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This Article is From Dec 11, 2023

उत्तर में निरुत्तर रही कांग्रेस, तो मुश्किल होगी 2024 की डगर

  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 21, 2023 08:30 am IST
    • Published On दिसंबर 11, 2023 15:30 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 21, 2023 08:30 am IST

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करारी पराजय के बाद कांग्रेस का हिन्दी पट्टी से लगभग सफाया हो गया है. उत्तर भारत और हिन्दी पट्टी मिलाकर कांग्रेस के पास सिर्फ हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार है जबकि बिहार और झारखण्ड में वह सहयोगी दलों के साथ सरकार का हिस्सा है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी दक्षिण भारत में ऐसी ही स्थिति का सामना कर रही है, जिसका वहां एक भी सूबे पर कब्ज़ा नहीं है और न ही वह किसी के साथ सरकार में शामिल है. भारतीय राजनीति में दो सबसे बड़े दल उत्तर और दक्षिण भारत में समान नियति के शिकार दिख रहे हैं. मगर, उत्तर में मज़बूत BJP सत्ता में है, जबकि उत्तर में कमज़ोर कांग्रेस सत्ता से काफी दूर रहकर संघर्ष करती दिख रही है.

उत्तर भारत के छह राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और केंद्रशासित दिल्ली और जम्मू एवं कश्मीर) में BJP के पास 118 लोकसभा सांसद और कुल 447 विधायक हैं. वहीं, कांग्रेस के पास कुल 9 लोकसभा सांसद हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए अपने दम पर खड़ा होना मुश्किल हो गया है. मुश्किल घड़ी में ऐसे साथी भी नहीं मिल रहे हैं, जो कांग्रेस के लिए बैसाखी का काम कर सकें. INDIA ब्लॉक में समाजवादी पार्टी, RJD, JDU जैसी पार्टियां तो हैं, लेकिन वे अपनी ज़रूरतों से इस प्लेटफ़ॉर्म पर हैं. वास्तव में कांग्रेस की राजनीतिक विरासत पर सबसे पहले इन दलों ने ही हमला बोला था. आज जब वह स्वयं वजूद का संकट झेलने की स्थिति में आए, तो उन्हें कांग्रेस के साथ की ज़रूरत महसूस हो रही है.

कांग्रेस के पास हिन्दीभाषी नेताओं का टोटा
कांग्रेस के पास प्रभावशाली हिन्दी बोलने वाले नेता नहीं हैं. स्वयं राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार चुके हैं और केरल के वायनाड से सांसद हैं. राहुल गांधी का राष्ट्रीय स्तर पर जनता से संवाद तो है और यह 'भारत जोड़ो' यात्रा के बाद लगातार मज़बूत हुआ है. लेकिन, संवाद को मज़बूत बनाने के लिए ज़मीन से जुड़े नेताओं की बैटरी चाहिए, जिनमें क्षेत्रीय, भाषायी और स्थानीयता का कनेक्ट हो.

मल्लिकार्जुन खरगे दक्षिण से आते हैं और हिन्दी बोलने-लिखने-समझने के बावजूद उनका हिन्दीभाषी लोगों से कनेक्ट नहीं बनता. राजस्थान में ऐसे नज़ारे खूब देखने को मिले, जब मल्लिकार्जुन खरगे के बोलने को खड़े होते ही कुर्सियां खाली होने लग जाया करती थीं. अशोक गहलोत बुज़ुर्ग हो चुके हैं और अब उन्हें राजस्थान की जनता ने भी घर बैठने का निर्देश दे दिया है. उत्तर प्रदेश में तो कोई नाम ही नज़र नहीं आता, जो राहुल गांधी के तेवर को ज़मीन तक पहुंचा सके या कनेक्ट बनाने में उनकी मदद कर सके. मध्य प्रदेश में कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी को जनता ने खारिज कर दिया है.

वैचारिक संघर्ष में मात खा रही है कांग्रेस
राहुल गांधी लगातार कहते रहे हैं कि वह विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं, मगर इस लड़ाई में उन्हें सफलता कम, निराशा ज़्यादा हाथ लग रही है. दरअसल BJP जो नैरेटिव गढ़ती है, उसकी काट कांग्रेस नहीं दे पाती. जबकि, कांग्रेस जब-जब नैरेटिव गढ़ती है, BJP उसका जवाब लेकर सामने आ जाती है. इस बढ़त के पीछे भी संसाधनों से सुसज्जित संगठित टीम का फ़र्क साफ दिखता है.

राफ़ेल डील के बाद 'चौकीदार चोर है' का नैरेटिव राहुल गांधी ने बनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन BJP इसका काउंटर नैरेटिव लेकर आ गई - 'मैं भी चौकीदार...' राहुल गांधी का 'पनौती' वाला हमला भी निष्फल साबित हुआ.

कांग्रेस की ढाल बन सकेगा INDIA ब्लॉक...?
आम चुनाव 2024 के लिए INDIA ब्लॉक बना है, लेकिन जब तक यह कांग्रेस की ढाल नहीं बनेगा, INDIA ब्लॉक का सफल होना भी मुश्किल है. कहीं ऐसा न हो कि कांग्रेस को INDIA ब्लॉक के घटक दलों से जुड़ा राजनीतिक अभिशाप भी भुगतना पड़ जाए. दरअसल, दोनों एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं.

नरेंद्र मोदी INDIA ब्लॉक के नेताओं को परिवारवादी, भ्रष्टाचार के साथी बताने पर तुले हैं. अगर INDIA ब्लॉक इस नैरेटिव को नहीं तोड़ पाता, तो आम चुनाव में मुश्किल होने वाली है. विपक्ष यह ज़रूर कहता है कि ED-CBI का दुरुपयोग किया जा रहा है, लेकिन BJP काउंटर नैरेटिव दे डालती है कि भ्रष्टाचार होगा, तो ED-CBI पहुंचेगी और वह कार्रवाई भी करेगी.

उत्तर-दक्षिण को लेकर ताज़ा बहस छिड़ी है, और उसका मकसद भी INDIA ब्लॉक को कमज़ोर करना है. BJP हमला कर रही है कि कांग्रेस दक्षिण में सफलता से इतरा रही है और उत्तर में पराजय के बाद उत्तर भारतीयों का अपमान कर रही है. अगर यह हमला बड़ा होगा, तो कांग्रेस INDIA ब्लॉक के बाकी दलों के लिए अभिशाप बन सकती है. इससे पहले, सनातन विवाद कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अभिशाप बनकर सामने आया. ख़तरा सनातन और उत्तर-विरोधी करार दिए जाने का है. कांग्रेस के लिए यही चारा है कि वह अपने सहयोगियों के दम पर इस हमले का प्रतिकार करे. नीतीश कुमार, बीमार लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव उनकी मदद कर सकते हैं.

जातीय जनगणना और OBC के दांव से कितनी मदद मिलेगी...?
INDIA ब्लॉक ने जातीय जनगणना और OBC को उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण की तान छेड़ी है. BJP इस मुद्दे पर सीधा न बोलकर INDIA ब्लॉक पर तोहमत लगा रही है कि वह समाज को जातियों में बांटने में जुटी है. हिन्दुत्व और देशभक्ति के नैरेटिव के साथ विपक्ष पर यह हमला असरदार होगा, तो INDIA ब्लॉक और कांग्रेस की मुश्किल बढ़ती चली जाएगी.

सनातन पर एम.के. स्टालिन के बयान ने कांग्रेस और INDIA ब्लॉक को बैकफुट पर ला खड़ा किया, तो इसके पीछे BJP का आक्रामक हमला ही वजह रहा. ऐसा लगातार हो रहा है और कांग्रेस असहाय नज़र आ रही है. इस हिसाब से सचमुच BJP-कांग्रेस के बीच की राजनीतिक लड़ाई विचारधारा की लड़ाई बन चुकी है, मगर विचारधारा की लड़ाई को ज़ुबान देने में कांग्रेस कहीं न कहीं कमतर साबित हो रही है और इसी का नतीजा है चुनावों में लगातार पराजय.

BJP के लिए दक्षिण भारत चिंता का सबब
प्रदेश पर शासन के लिहाज़ से यह बात ज़रूर उल्लेखनीय है कि दक्षिण भारत के पांच प्रदेशों में किसी एक पर भी BJP का शासन नहीं रह गया है, जबकि कांग्रेस के नाम दो प्रदेश हो गए हैं. तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकारें हैं, जबकि तमिलनाडु में कांग्रेस सरकार में शामिल है. केरल में कम्युनिस्ट शासन है, जबकि आंध्र प्रदेश में YSR कांग्रेस का आधिपत्य है.

सच यह है कि उत्तर में कांग्रेस और दक्षिण में BJP की मौजूदगी नजरअंदाज़ करने वाली नहीं है. दक्षिण में लोकसभा की कुल 131 सीटें हैं और विधानसभा की 892 सीटें हैं. BJP के पास 29 लोकसभा सीटें, 7 राज्यसभा सांसद और 77 विधायक हैं. कांग्रेस के पास 27 लोकसभा सीटें और 7 राज्यसभा की सीटें हैं, जबकि विधायक 239 हैं. इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस के मुकाबले BJP के पास दक्षिण में लोकसभा सांसद ज़्यादा हैं, और राज्यसभा सांसद एक समान हैं.

प्रेम कुमार तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं, और देश के नामचीन TV चैनलों में बतौर पैनलिस्ट लम्बा अनुभव रखते हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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