हे सिंधु राष्ट्र के नागरिकों, जीत के जश्न में योजनाओं के स्लोगन मत ठेलो

हे सिंधु राष्ट्र के नागरिकों, जीत के जश्न में योजनाओं के स्लोगन मत ठेलो

पीवी सिंधु.

किसी खिलाड़ी की जीत पर जश्न खिलाड़ी की तरह मनाया जाना चाहिए. उस खेल के लिए मनाया जाना चाहिए, न कि भारत की सामाजिक समस्याओं के निदान के लिए किसी नारे के रूप में. पीवी सिंधु की जीत का जश्न हम इसी तरह मनाना पसंद करेंगे. मना भी रहे हैं. कल तक जैसे बलूचिस्तान के बारे में पता नहीं था उसी तरह बैडमिंटन के बारे में भी कम जानते थे, मगर पीवी सिंधु के खेल से लगा कि इस खेल के हम भी कभी चैंपियन होने वाले रहे होंगे लेकिन प्रतियोगिता से ठीक पहले स्कूल बस मिस हो गई थी.

सिंधु जब खेल रही थी तब उसके चौड़े कंधे पर हम सब सवार हो गए. वह भी हम सब नकारों को लादे हुए मस्ती में शॉट पर शॉट मारे जा रही थी. जापान भी मेडल जीतने वाले मुल्कों में से है. एकाध गेम में न भी जीते तो क्या फर्क पड़ता है? ऐसा ही लगा जब मैंने सिंधु के सामने जापान की खिलाड़ी को खेलते देखा. उसके कंधे पर कोई भार ही नहीं था, इसलिए वह सिंधु के शॉट के सामने लड़खड़ा गई. सिंधु हम सबका भार उठाए खड़ी रह गई.

सिंधु के जीतते ही हम सब उसके कंधे से उतरे और इधर-उधर भागने लगे, नाचने लगे, गाने लगे. ऐसा लगा कि 'सिंधु राष्ट्र' का सपना साकार हो गया है और अब 'स' को 'ह' नहीं 'स' ही पढ़ा जा रहा है! पीवी सिंधु की जीत पर  विशाल 'गौरव सेना' मैदान में उतर आई है और जमकर गौरवगान होने लगा. बधाइयों का तांता लगने लगा. हम ऐसे झूमे जैसे सिंधु की जीत के पीछे सदियों से गांव गली में बिखरी पड़ी खेल सुविधाओं का हाथ है. भारत में बैडमिंटन के ही खिलाड़ी पाए जाते हैं. दिन भर दफ्तर की थकान और तोंद के उभार से मुक्ति पाने के लिए जिमखाना से लेकर चितखाना क्लब तक में खेलने वाले पीवी सिंधु के पूर्वज और सहचरों के पुण्य प्रताप और आशीर्वाद से सिंधु जीती है. पिछले ही बजट में भारत को बैंडमिटन प्रधान देश घोषित किया जा चुका है. इम्तहानों में निबंध लिखते-लिखते छात्र अगली पंक्ति में मचल उठता है कि भारत ही वह मुल्क जहां खेल मंत्री न बनाने पर रक्षा मंत्री इस्तीफा दे देते हैं!

सिंधु को साझी मानकर हम दीपा की कसम खाते हैं कि बबिता की हार का बदला लेंगे लेकिन इस वक्त हम भारत के लोग बहुत खुश हैं और पुष्पक विमान से पुलेला गोपीचंद पर पुष्प वर्षा करना चाहते हैं मगर रात होने के कारण एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने अनुमति नहीं दी तो हम लोग धरने पर बैठकर गोपीचंद को भारत रत्न की मांग करने लगते हैं. गोपीचंद बाहर आते हैं और हमें शटअप कहते हुए हमारी मांग को ठुकरा देते हैं. कारण पूछने पर कहते हैं कि मुझे कोक का विज्ञापन नहीं करना है इसलिए मुझे भारत रत्न नहीं चाहिए. ऐसा कोच किसी बैडमिंटन प्रधान देश में ही हो सकता है.

लिहाजा मांग-वांग छोड़कर हम फिर से आहू-आहू करने लगते हैं. पीवी सिंधु की जीत हमारी जीत है. आने दो अबकी सर्दी, पार्किंग में नेट तानकर प्रैक्टिस शुरू कर देंगे और पार्किंग के लिए कहीं और अतिक्रमण कर लेंगे. हां अब तो बिजली भी सरप्लस है इसलिए सौ वॉट के बल्ब की जगह फ्लड लाइट लगाकर खेलेंगे. इंडोर-आउटडोर बैडमिंटन का ही शोर होगा... सब्र करो... सब होगा.

मेरे हमवतनो, आपसे एक गुजारिश है. सिंधु और साक्षी की जीत पर विजेता की तरह नाचो लेकिन उसके बहाने बीच-बीच में सरकारी और सामाजिक योजनाओं के स्लोगन मत ठेलो. सोशल मीडिया पर कोई इसी बहाने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की जय बोल रहा है, कोई इन खिलाड़ियों को बहन घोषित कर रक्षाबंधन पर बहन का उपहार बता रहा है तो कोई लिंग अनुपात के आंकड़े। हज़रात... इनकी कामयाबी किसी सरकारी योजना की कामयाबी नहीं है. न ही इनकी जीत से हमारा समाज रातों रात सुधर जाने वाला है. अगर ऐसा होने वाला है तो हमारे सामने पीटी ऊषा की कामयाबी के बाद लड़कियों को लेकर समाज में आए बदलाव का रिपोर्ट कार्ड पेश कीजिए. जब हम पीटी ऊषा के बाद नहीं सुधरे तो सिंधु के बाद कैसे सुधर जाएंगे?

मुझे यकीन है सिंधु और साक्षी की कामयाबी पर नाचने वाले लोग कल से जब अपने बेटों के लिए बहू देखने जाएंगे तो सिंधु या साक्षी नहीं लाएंगे क्योंकि ऐसी बेटियां दहेज के साथ नहीं आती हैं. मुझे यह भी यकीन है कि नब्बे फीसदी माता-पिता इस जोश में भी दहेज का नुकसान नहीं उठाएंगे. मुझे यकीन है कि हमारे नब्बे फीसदी युवा अपने माता-पिता को दहेज लेने से मना कर पिता की आज्ञा का पालन करने की भारतीय संस्कृति की परंपरा को नहीं तोड़ेंगे. इसलिए मित्रो सिंधु और साक्षी की जीत का जश्न 'गिल्ट फ्री' यानी अपराधबोध मुक्त होकर मनाएं. अब जीत गए हैं तो सिंधु के कंधे से उतरिए. उसके कंधे पर योजनाओं के स्लोगन मत लादिए. इस जीत को एक खिलाड़ी की साधना की जीत समझकर मनाइए.. गाइए... जय सिंधु, जय साक्षी, जय हिंद.


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