह जदयू के टिकट पर मैदान में उतरे, तो राजद प्रत्याशी राणा रत्नाकर ने उन्हें शिकस्त दी. लेकिन झा ने हार नहीं मानी. वह आगे बढ़े और गोपालगंज तथा बेतिया से सांसद बने. यहां तक कि केंद्र में मंत्री पद तक पहुंचे.

दूसरी पीढ़ी: अजीत कुमार झा का सफर

रघुनाथ झा के बाद बारी आई उनके पुत्र अजीत कुमार झा की. उन्होंने परिवार की राजनीतिक विरासत को संभालने की कोशिश की और दो बार शिवहर से विधायक बने. दोनों बार उन्होंने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते. हालांकि उनका प्रभाव अपने पिता जितना व्यापक नहीं हो सका. राजनीति में उनका कार्यकाल दर्ज जरूर हुआ, मगर जनता के बीच वैसा भावनात्मक जुड़ाव नहीं बन पाया, जैसा रघुनाथ झा ने बनाया था. यही कारण है कि झा परिवार का राजनीतिक ग्राफ अतीत के मुकाबले थोड़ा ढलान पर आ गया.

तीसरी पीढ़ी: नवनीत झा और राकेश झा

अब तीसरी पीढ़ी मैदान में है. रघुनाथ झा के पौत्र नवनीत झा और राकेश झा सक्रिय हो चुके हैं. खासकर नवनीत झा ने इस बार राजद से जुड़कर शिवहर से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. हालांकि अभी तक राजद की ओर से आधिकारिक प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया है. नवनीत झा की घोषणा संकेत है कि झा परिवार अपनी विरासत खोना नहीं चाहता. जनता के बीच यह चर्चा तेज है कि क्या नवनीत झा अपने बाबा की तरह शिवहर की राजनीति में पहचान बना पाएंगे?

नवनीत झा के सामने चुनौतियां

  • शिवहर की राजनीति अब वैसी नहीं रही, जैसी रघुनाथ झा के दौर में थी. अब समीकरण जातीय संतुलन, गठबंधन की रणनीति और युवाओं के मुद्दों से तय होते हैं.
  • अब मतदाता सिर्फ नाम और विरासत पर वोट नहीं देते. वे रोजगार, विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर भी पैनी नज़र रखते हैं. 
  • ऐसे में नवनीत झा के सामने चुनौती यह होगी कि वे अपने बाबा की विरासत के साथ-साथ समकालीन मुद्दों पर भी जनता को आश्वस्त करें. 
  • राजनीति में विरासत एक बड़ी पूंजी होती है, मगर यह अकेले पर्याप्त नहीं होती. झा परिवार का नाम आज भी शिवहर में सम्मान से लिया जाता है. 
  • पुराने लोगों को याद है कि किस तरह रघुनाथ झा ने शिवहर को जिला बनाया और यहां के विकास के लिए आवाज़ उठाई. 
  • वहीं युवाओं की नई पीढ़ी 1990 के दौर के बारे में शायद नहीं जानती. वो परिणाम चाहते हैं, इतिहास नहीं. 
  • इस लिहाज़ से नवनीत के लिए जरूरी होगा कि वह अपने प्रचार में न केवल बाबा की उपलब्धियां गिनाएं बल्कि आगे की ठोस योजना भी पेश करें.

शिवहर में दिलचस्प फाइट के आसार

आगामी विधानसभा चुनाव में शिवहर की सीट काफी दिलचस्प होने वाली है. राजद, जदयू, भाजपा, लोजपा सभी दल इस सीट को अहम मानते हैं. शिवहर की भौगोलिक और जनसांख्यिकीय स्थिति इसे एक संवेदनशील सीट बनाती है. अगर नवनीत झा को टिकट मिलता है और वह बाबा की विरासत का कार्ड खेलते हैं तो मुकाबला रोमांचक हो सकता है.

शिवहर के गांवों और कस्बों में आज भी लोग कहते मिल जाएंगे कि अगर रघुनाथ बाबू होते, तो शिवहर और आगे निकल गया होता. यह दिखाता है कि जनता के दिलों में उनकी गहरी छाप है. लेकिन जनता यह भी कहती है कि विरासत से पेट नहीं भरता. सड़क, शिक्षा, अस्पताल, रोजगार – ये मुद्दे चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ऐसे में नवनीत झा को अपने बाबा की तरह जनता से सीधा संवाद और ठोस काम का वादा करना होगा. 

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