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This Article is From Oct 09, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : देश में शिक्षा का स्तर आख़िर सुधरेगा कैसे?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 09, 2017 22:20 pm IST
    • Published On अक्टूबर 09, 2017 21:19 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 09, 2017 22:20 pm IST
यह कैसे हो सकता है कि हम सब अच्छे कॉलेज में जाने के लिए नर्सरी से लेकर बारहवीं तक 15 साल गुज़ार देते हैं और जब कॉलेज में जाते हैं तब पढ़ाने के लिए प्रोफेसर लेक्चरर न हों तो क्या यह छात्रों के 15 साल के साथ धोखा नहीं है? यह कैसे हो सकता है कि कॉलेज दर कॉलेज में प्रोफेसर, लेक्चरर नहीं हैं और समाज और परिवार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है? आप पिछले तीन साल के दौरान शिक्षा को लेकर बहस को याद कीजिए. यूनिवर्सिटी में तोप रहेगा, कितना ऊंचा झंडा रहेगा, कोर्स में धर्म रहेगा या किसका नाम हटेगा, किसका अध्याय जुटेगा, इन सब बातों के अलावा क्या इस बात की चर्चा हुई कि पढ़ाई पेशेवर तरीके से होगी, योग्य शिक्षकों की संगत में होगी. दरअसल ये सब मुद्दे आते ही इसलिए हैं ताकि आप यह न पूछें कि क्लास में प्रोफेसर नहीं हैं, हमें उस विषय के लिए कोचिंग ट्यूशन करना पड़ता है. हमें एडमिशन के लिए फीस देनी पड़ रही है और फिर ट्यूशन के लिए भी. क्या भारत के छात्रों को विश्वविद्यालयों से एडमिशन फीस वापस नहीं मांगनी चाहिए, जब टीचर ही नहीं दिया तो फीस किस बात के लिए.

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से एच और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एम हटाने का प्रस्ताव जिसके भी दिमाग़ में आया हो, आ सकता है मगर क्या किसी के दिमाग़ में यह बात भी आई है कि भारत के असंख्य कॉलेजों में एक या दो या तीन चार प्रोफेसर हैं. इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा की रिपोर्ट है कि केंद्रीय विश्वविद्लाययों का ऑडिट करने वाली संस्था ने सुझाव दिया है कि हिन्दू और मुस्लिम नाम हटा दिया जाना चाहिए. मानव संसाधन मंत्रालय ने दस केंद्रीय विश्वविद्लायों में गड़बड़ी की जांच के लिए कमेटी बनाई थी. कमेटी का काम रिसर्च, पढ़ाई और बुनियादी ढांचों पर भी रिपोर्ट तैयार करना था. लेकिन उन तमाम बातों की जगह किसी ने एच और एम हटाने की बात कर शिगूफा छोड़ दिया. अब सारी बहस इसी पर होगी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मुस्लिम और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से हिन्दू हटा देना चाहिए. पता चलता है कि इन कमेटियों में लोग किस तरह के चुने जाते हैं. मगर इस सवाल में खूब संभावनाएं हैं, आप और हम हिन्दू मुस्लिम करते रह जाएंगे और उधर छात्रों का एक और साल बग़ैर शिक्षकों के गुज़र जाएगा. बीएचयू में प्रोफसरों के 400 पद खाली हैं. एएमयू में टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 325 पद ख़ाली हैं. कहां तो बहस खाली क्लास रूम को लेकर होनी चाहिए तो हो रही है कि नाम क्या रखा जाए. इन दोनों यूनिवर्सिटी का एक और नाम रखा जा सकता है बिन प्रोफेसर यूनिवर्सिटी.

राज्यों के विश्वविद्यालयों की हालत तो और भी ख़राब है. बिहार की पटना यूनिवर्सिटी की हालत का जायज़ा लिया था. इस बार हम ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी का हाल लेंगे. इस यूनिवर्सिटी के तहत बेगुसराय, दरभंगा, समस्तीपुर और मधुबनी के मान्यता प्राप्त और संबंध कॉलेजों की संख्या 70 से अधिक है. इस यूनिवर्सिटी का एक कॉलेज है आर के कॉलेज, मधुबनी. यहां 127 प्रोफेसर होने चाहिए मगर हैं सिर्फ 30. 97 पद ख़ाली हैं. आप कल्पना कीजिए कि इस कॉलेज के विद्यार्थियों का क्या हाल होता होगा. वे क्या पढ़ते होंगे.

- मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा में 57 प्रोफेसर होने चाहिए थे, हैं 14 और 43 पद ख़ाली हैं
- एल एन जे कॉलेज, झंझारपुर में 37 प्रोफेसर होने चाहिए थे, हैं मात्र 6, 31 पद यहां ख़ाली हैं
- के एस कॉलेज, लहेरिया सराय में 63 प्रोफेसर लेक्चरर होने चाहिए मगर हैं 18, 45 पद ख़ाली हैं
- जे एन कॉलेज, मधुबनी में 43 पद मंज़ूर हैं, मगर 8 प्रोफेसर ही हैं, 35 प्रोफेसर नहीं हैं
- डी बी कॉलेज जयनगर में 53 पद मंज़ूर हैं, 4 प्रोफेसर ही पढ़ा रहे हैं, 49 पद यहां ख़ाली हैं


इन सभी कॉलेज में छात्रों की संख्या में कोई कमी नहीं है. कहीं एक हज़ार पढ़ रहे हैं तो कहीं दो से तीन हज़ार भी पढ़ रहे होंगे. इन सबसे कॉलेज फीस भी लेता होगा. क्या आप जानते हैं कि उनके साथ क्या होता होगा. वे बिना प्रोफेसर-लेक्चरर के क्या पढ़ कर निकलते होंगे. देश के तमाम राज्यों में जवानियों को बर्बाद करने का राष्ट्रीय प्रोजेक्ट चल रहा है. आपका ध्यान इस तरफ जाए ही न, इसलिए नेता सुबह से लेकर शाम तक तरह तरह के मुद्दे गढ़ रहे हैं. जब इस देश में शिक्षक ही नहीं हैं तो छात्र पढ़ कैसे रहे हैं. बग़ैर गुरु के क्या भारत विश्व गुरु हो सकता है. कई साल से ये हालात हैं. बिहार से लेकर राजस्थान, यूपी से लेकर मध्य प्रदेश तक हर जगह शिक्षा का बजट सिर्फ इमारतों के रख रखाव में खर्च हो रहा है. पढ़ाने वालों पर कुछ नहीं हो रहा है. ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी का हाल बहुत बुरा है. मगर इन इलाके के लोगों को यह हाल क्यों नहीं दिखा, मेरी समझ से बाहर है. हमने ये सारा डेटा यूनिवर्सिटी के बजट से लिया है जो राज्य सरकार के पास भेजा जाता है. 2017-18 के बजट पत्र के अनुसार पूरे विश्वविद्यालय में 1918 पद स्वीकृत हैं मगर 1918 से मात्र 488 शिक्षक ही पढ़ा रहे हैं. 1430 पद ख़ाली हैं. 50 फीसदी से भी कम प्रोफेसरों के दम पर यह यूनिवर्सिटी कैसे चल रही है.

छात्रों को प्रोफेसर नहीं मिल रहे हैं, वे बर्बाद हो रहे हैं, जो प्रोफेसर हो सकते थे उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है. वे भी बर्बाद हो रहे हैं. इसी तरह नॉन टीचिंग में भी 1099 पद ख़ाली हैं. सरकारों ने भर्तियां बंद कर दी हैं. कॉलेज और यूनिवर्सिटी की इमारत ही चमकती नज़र आ रही है मगर सबके सब खंडहर में बदल गए हैं. आप इन विषयों पर किसी नेता को बोलते नहीं देखेंगे. कैसे बोंलेगे, फिर उन्हें बताना पड़ेगा कि इन कॉलेजों में शिक्षक क्यों नहीं हैं औ कब तक होंगे. आख़िर मधुनबी, बेगुसराय और दरभंगा के लोगों ने अपने कॉलेजों का यह पतन कैसे स्वीकार किया.

1940 में बना था, मधुबनी का आर के कॉलेज. स्थानीय व्यापारी थे, रामकृष्ण पूर्वे, उन्हीं के कारण और उन्हीं के नाम पर ये कॉलेज है। शहर ने भी रामकृष्ण पूर्वे को भुला दिया होगा, अब सबको आर के कॉलेज ही याद रहा होगा. यहां इंटर से लेकर प्रोस्ट ग्रेजुएट के 15,000 छात्र पढ़ते हैं. आप यकीन नहीं करेंगे कि 15000 छात्रों के लिए यहां मात्र 30 प्रोफेसर हैं. एक प्रोफेसर पर 500 छात्र आएंगे. क्या यह मज़ाक नहीं चल रहा है. क्या एक शिक्षक 500 छात्रों को पढ़ा सकता है? मीडिया दिल्ली और दिल्ली के भी तीन चार नेताओं के बयानों के पीछे भाग रहा है लेकिन क्या हम सोच रहे हैं कि देश कहां भाग रहा है. 30 प्रोफेसर मिलकर क्या 15000 छात्रों को पढ़ा सकते हैं. इस नियति को मधुबनी ज़िले के लोगों ने स्वीकार भी कैसे कर लिया. यहां हिन्दी, उर्दू, भूगोल और इतिहास में कोई शिक्षक ही नहीं है. यही नहीं गणित, जीव विज्ञान और वनस्पति विज्ञान में एक एक टीचर हैं. इन विषयों में गेस्ट या ठेके पर शिक्षक रखने की भी व्यवस्था नहीं है. जिस विषय के शिक्षक नहीं हैं वहां क्लास नहीं होती है. तो क्या कॉलेज सिर्फ एडमिशन लेने भर की व्यवस्था का नाम है.

प्रिंसिपल से लेकर प्रोफेसर किसी से बात कीजिए, सब चुप हो जाते हैं. कोई कैमरे पर नहीं आना चाहता है. घबरा कर कोई बोल ही नहीं रहा. मतलब आप यह बता दें कि कॉलेज बिना शिक्षकों के चल रहे हैं जो कार्रवाई हो सकती है. कार्रवाई करने वाले को इतना यकीन है कि शिक्षक भले न हो मगर उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी. कार्रवाई की जगह क्या राज्य सरकार को सारे छात्रों को एडमिशन फीस वापस नहीं करना चाहिए. यह अपने आप में घोटाला है कि एडमिशन फीस लीजिए और पढ़ाने के लिए टीचर मत रखिए. कैमरे पर सिर्फ नेता आते हैं और पैनल में उनके प्रवक्ता. कई लोगों से बात कर पता चला है कि 41 कॉलेजों में से 28-30 कॉलेज में कोई स्थायी प्रिंसिपल नहीं है. प्रभारी के बदौलत ये सारे कॉलेज चल रहे हैं. ये उस मिथिलांचल का हाल है जहां से न जाने कितने प्रोफेसर, आईएएस से लेकर आईपीएस बने होंगे.

समस्तीपुर में उदयानाचार्य रोसड़ा कॉलेज है. उदयानाचार्य संस्कृत के बड़े मशहूर विद्वान हुए. उन्हीं के नाम पर यह कॉलेज है. 1960 में इसे बनाने के लिए राम विलास पूर्वे और राम अवतार पूर्वे ने ज़मीन दान में दी थी. 11 एकड़ के कैंपेस में यह कॉलेज 1960 से चल रहा है. इसका कबीर भवन लगता है कबीर पर ही रो रहा है. इमारत देखकर लगेगा कि सब ठीक ही है मगर यहां के 1600 छात्रों को पढ़ाने के लिए मात्र 8 प्रोफेसर हैं. यहां 34 पद मंज़ूर हैं लेकिन 26 पद ख़ाली हैं. हिन्दी में तो कोई प्रोफेसर ही नहीं है. गणित में भी एक ही प्रोफेसर है. इतिहास पोलिटिकल साइंस, भूगोल, संस्कृत में कोई प्रोफेसर नहीं है. यकीन नहीं होता कि यहां के छात्र किसका चेहरा देखने कॉलेज आते होंगे, क्या इस कॉलेज में कभी कोई मंत्री नहीं जाते होंगे, कोई सांसद या विधायक का कार्यक्रम भी नहीं होता होगा. यहां पढ़ने वाले छात्रों के साथ कितना बड़ा छल हुआ, क्या उन्हें कभी पता चला होगा.

हमने एक शिक्षक संघ के सचिव से सवाल किया कि माता पिता तो आते होंगे आप लोगों के पास कि पढ़ाई नहीं हो रही है, छात्र भी तो आते होंगे. उनका जवाब जानता था मगर आप शायद नहीं जानते होंगे. प्रोफेसर साहब ने कहा कि कोई माता पिता नहीं आता है पूछने कि उनके बच्चों के साथ क्या हो रहा है. छात्र भी नहीं आते हैं, वे बस इसी फिराक में रहते हैं कि तीन साल बाद डिग्री तो मिल जाएगी. बिहार में उच्च शिक्षा ध्वस्त है. लोकतंत्र में हमारी चेतना का यह पतन वाकई चिंताजनक है. क्या आपने सोचा है कि बगैर गुरु के भारत विश्व गुरु कैसे बनेगा, क्या अपने नौजवान छात्रों को बेवकूफ बनाकर भारत को विश्व गुरु बनाया जा रहा है, ये दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए हो रहा है या भारत के नौजवानों की आंखों में धूल झोंकने के लिए हो रहा है.

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्लाय की इमारत आप देख रहे हैं. 1972 में यह विश्वविद्वालय कायम हुआ था. चार ज़िलों के 69 कालेज का संचालन करता है. दरभंगा महाराज की दी गई ज़मीन और इमारत में यह विश्वविद्यालय चलना शुरू किया था. यहां क्लास न के बराबर चलती है. इस विश्वविद्लाय का काम सिर्फ मुख्य चार काम रह गए हैं. फार्म भरना, एडमिशन कराना, परीक्षा का फार्म भराना और रिज़ल्ट प्रकाशित करना. पढ़ाई इसका काम नहीं है. इस यूनिवर्सिटी का सेशन एक साल लेट चल रहा है. तीन साल के बीए रिज़ल्ट आने में चार साल से अधिक समय लग जाता है. इसे मैनेज करने के लिए तरह तरह का तरीका निकाला जाता है. बीए प्रथम वर्ष का रिज़ल्ट निकला है. बिना पढ़ाई के बच्चे पास हुए. वीसी कहते हैं कि जल्दी ही इन्हें दूसरे वर्ष का फार्म भरने के लिए कहा जाएगा और दूसरे साल की पढ़ाई के बग़ैर परीक्षा दिला दी जाएगी. इस तरह से एक साल से पीछे चल रहे सेशन को नियमित कर दिया जाएगा. मगर जो छात्र दो साल तीन साल बग़ैर पढ़े पास होंगे उनका जीवन तो हमेशा के लिए अनियमित हो जाएगा.

इन कॉलेजों में शिक्षकों के पद ख़ाली हैं मगर गेस्ट या एडहॉक रखने की अनुमति नहीं है. दिल्ली विश्वविद्लाय में कम से कम एडहॉक के सहारे पढ़ाई का काम चलता रहता है. वाइस चांसलर ने बताया कि ई पाठशाला शुरू करने जा रहे हैं ताकि शिक्षक की कमी पूरी की जा सके. जो रिटार्यर्ड प्रोफेसर हैं उन्हें पढ़ाने के लिए रखा जाएगा. मगर खाली जगहों पर नए प्रतिभाशाली नौजवानों को नहीं रखा जाएगा. बिहार में इस समय बहाली चल रही है. धीमी गति के समाचार की तरह. ज़रूरत से बहुत कम शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है. हाल की बहाली से यूनिवर्सिटी को कई शिक्षक मिले हैं लेकिन इसके बाद भी 2018-19 के बजट पत्र के अनुसार मिथिलांचल विश्वविद्लाय में 1312 पद ख़ाली हैं.

सी एम साइंस कॉलेज दरभंगा का प्रतिष्ठित कॉलेज है. इसे नैक ने ए ग्रेड दिया है. इसके बाद भी 50 फीसदी पद खाली हैं. 106 प्रोफेसर होने चाहिए थे, लेकिन यहां मात्र 27 प्रोफेसर ही पढ़ा रहे हैं. 79 प्रोफेसरों की कमी है इस कॉलेज में. यहां 3000 छात्र पढ़ते हैं. इसके बाद भी नैक ने ए ग्रेड दिया है. बग़ैर शिक्षक के क्या किसी कॉलेज को ए ग्रेड मिल सकता है. क्यों मिलना चाहिए. क्या यही भारत का ए ग्रेड है कि पढ़ाने के लिए टीचर नहीं है. सी एम साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल ने कहा कि पटना यूनिवर्सिटी में भी कोई ए ग्रेड कॉलेज नहीं है. सी एम साइंस कॉलेज है. यहां पर क्लास होती है. इसकी प्रयोगशाला और लाइब्रेरी काफी अच्छी है.

कॉलेज में क्लास बंद है. नतीजा कॉलेज के बाहर कोचिंग सेंटर की भरमार हो गई है. भारत की शिक्षा व्यवस्था इन्हीं कोचिंग सेंटर के भरोसे चल रही है. जो न किसी मानव संसाधन विकास मंत्री के अंतर्गत आते हैं और न किसी यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के. इस बोर्ड को आप देखिए. दीपावली का बंपर धमाका है ट्यूशन के लिए. दीपावली के अवसर पर बारहवीं क्लास के कॉमर्स के लिए 7000 का एडमिशन 1500 में मिल रहा है. ट्‌यूशन के भी एसी और नॉन एसी कैटगरी हैं. नॉन एसी क्लास रूम सस्ता होता है. एक विषय की फीस 4500 से 6000 होती है. एसी क्लास रूम में एक विषय के लिए 7 से 8000 ट्यूशन फीस है. इन विश्वविद्यालयों में कमज़ोर आर्थिक वर्ग के छात्र पढ़ते हैं. उन पर सरकारें दो प्रकार का बोझ डालती हैं. पहले उनसे फीस लेकर टीचर नहीं देती हैं. फिर बाहर जाकर ट्यूशन फीस देने के लिए मजबूर करती हैं. एक नज़र में लगेगा कि भारत की शिक्षा सरकार चला रही है, मगर गौर से देखिए तो ग़रीब मां बाप भारत की शिक्षा व्यवस्था का भार ढो रहे हैं. बदले में उन्हें शिक्षा की जगह बच्चों की बर्बादी मिल रही है.

बीस साल से यह सब हो रहा है. गांव गांव कस्बों कस्बों में बने कॉलेजों को समाप्त कर दिया गया है. कितने लोगों ने बड़े अरमान से ज़मीनें दान दीं, संपत्ति दान दी मगर सब रंगेपुते खंडहर में बदल गए हैं. रंगेपुते खंडहर इसलिए कहा क्योंकि डेवलपमेंट फीस और मिलने वाले अन्य फंड से बहुत से कॉलेज चमकते नज़र आते हैं. बिहार के बेगुसराय में लड़कियों का एक नामी कॉलेज है. नामी किस लिए है पता नहीं मगर यहां साढ़े दस हज़ार लड़कियां पढ़ती हैं.

श्री कृष्ण महिला कॉलेज नैक की ग्रेडिंग के अनुसार बी ग्रेड कॉलेज है. नेशनल एक्रीडेशन काउसिंल कॉलेजों की ग्रेडिंग करती है. इस बी ग्रेड कॉलेज में साढ़े दस हज़ार लड़कियां पढ़ती हैं और बेगुसराय ज़िले का यह एक मात्र सरकारी महिला कॉलेज है. 1958 में इस कॉलेज को बिसेश्वर प्रसाद सिंह और सरयू प्रसाद सिंह ने बनवाया था. अपनी ज़मीन दान में दी. सरयू सिंह विधायक थे और स्वतंत्रता सेनानी भी. किस हिसाब से साढ़े दस हज़ार छात्राओं के लिए प्रोफसरों के तीस पद मंज़ूर हैं, पद मंज़ूर करने वाले ने ज़रूर गणित में फेल होने का बदला लिया होगा. फिर भी 30 में से 9 ही प्रोफेसर हैं यहां. जहां साढ़े दस हज़ार में 9 से भाग कीजिए तो पता चलेगा कि एक प्रोफेसर पर 1200 बच्चों की ज़िम्मेदारी है. क्या 1200 लड़कियों को एक प्रोफेसर पढ़ा सकती हैं. संस्कृत, उर्दू, केमिस्ट्री, बॉटनी में शिक्षक नहीं हैं.

बिहार में लड़कियों की पढ़ाई मुफ्त है. एडमिशन के लिए कोई फीस नहीं लगती है. क्लास में भी प्रोफेसर नहीं हैं. राज्य सरकार ने दो बजट सत्र से कॉलेज को पैसा नहीं दिया है. बिजली और इंटरनेट का बिल तक नहीं दिया जा सका है. कंप्यूटर और अन्य काम के लिए दिहाड़ी पर लोग रखे जाते हैं मगर फंड के अभाव में कॉलेज वो भी नहीं रख पा रहा है. ये हाल है डिजिटल इंडिया का.

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