विज्ञापन
Story ProgressBack

Congress HR Disaster: नेता कांग्रेस छोड़ रहे या कांग्रेस नेताओं को छोड़ रही?

Santosh Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    February 20, 2024 19:41 IST
    • Published On February 20, 2024 09:37 IST
    • Last Updated On February 20, 2024 09:37 IST

आजकल हर दूसरे दिन ख़बर आती है कि कोई पुराना कांग्रेसी पार्टी छोड़ गया. सवाल यह है कि पुराने कांग्रेसी कांग्रेस छोड़ रहे हैं या कांग्रेस उन्हें छोड़ रही है? असल में लंबे समय से कांग्रेस में HR मैनेजमेंट नहीं डिजास्टर हो रहा है.

कमलनाथ का 'कमल थामना' फिलहाल टल गया है. लेकिन कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ के ट्विटर, यानी X बायो में 'कांग्रेस' नहीं लौटा है. यानी मध्य प्रदेश कांग्रेस (Madhya Pradesh Congress) का संकट अभी टला नहीं है. कमलनाथ भले न गए हों, डैमेज तो हो ही गया. कांग्रेस और कमलनाथ का वोटर लोकसभा चुनाव में जब EVM में 'हाथ' पर बटन दबाने के लिए अंगुली बढ़ाएगा, तो उसके कदम लड़खड़ाएंगे ज़रूर. कांग्रेस के छिंदवाड़ा किले में छेद हो चुका है. मिलिंद देवड़ा से लेकर अशोक चव्हाण और कमलनाथ तक एक बात जो सामने आती है, वह यह है कि कांग्रेस आलाकमान ने इन मामलों में क्राइसिस मैनेज ठीक से नहीं किया.

ऐसा नहीं है कि कमलनाथ रुक गए, तो कांग्रेस लीडरशिप ने रोका हो. ज़्यादातर जानकारों का मानना है कि मामले में BJP रुक गई. कमलनाथ के जाने की चर्चा के वक्त कांग्रेस लीडरशिप क्या कर रही थी, ज़रा इस पर गौर कीजिएगा. कांग्रेस कह रही थी कि उन्हें (कमलनाथ को) सब कुछ तो दिया. ज़रा कल्पना कीजिए - इतने कद्दावर नेता के BJP में जाने की बात हो रही है. होना यह चाहिए था कि कांग्रेस आलाकमान संकट को संभालता, लेकिन पार्टी सूत्रों के हवाले से ऐसे बयान दिलवाए जा रहे थे, जिससे रही सही उम्मीद भी चली जाए.

मिलिंद देवड़ा क्यों गए?
मिलिंद देवड़ा को अपनी पुश्तैनी सीट दक्षिण मुंबई से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी चाहिए थी. उद्धव ठाकरे शिवसेना की तरफ से लगातार बयान आ रहे थे कि यह सीट किसी भी कीमत पर कांग्रेस को नहीं देगी. लेकिन कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने मामला सुलझाने की कोशिश नहीं की. नतीजा मिलिंद देवड़ा भी साथ छोड़ गए. उधर BJP की रणनीति देखिए. देवड़ा को राज्यसभा भेजा और वहां की लड़ाई कमज़ोर कर दी. अब उसके उम्मीदवार के कामयाब होने की उम्मीद बढ़ गई है.

अशोक चव्हाण क्यों गए?
महाराष्ट्र के ही दूसरे कद्दावर नेता अशोक चव्हाण BJP में चले गए. साल भर पहले महाराष्ट्र कांग्रेस प्रभारी रमेश चेनीथला ने आलाकमान को एक रिपोर्ट भेजी थी कि मौजूदा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले से विधायक और कार्यकर्ता खफा हैं. सुझाव दिया कि अशोक चव्हाण को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी दी जाए. लेकिन कांग्रेस आलाकमान की किचन कैबिनेट इस रिपोर्ट पर बैठी रही. खुद अशोक चव्हाण ने सोनिया गांधी से मिलकर गुहार लगाई, लेकिन बात नहीं मानी गई. राहुल गांधी ने तो मिलने का भी समय नहीं दिया. नतीजा अशोक चव्हाण BJP में चले गए. BJP चव्हाण को राज्यसभा भेज रही है, तो नांदेड़ की सीट पर मुकाबला कमज़ोर हो गया. और जिस सीट पर BJP हमेशा से कमज़ेर थी, वहां मज़बूत हो गई. मजेदार बात यह है कि यह सब उन पटोले के लिए किया गया, जिन्होंने राज्य में पार्टी ही नहीं, गठबंधन का भी नुकसान किया. अगर पटोले CM को बिना बताए स्पीकर पद से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनते, तो एकनाथ शिंदे को बगावत और विश्वासमत में दिक्कत होती. शिंदे गुट के ख़िलाफ़ अयोग्यता का केस स्पीकर पटोले के पास जाता. जाहिर है कि पटोले ने बिना आलाकमान की मंज़ूरी के इस्तीफ़ा नहीं दिया होगा. इसे पार्टी का दूर दृष्टिदोष नहीं तो क्या कहेंगे?

दूरदृष्टि तो छोड़िए, एक नेशनल पार्टी के कर्ताधर्ता यह तक पक्का नहीं कर पाए कि इनकम टैक्स विभाग को समय पर हिसाब-किताब दे दें. 2018-2019 में रिटर्न दाखिल में 40-45 दिन की देरी की. विभाग ने 103 करोड़ का जुर्माना लगाया. मामला चार-पांच साल खिंचा. पार्टी नियम के मुताबिक 20% पैनल्टी दे देती, तो खाता फ़्रीज़ होने की नौबत नहीं आती. लेकिन खाता सील हुआ, तो इसे लोकतंत्र पर हमला बता दिया.

कांग्रेस में कुप्रबंधन - एक केस स्टडी
कांग्रेस में कुप्रबंधन के इतने उदाहरण हैं कि यह एक केस स्टडी हो सकती है. पार्टी कैसे डुबाई जाए, इसकी केस स्टडी. चुनाव सिर पर हैं. INDI गठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही है. कभी केजरीवाल तलवार निकाल रहे हैं, तो कभी अखिलेश आस्तीन चढ़ा लेते हैं, लेकिन पार्टी के सबसे बड़े नेता अपनी यात्रा में मग्न हैं. क्या खरगे उनकी सहमति के बिना कोई फैसला ले सकते हैं? जवाब आपको पता है. नतीजा यह है कि केजरीवाल पंजाब और दिल्ली में अकेले लड़ने का ऐलान कर चुके. अखिलेश बिना कांग्रेस से बात किए अपने उम्मीदवार और सीटों की संख्या का ऐलान कर रहे हैं.

नीतीश क्यों गए?
नीतीश ने BJP का दामन थामा और कहा कि मैंने तो BJP-विरोधी पार्टियों को जोड़ने का प्रयास किया, लेकिन उधर से कुछ हुआ ही नहीं. उनका इशारा कांग्रेस की तरफ भी था. INDI गठबंधन की शुरुआती बैठकों में जाने से कांग्रेस ने आनाकानी की, ताकत न रहते हुए भी गठबंधन का अगुवा बनाए जाने की ज़िद की. खरगे गठबंधन के चेयरमैन बने, नीतीश मोदी से जा मिले.

कांग्रेस ने तो अध्यक्ष चुनने में इतना समय ज़ाया किया कि पार्टी में बगावत होने लगी. अक्सर पार्टी के बड़े नेता ऐसे मुद्दों पर लगे रहते हैं, जिनसे चुनाव नहीं जीता जा सकता.

कलह ने डुबाया
असंतुष्टि, अंतर्कलह को सही समय पर शांत न कर पाने का खामियाज़ा कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में झेल चुकी है. सुना है, लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे पर राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर रण छिड़ गया है. रण में फिर वही दोनों नेता हैं, जिनकी कलह ने विधानसभा चुनाव हराया, और यह कोई हाल फ़िलहाल नहीं हो रहा है. असम से हरियाणा तक कुप्रबंधन के उदाहरण भरे पड़े हैं. ऐसी सूरत में सवाल उठता है कि 2019 में 52 सीट पर सिमट गई कांग्रेस क्या 2024 में हाफ सेंचुरी भी लगा पाएगी? ऐसा लगता है कि BJP के 'कांग्रेस-मुक्त भारत' अभियान में कांग्रेस उसकी सहयोगी बन गई है.

संतोष कुमार पिछले 25 साल से पत्रकारिता से जुड़े हैं. डिजिटल, टीवी और प्रिंट में लंबे समय तक काम किया है. राजनीति समेत तमाम विषयों पर लिखते रहे हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
India के किस राजा ने 1 हजार साल पहले ही किया था Surgical Strike? 10 देशों पर था प्रभाव
Congress HR Disaster: नेता कांग्रेस छोड़ रहे या कांग्रेस नेताओं को छोड़ रही?
गुलज़ार को ज्ञानपीठ : ये सम्मान यों ही नहीं मिलता
Next Article
गुलज़ार को ज्ञानपीठ : ये सम्मान यों ही नहीं मिलता
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;