हमारी राजनीति में Is equal to हो गया है। यह एक ऐसी अवस्था है, जहां आकर सभी दलों की करतूत एक सी हो जाती है। इस अवस्था पर पहुंचते ही किसी दल के समर्थक अपने दल की करतूत को लेकर शर्मसार होना बंद कर देते हैं। Is equal to अवस्था फिर से उन्हें अपने दल को लेकर गौरवभाव से भर देती है। पूरा हिसाब इस बात पर आकर बराबर हो जाता है कि हमारी पार्टी की सरकार में घोटाला हुआ है, तो क्या हो गया। आरोप लगाने वाली पार्टी की सरकार में भी तो घोटाला हुआ है। सोशल मीडिया के दौर में Is equal to राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है। अगर कोई दल किसी घोटाले में फंसता है, तो जल्दी से दूसरे दल के घोटालों की खोज होती है। अगर कोई इस्तीफा नहीं देता है, तो जल्दी से दूसरे दल के नेता के इस्तीफ़ा न देने के उदाहरण खोजे जाते हैं ताकि Is equal to हो जाए।
मध्य प्रदेश में जब व्यापमं का मामला आया, तो बड़ी संख्या में लोग व्यापमं के सवालों की धार को कम करने के लिए अन्य राज्यों में हो रहे व्यापमं का ध्यान दिलाने लगे। इस पूरी कोशिश का मकसद यह नहीं होता है कि हर जगह व्याप्त व्यापमं को समाप्त किया जाए, बल्कि आरोप लगाने या व्यापमं को लेकर हंसने वालों के मुंह बंद किए जाते हैं। उन्हें Is equal to थ्योरी के ज़रिये अपराध बोध कराया जाता है कि चूंकि आप समाजवादी पार्टी की सरकार में हो रहे व्यापमं पर नहीं बोल रहे, इसलिए आप तटस्थ नहीं हैं।
ऐसे ही मॉनसून सत्र में बीजेपी व्यापमं और ललित गेट में घिरी तो अब उसके समर्थक इस ख़बर से उत्साहित होने लगे हैं कि गोवा और असम में कांग्रेसी सरकार के मंत्रियों पर किसी अमरीकी कंपनी से रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। बीजेपी के नेता तुरंत सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। सीबीआई की जांच की मांग भी Is equal to थ्योरी पर आधारित है जिसकी खोज संभवत मैंने की है। अगर आप चोरी कर रहे हैं तो Is equal to के सहारे ख़ुद को निर्दोष साबित कर सकते हैं कि जिस समय आप चोरी कर रहे थे, उसी समय में भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई और लोग चोरी कर रहे थे। इसलिए आपका चोर होना गुनाह नहीं है।
Is equal to की ढाल न हो तो राजनीतिक आरोपों का सामना करना मुश्किल हो जाए। इस Is equal to के कारण कितनों की कुर्सी बच जाती है। बीजेपी से कहिए कि आप जातिवादी राजनीति क्यों कर रहे हैं, तो वो कहेगी कि हम तो राष्ट्रवादी राजनीति कर रहे हैं। जातिवादी तो जनता दल वाले करते हैं। जनता दल से पूछिये कि आप जातिवादी राजनीति क्यों कर रहे हैं, तो वे कहेंगे कि बीजेपी से पूछिये। इस तरह से Is equal to की तलवार राजनीतिक दलों को बचाने का ही काम करती है। इससे सिर्फ पूछने वाले का सर कलम होता है। क्या करेंगे आप जब इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि दोनों ही पक्ष Is equal to हो गए हैं। इस अवस्था के बाद राजनीतिक फैसला सिर्फ निष्ठा पर आश्रित हो जाता है। अगर आप किसी पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं तो Is equal to के कारण आपसे कोई नहीं पूछेगा कि भाई आपकी पार्टी की सरकार में यह सब हुआ आप क्या महसूस करते हैं। जवाब आएगा कि कांग्रेस के राज में भी तो यही हुआ है। बीजेपी भी संसद में काम नहीं चलने देती थी, कांग्रेस भी नहीं चलने देगी। हो गया न Is equal to ।
Is equal to के कारण सार्वजनिक जीवन में राजनीतिक बहस शून्य की अवस्था में पहुंच गई है। सब एक जैसे हैं। सब घोटाले करते हैं। अब आप क्या करेंगे। दर्शक या जनता तो बहुत दिनों तक Is equal to अवस्था में नहीं रह सकती। वो एक मामले पर Is equal to करते ही दूसरे मामले पर चली जाती है। वहां से फिर मुद्दा दर मुद्दा बहस करते हुए Is equal to की अवस्था प्राप्त कर लेती है। जैसे गणित में एक सवाल पूछा जाता था कि एक बंदर इतनी ऊंचाई तक चढ़ता है और फिसलकर दो फीट नीचे आ जाता है। बताओ बंदर ने कितनी दूरी तय की। राजनीति में हर सवाल की हालत बंदर जैसी हो गई है। बंदरों की तरह फिसलकर दो-तीन फीट नीचे आ जाते हैं।
जल्दी ही अब नेता प्रेस कांफ्रेंस कर खुद ही बतायेंगे कि हमने भी व्यापमं से भी अच्छा घोटाला किया है। जैसा मध्य प्रदेश में हुआ था। जैसे टू जी में हुआ था, ठीक उसी तरह अपने राज्य में पुल बनाने का लाइसेंस देते वक्त हमने किया है। संविधान की धारा Is equal to के तहत हमें यह अधिकार प्राप्त है कि हम घोटाले करें और इस्तीफा न दें। सीबीआई को जांच सौंपने से पहले सबूत मिटा दें और सीबीआई पहले भी जांच कर ले तो कुछ न हो। Is equal to क्लॉज के कारण अब घोटाला करना आसान हुआ। हम सब एक हैं। जाओ तुमको जो करना है कर लो। जनता कभी एक नहीं होती। कैसे होगी। उसे कभी हिन्दू के नाम पर भड़कना है, तो कभी मुसलमान के नाम पर। कभी पिछड़े के नाम पर धड़कना है, तो कभी दलित के नाम पर। इसलिए Is equal to की सुविधा सिर्फ राजनीतिक दलों के लिए ही आरक्षित है।
इसलिए ज़रूरी है कि आप अगर किसी दल के समर्थक हैं तो दूसरे दल की बुराइयां खोजकर रखिये ताकि आपके दल की बुराई सामने आते ही दूसरे वाले का बताकर हिसाब बराबर कर लिया जाए। Is equal to ने समर्थकों को अपने दल के साथ रहने में काफी मदद की है। इससे होता यह है कि कोई भी दल आदर्श नहीं साबित होता। सब पर कोई न कोई आरोप लगा ही होता है। Is equal to के कारण जनता का एक विचित्र तरीके से राजनीतिकरण किया जा रहा है। इससे जनता भी सहज हो जाती है। उसकी निष्ठा पर कोई दबाव नहीं पड़ता। Is equal to के कारण जनता की निष्ठा का गुरुत्वाकर्षण शून्य हो जाता है। वह हवा में तैरने लगती है। जैसे ही नीतीश कुमार व्यापमं का ज़िक्र करें, बीजेपी के नेता धान घोटाले का ज़िक्र कर देंगे। इस तरह से ज़िक्र करते करते दोनों एक ही मेज़ पर लुढ़क जायेंगे। Is equal to हो जाएगा।
आप कुछ भी बोलिये आपसे उम्मीद की जाती है कि Is equal to के साथ ही बोलेंगे। अगर आपने ईद की बधाई दी और रथयात्रा की नहीं दी, तो आप सेकुलर नहीं हैं। आप छद्म सेकुलर हैं। आपको अगर महाराष्ट्र में ज़हरीली शराब से मरने वाले सौ लोगों की बात करनी है, तो तुरंत अगले ही पैरा में बिहार के छपरा में ज़हरीले भोजन से मरे स्कूली बच्चों की बात करनी होगी। सबकी बात करते हुए आना होगा तब आप मूल बात करने के उत्तराधिकारी माने जायेंगे। अब इसमें भी एक समस्या है। मान लीजिए कि व्यापमं की बात करने के लिए आप यूपी, बिहार के व्यापमों की बात करते आ रहे हैं, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि आपसे कोई पूछ देगा कि क्या आपने 2-जी पर बात की। बस आपकी निष्ठा संदिग्ध हो जाएगी और आप Is equal to के घेरे से बाहर कर दिये जायेंगे। राजनीतिक दल पूरी कोशिश करते हैं कि जिन पर आरोप लगा रहे हैं वो Is equal to को प्राप्त न कर सकें यानी उन पर आरोप न लगा सकें। जब तक Is equal to नहीं होता है तब तक आरोप लगाने वाले का नैतिक बल ऊंचा होता है।
सब भ्रष्ट हैं। सब पर आरोप हैं। जांच हैं तो उसे लेकर सवाल हैं। कुल मिलाकर Is equal to के कारण नेता और उनके समर्थकों की मौज हो जाती है। हर घोटाला जल्दी ही बर्गर और मिल्ककेक की तरह लगने लगता है। ट्विटर पर Is equal to वाले बहुत हैं। वे हर बात को बराबर कर देते हैं। बस उसके बाद कोई नहीं बताता कि अगर कांग्रेस, बीजेपी के बीच Is equal to हो गया तो क्या किया जाए। अगर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेताओं की डिग्रियां फर्ज़ी निकल आए तो क्या जाए। क्या इस तरह से दोनों घोटाले सही हो जाते हैं या दोनों ही ग़लत हो जाते हैं। अगर इसी तरह से अन्य दलों का भी आपस में Is equal to हो गया तो क्या किया जाए। फिर तो सवाल उठाने वाले को ही जेल भेज देना चाहिए। यह कहते हुए कि देखता नहीं बे, हम दोनों ने घोटाले किये हैं, तो आरोप किस पर लगा रहे हो। हम तो एक जैसे ही हैं। अगर आप कांग्रेस, बीजेपी की बात करेंगे तो कोई आकर कहेगा कि अरे आपने समाजवादी पार्टी या आम आदमी पार्टी की बात नहीं की है। उनके यहां कौन सा सब अच्छा है। वो भी इन्हीं के जैसे हैं।
हर तरह की बहस में Is equal to हो गया है। राजनीति थक सी गई है। बासी लगती है। अच्छा होता कि जनता भी अब घोषित कर दे कि हम अब जनता नहीं रहे। घोटाला सब करते हैं लेकिन हमें घोटाला करने वाली यही पार्टी पसंद है। इसलिए आप घोटाले या भ्रष्टाचार की बात कर हमें नाहक परेशान न करें। हम किसी न किसी दल के समर्थक हैं, हमें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि हमारे नेता ने घोटाले किये हैं। हम जनता का काम अपनी पार्टी का हर हाल में समर्थन करना है। हमें Is equal to करते रहना है। Is equal to राजनीति का बरमूडा त्रिकोण हैं, जिसमें जाकर सारे आरोप लापता हो जाते हैं। Is equal to गंगा है, जिसमें नहाकर सब पापी संन्यासी हो जाते हैं। सवाल उठाने वालों के लिए Is equal to फांसी का फंदा है। अगर उठाने से पहले या उठाते वक्त या उठाने के तुरंत बाद उसने दूसरों पर सवाल नहीं उठाए, तो वो तटस्थ नहीं है। अपराधी सिर्फ वही है जो तटस्थ नहीं है। देवता वही है जिसका जिस मुद्दे पर Is equal to हो गया है।
प्राइम टाइम में रोज़ Is equal to हो जाता है। तमाम वक्ता Is equal to करके चले जाते हैं। मैं घर जाकर जागता रहता हूं। आप टीवी देखकर थोड़ा मुझे गरिया देते हैं, इस-उस का दलाल बता देते हैं, पेमेंट भी नहीं भिजवाते और चैन से मेरे जैसे किसी को गरियाने चले जाते हैं। आपका यही काम बचा है कि देखो इसके लेख में Is equal to हुआ है या नहीं। नहीं हुआ है तो पक्का दलाल होगा। ज़िंदगी में किसी नेता के घर एक कप चाय नहीं पी, आये दिन सुनता रहता हूं कि इस-उस का दलाल हूं। दलाली में भी मेरा Is equal to हो गया है। अगर मैंने सभी की दलाली कर ही ली है, तो Is equal to हो गया। यह एक तरह की हिंसा है जो रोज़ हम जैसों के साथ होती है। हम इसी तरह से मारे जाते हैं। अपराधी तो वही है जो Is equal to नहीं हैं। जिसका Is equal to हो गया वो मुक्त है इस देश में। आपने ईद की बधाई दी, रथयात्रा की नहीं दी न। मैंने कहा था कि आप सेकुलर हैं। इस टाइप की सोच ही Is equal to की खोह से आती है जो खुद को देवता और दूसरे को पापी बनाते रहते हैं। बाकी आपकी मर्ज़ी।
This Article is From Jul 20, 2015
क्या आपने Is Equal To किया है?
Reported By Ravish Kumar
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Updated:जुलाई 20, 2015 12:15 pm IST
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Published On जुलाई 20, 2015 12:12 pm IST
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Last Updated On जुलाई 20, 2015 12:15 pm IST
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