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This Article is From Aug 06, 2023

मणिपुर संकट पर संसद की कार्यवाही रोकना कितना तर्कसंगत है?

Satish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 06, 2023 09:56 am IST
    • Published On अगस्त 06, 2023 07:21 am IST
    • Last Updated On अगस्त 06, 2023 09:56 am IST

भारत की संसदीय व्यस्था में संसद पर प्रधानमंत्री के बयान को लेकर मचा घमासान बेतुका और संसदीय मर्यादा के अनुकूल नहीं है. प्रधानमंत्री मणिपुर की घटना पर पहले ही अपनी बात को देश के सामने स्पष्ट कर चुके थे कि मैं अत्यंत दुखी हूं, किसी भी तरह से दोषी व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी. गृह मंत्री ने संसद में अपनी बात को रखने की कई बार कोशिश की लेकिन विपक्षी पार्टी ने संसद को चलने से रोका, हंगामा किया और संसद की कार्यवाही ठप्प पड़ गई. विदित है कि मई में जब हिंसा की शुरुआत हुई थी तब गृह मंत्री तुरंत मणिपुर गए थे और स्थिति को संभालने का हर तरह का उपाय किया गया था. तकरीबन 30 हजार पैरा मिलिट्री फोर्स को तैनात किया गया था, जिससे हिंसा की आग भभक न पाए.

इसके बावजूद संसद में विपक्षी दलों का रुख राजनीतिक समीकरण को समेटने का ज्यादा था और समस्या को सुलझाने का कम था. 21 सांसदों की टीम मणिपुर के हिंसा ग्रस्त इलाके से घूमकर लौटी है उसके उपरांत भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. व्यधान निरंतर जारी है. किसी भी घटना की तुलनात्मक व्याख्या उचित नहीं है. 1993 में जब व्यापक हिंसा हुई थी उस समय कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. तत्कालीन गृह मंत्री महज चंद घंटों के लिए मणिपुर गए थे. उसके बाद 2004 और 2010 में भी अनेक घटनाएं हुई थीं. आज की तारीख में मणिपुर की समस्या महज जातीय युद्ध तक सीमित नहीं है. कई अन्य तत्व उसमें जुड़ते चले गए. धार्मिक मतभेद जिसके पीछे धर्म परिवर्तन एक महत्वपूर्ण कारण है.

क्रिश्चियन मिशनरी आजादी के पहले से ही वहां पर अपना जाल बिछाए हुए हैं.आजादी के बाद केंद्र सरकार ने इन मिशनरी को खूब फलने फूलने का मौका दिया.फिर ड्रग्स माफिया का विस्तार तेजी से हुआ. दो दशकों में चार गुना इजाफा हुआ है. मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने ड्रग्स माफिया को खत्म करने की कोशिश की. इसके कारण भी स्थिति बिगड़ती गई. म्यांमार की सीमा 1600 किमी की है जो मणिपुर से मिलती है. सीमा अत्यंत बीहड़ जंगलो के बीच है. खुद म्यांमार की राजनीतिक हालत अत्यंत दयनीय है. चीन की धार भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में बढ़ती गई है. सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने मणिपुर में चीन की भूमिका से इंकार नहीं किया है. दरअसल चीन की सोच भी भारत को निरंतर भेदने की और कमजोर करने की रही है.

अगर कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की बात करें तो केंद्र सरकार ने वह सब कुछ किया है जो करना चाहिए था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से फोन पर बात कर हालात की जानकारी ली है. इसके बाद केंद्र सरकार ने रैपिड एक्शन फोर्स की 5 अतिरिक्त कंपनियों को मणिपुर में तैनात कर दिया है. असम राइफल्स की 34 और भारतीय सेना की 9 कंपनियां पहले ही राज्य में तैनात हैं. राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने वीडियो मैसेज जारी कर लोगों से शांत रहने की अपील की. राज्य में यह हिंसा 'पहाड़ बनाम घाटी' की जंग है. राज्य का 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है, लेकिन वहां रहने वाली नागा और कुकी आदिवासी आबादी राज्य की कुल आबादी का 40 फीसदी है.

राज्य में आदिवासी संरक्षण के लिए तय कानूनी प्रावधानों के तहत पहाड़ी इलाकों में केवल वह आदिवासी समुदाय ही बस सकता है, जो अनुसूचित जनजातियों में दर्ज है. इस प्रावधान के कारण घाटी में बसा मैतेई समुदाय राज्य की आबादी में 53 फीसदी हस्सेदारी के बावजूद पहाड़ी इलाकों में नहीं बस पा रहा है. इसके उलट नागा और कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों से रोजगार के लिए घाटी वाले इलाकों में आकर बस रहे हैं. इसी के चलते मैतेई समुदाय और नागा-कुकी के बीच विवाद चल रहा है.

ऐसे माहौल में मणिपुर की समस्या पर राजनीतिक रोटी सेंकना कितना दुखद बन सकता है. निहित राजनीतिक दांवपेच राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर नहीं होना चाहिए. अगर कारण की जांच पड़ताल करेंगे तो भी जातीय हिंसा और धार्मिक वर्गीकरण राष्ट्र की अस्मिता और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. मणिपुर में ताजा हिंसा का कारण मैतेई समुदाय की तरफ से लंबे समय से चल रही एसटी में शामिल करने की मांग को पूरा करने की कोणशश है. मणिपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने राज्य सरकार को मैतेई को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया है. इसके विरोध में नागा-कुकी समुदाय के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने बुधवार को आदिवासी एकता मार्च निकाला था. इसी एकता मार्च के दौरान दोनों समुदायों के बीच हिंसा भड़क गई, जो बाद में बेहद ज्यादा बढ़ गई.

प्रश्न केवल मैइती समुदाय को अनुसूचित जाति के दर्जे तक सीमित नहीं है. कुकी समुदाय एक अलग प्रशासनिक इकाई की मांग पर अटकी हुई है. अर्थात एक अलग राज्य केवल कुकी समुदाय के लिए होगा. यह सोच विभाजनकारी सोच है. अगर इस निर्णय पर बात बनेगी तो उत्तर पूर्वी राज्यों में कई नए इकाई बनकर तैयार हो जाएंगी. बाहरी शक्तियां वर्षों से इसी बात की हिमायत करती रही हैं. दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य मणिपुर की हिंदू संस्कृति का भी है जो उसकी असल पहचान है. हिदू मंदिर शैव भक्ति मणिपुर की अस्मिता से जुड़ी हुई है. अंग्रेजी तंत्र ने मणिपुर में मिशनरी का जमघट खड़ा किया. उन्हें पाला पोसा और कुकी समुदाय को क्रिश्चियन में बदलने में कामयाबी हासिल कर ली. कोशिश मैतई पर भी हुई लेकिन उसमें उन्हें सफालता नहीं मिली. नेहरू के कार्यकाल में क्रिश्चियन फंडिंग एजेंसियों को फैलने फूलने का खूब मौका दिया गया क्योंकि धर्मनिरपेक्षता के रंग को गहरा करना प्रोग्रेसिव सोच मानी गई. यह सब कुछ हिंदू धर्म को कमजोर करके ही किया गया. पुरानी चूक एक मवाद बन गई है, जो कैंसर से भी घातक है. ऐसे हालत में अंदरूनी राजनीति कितनी कष्टदायक हो सकती है.

प्रधानमंत्री की नजर में मणिपुर की समस्या कई पेचेदा तथ्यों से जुड़ी हुई है. प्रधानमंत्री ने गृह मंत्री को सुझाव और आदेश भी दिए हुए हैं. अपने कैबिनेट मंत्री को निरंतर मणिपुर जाने और समस्या को सुलझाने की हिदायत दे चुके हैं. उसके बाद इस तरह का तर्क यथोचित नहीं है कि संसद में प्रधानमंत्री ही आकर बोलें तब बात बनेगी. यह राजनीतिक विरोध नहीं हुआ, एक व्यक्तिगत घृणा और उपहास है, जिसकी शुरुआत दो दशकों से कांग्रेस पार्टी करती आ रही है. क्या व्यक्तिगत विद्वेष संसदीय व्यवस्था को ख़त्म करने की साजिश रच सकता है? देश के लिए मणिपुर की समस्या महज एक क्षेत्र की समस्या नहीं है बल्कि पूरे देश की समस्या है, उस नजरिए से इसे देखना और समझना
होगा. 

सतीश कुमार नई दिल्ली में इग्नू के राजनीतिक संकाय में प्रोफेसर हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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