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This Article is From Dec 19, 2015

मिहिर गौतम की कलम से : रीयल एस्टेट बिल की मुश्किल

Mihir Gautam
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 13:28 pm IST
    • Published On दिसंबर 19, 2015 22:17 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:28 pm IST
जीएसटी बिल को लेकर सरकार चिंतित नज़र आ रही है, लेकिन क्या यही चिंता जनता से जुड़े एक और बिल रीयल एस्टेट बिल पर भी है। एक ऐसा बिल जिसका मकसद उस सेक्टर में पारदर्शिता लाना है, जहां आज ये बहुत कम दिखती है।

जब मोदी सरकार स्मार्ट सिटी की बात करती है तो यह ज़रूरी है कि ऐसा क़ानून हो जिससे आम लोगों को मनमानी का शिकार ना होना पड़े। रीयल एस्टेट बिल की चर्चा तब खूब हुई जब राहुल गांधी घर खरीदने वालों से मिले और उनके लिए लड़ने की बात कही। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब दस साल यूपीए की सरकार थी, तब रीयल एस्टेट बिल क्यों नहीं पास हो पाया।

सरकार भी कह रही है कि वो इस बिल को पास कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन ये कब होगा, फिलहाल कहना मुश्किल नज़र आता है। कैबिनेट बिल पास कर चुका है, लेकिन क्या ये बिल इस सत्र में सदन में पेश होगा और क्या सरकार और विपक्ष के बीच आम राय बन पाएगी।

दरअसल बढ़ते शहरीकरण ने रीयल एस्टेट सेक्टर में क़ानून की ज़रूरत को बढ़ाया है। अब ज़्यादा बिल्डिंगें बन रही हैं, टाउनशिप बन रहे हैं और लोग यहां अपने सपनों का आशियाना ख़रीदना चाहते हैं। अगर आप किसी भी शहर से गुज़रें तो बिल्डरों के लुभावने विज्ञापन बड़े-बड़े बोर्ड पर दिखेंगे। सपना एक शानदार सोसायटी का दिया जाता है। लेकिन क्या हर बार जो वादा किया जाता है वो पूरा होता है? क्या वाकई वैसा ही घर मिलता है जैसा दिखाया जाता है? क्या जो एग्रीमेंट बनता है वो एकतरफ़ा होता है या फिर घर ख़रीदने वालों की बात होती है उसमें? क्या प्रोजेक्ट से जुड़ी सारी जानकारी दी जाती है?

ये सवाल इसलिए है क्योंकि कई प्रोजेक्ट पांच-पांच साल देर हो चुके हैं और अभी भी वो पूरे होंगे या नहीं कोई नहीं कह सकता। एक आम आदमी जो लोन लेकर घर ख़रीदता है, उसे लोन और किराये दोनों का बोझ उठाना पड़ता है। लगातार ठगी की कई घटनाएं सामने आई हैं, कुछ गिरफ़्तार भी हुए हैं। अगर रीयल एस्टेट क़ानून बना तो ये सेक्टर पहले से और ज़्यादा बेहतर होगा। प्रोजेक्ट से जुड़ी सारी जानकारियां मिलेंगी, वहीं जो बिल्डर धोखाधड़ी करेगा उसपर कार्रवाई भी होगी। उम्मीद करनी चाहिए कि इस बिल की मुश्किल भी ख़त्म होगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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