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This Article is From Sep 03, 2015

आरएसएस की क्लास में सरकार की पेशी, संघ के एजेंडा पर चल रही है सरकार?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 03, 2015 23:16 pm IST
    • Published On सितंबर 03, 2015 21:11 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 03, 2015 23:16 pm IST
सरकार किसकी होती है। यह सवाल इस सवाल से अलग है कि सरकार किसके लिए होती है। क्या सरकार उसकी नहीं होती जिसकी पार्टी चुनाव में जीतती है। दरअसल, यह कोई मुश्किल सवाल नहीं है। कई बार पार्टियां बचकानी दलीलें देकर इस सवाल को मुश्किल कर देती हैं। सरकार पार्टी की नहीं होगी तो किसकी होगी। पार्टी में कौन-कौन है या पार्टी किसकी है ये अलग सवाल हो सकता है।

हम सब जानते हैं और बीजेपी भी स्वीकार करती है कि उसके चुनाव जीतने में आरएसएस के संगठन और साधारण कार्यकर्ताओं का बड़ा रोल होता है। संघ के कार्यकर्ता अपना घर बार छोड़ महीनों चुनावी राज्य में रहने चले जाते हैं। बिहार के गांव-गांव में दूसरे राज्यों से संघ के कार्यकर्ता गए हैं। संघ यह काम जनता से छिपा कर नहीं करता। उसके सामने जाकर करता है। ये और बात है कि संघ बीजेपी के अलावा किसी और को नहीं जीताता है।

तो आप संघ और बीजेपी में कैसे अतंर करेंगे और क्यों करेंगे। जब संघ के प्रचारक बीजेपी में अध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री बनते हैं तो इस अंतर को सुविधानुसार देखना या नज़रअंदाज़ करना क्या दोहरापन नहीं होगा। मेरे हिसाब से तो आरएसएस को सरकार के हर काम का हिसाब लेना चाहिए। बल्कि सरकार और संघ के बीच एक मोबाइल ऐप भी होना चाहिए, जिसमें हर फैसला लेने के पहले और लेने के बाद आ जाए और दोनों के बीच रीयल टाइम में संवाद हो जाए।

दिल्ली में वसंत कुंज इलाके में होटल ग्रैंड के पीछे मध्य प्रदेश सरकार का एक गेस्ट हाउस है मध्यांचल। यहीं पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पिछले दो दिनों से बीजेपी और मोदी सरकार के मंत्रियों से हिसाब मांग रहा है। बीजेपी को लंबे समय से कवर करने वाले हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यहां राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और उसके भातृ संगठनों के नब्बे से अधिक नेता मंत्रियों से काम का हिसाब ले रहे हैं।

इस बैठक का मकसद है कि मोदी सरकार को संघ के एजेंडे से भटकने नहीं दिया जाए। तीन दिनों तक सभी बड़े मंत्री आकर अपने विभाग के काम का हिसाब दे रहे हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण समन्वय बैठक को राम माधव ने सामान्य बैठक कहते हैं। क्या किसी सामान्य बैठक में तीन दिन तक मंत्री लाइन लगाकर अपने विभाग का हिसाब देते हैं। प्रधानमंत्री तो मंत्रियों से हिसाब लेते ही है फिर संघ प्रमुख और उनके सहयोगी संगठन क्यों हिसाब ले रहे हैं।

खैर मैं सिर्फ कुछ ही मंत्रियों के नाम पढ़ रहा हूं। वित्त मंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू, स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा, रसायन व उर्वरक मंत्री अनंत कुमार, कलराज मिश्र, राधा मोहन सिह, निर्मला सीतारमण। बीजेपी अध्यक्ष, पार्टी का पूरा संसदीय बोर्ड भी इस बैठक में शामिल है। अब इस अति महत्वपूर्ण बैठक को इतना भी सामान्य न कहा जाए कि ऐसा लगा कि इन सबके पास अचानक तीन दिन का एक्सट्रा टाइम बच गया तो सोचा कि क्यों न अरावली की खूबसूरत वादी में बने मध्यांचल में चलकर मध्यांतर का लुत्फ लिया जाए।

कहा गया कि सामाजिक आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा हो रही है। क्या ये चुनौतियां इतनी बढ़ गईं हैं कि संघ के सोलह संगठनों के सामने पूरी सरकार को हाज़िर होना पड़े। क्या यह अच्छी बात नहीं है कि मंत्रियों से काम का हिसाब लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सरकार की कामयाबी और नाकामी की जवाबदेही ले रहा है। अब यह देखना होगा कि जो संघ का एजेंडा है वो बीजेपी के विज़न डाक्यूमेंट या चुनावी घोषणापत्र में है या नहीं। क्या संघ का एजेंडा और घोषणापत्र के बीच दूरी होनी चाहिए।

इस बैठक से आने वाली ख़बरें भले ही सूत्रों की मेहरबानी की देन हों मगर अखिलेश शर्मा ने बताया कि संघ ने मीडिया के लिए बेहतर इंतज़ाम किये हैं। यहां तक कि मीडिया के शामियाने से भी फौगिंग मशीन से मच्छरों को भगाया गया है। हमारा इतना ख़्याल रखने के लिए आरएसएस का शुक्रिया। जो लोग सोशल मीडिया में आरएसएस का नाम लेकर हमें भला बुरा कहते हैं वो देखें कि आरएसएस हमारा कितना ख़्याल करता है।

अखिलेश शर्मा ने कहा कि शायद संघ यह जताने का प्रयास कर रहा है कि सरकार उसकी है। वो बॉस है। सरकार पार्टी और संघ के शीर्ष नेताओं के बीच हाट लाइन खुली रहती है इसलिए हर समस्या का समाधान निकाल लिया जाता है। वाजपेयी युग की तरह नहीं है कि हर वक्त तनाव ही रहता था। मोदी युग में ऐसा नहीं है। एक बात पर अखिलेश को लगता है कि जिस तरह से अमित शाह 15 लाख सदस्यों को कार्यकर्ता बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं उससे लगता है कि बीजेपी चुनाव के मामले में संघ पर निर्भरता कम करना चाहती होगी।

लेकिन आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद के सामने सरकार अपना प्रजेंटेशन करें तो लगता नहीं कि ये निर्भरता इतनी आसानी से खत्म होने वाली है। इस बैठक से ये तो दिखा कि सरकार संघ के प्रति जवाबदेह है और संघ सरकार की जवाबदेही को लेकर सचेत है। तीसरे दिन प्रधानमंत्री आ सकते हैं और अंत में संघ प्रमुख मोहन भागवत भाषण देंगे। अब आते हैं कि विपक्ष पर। उसका क्या एतराज़ है।

कांग्रेस का कहना है कि वन रैंक वन पेशन के लिए धरने पर बैठे सैनिकों से मिलने के लिए सरकार के पास वक्त नहीं है। क्या सैनिक से ज्यादा संघ महत्वपूर्ण हो गया है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि इस बैठक से यही लगता है कि रीमोट कंट्रोल अब सामने से कंट्रोल करने लगा है। मोदी भले ही प्रधानमंत्री हों लेकिन बास भागवत हैं। सरकार संघ की कठपुतली है। एनसीपी नेता ओमर अब्दुल्ला ने कहा कि क्या इस बैठक के बाद भी कोई मुझसे कहना चाहेगा कि ये सामाजिक संगठन है।

आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने कहा कि आरएसएस क्या संवैधानिक संस्था है जिसे सरकार रिपोर्ट कर रही है। इससे चुना हुआ संसदीय लोकतंत्र कमज़ोर हुआ है। अब आप समझ गए होंगे। कहीं ये इज़ इक्वल टू तो नहीं हो रहा है। मनमोहन सिंह सरकार के दौर में बीजेपी का ये मुख्य आरोप था कि मनमोहन सिंह तो प्रधानमंत्री है ही नहीं। सरकार तो दस जनपथ से चलती है। मनमोहन सरकार को रिमोट सरकार कहा गया।

आप जानते हैं कि यूपीए सरकार में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति बनी थी,  NAC की अध्यक्षा सोनिया गांधी थीं। यह एक किस्म का कैबिनेट पद था।  NAC की वेबसाइट पर लिखा होता था कि हमारा काम सरकार को इनपुट देना है ताकि उसे सामाजिक सुरक्षा की नीतियां बनाने में मदद मिले। कहीं यही बात आरएसएस तो नहीं कहता है। अब मैं यह नहीं कह रहा कि कांग्रेस में भी एक आरएसएस था या आरएसएस में भी एक कांग्रेस है।

प्लीज़ मेरे पीछे मत पड़ जाइयेगा। उन दिनों बीजेपी कहा करती थी कि  NAC से प्रधानमंत्री का पद कमज़ोर हुआ जो अब मोदी के आने के बाद मज़बूत हो गया है। आरएसएस की समन्वय बैठक से कांग्रेस को उम्मीद जगी है कि उनकी तरह इनके भी प्रधानमंत्री का पद कमज़ोर हुआ है या हो रहा है। याद कीजिए जब बीजेपी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुनना था। संघ आगे नहीं आता तो आज तक प्रधानमंत्री की उम्मदीवार को लेकर झगड़ा चल रहा होता।

जब उसकी भूमिका प्रधानमंत्री के उम्मीदवार चुनने से लेकर, जीताने तक में हो सकती है तो पूछने में क्यों न हो कि क्या काम हो रहा है। ये सवाल सुनकर तो बहुत लोग खुश हो गए होंगे लेकिन इस खुशी में कहीं यह सवाल मिस न हो जाए कि क्या वाकई कोई ऐसा है जो प्रधानमंत्री मोदी से हिसाब मांग ले। उनके मंत्री उनके अलावा किसी और को प्रजेंटेशन दे आयें। तब तो चल कर देखना ही चाहिए कि वो कौन है।

 

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