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This Article is From Sep 15, 2017

क्या लालू यादव ने अपनी गलतियों से तेजस्वी का राजनीतिक भविष्य चौपट कर दिया?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 15, 2017 20:07 pm IST
    • Published On सितंबर 15, 2017 18:41 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 15, 2017 20:07 pm IST
तेजस्वी यादव देश के उन गिने चुने नेताओं में से एक हैं जिन्होंने अपने छोटे से राजनीतिक करियर में इतने उतार-चढ़ाव देख लिए हैं जिसे कुछ लोग पूरे जीवन में नहीं देख पाते. वो देश के उन नेताओं में से हैं जो गलत तरीके से संपत्ति अर्जित करने से लेकर बेनामी कंपनियों के मालिकों के साथ लेनदेन का आरोप झेल रहे हैं. उन्हें ये सब अपने पिता लालू यादव के चलते झेलना पड़ रहा है. लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष हैं और पूर्व रेल मंत्री रहे हैं.

तेजस्वी की मुश्किलों की जड़ में ये सच्चाई है और जब वो बोलते हैं कि जिस तथाकथित अपराध में उन्हें घसीटा जा रहा है, तब उनके मूंछ नहीं थे, तब वो तथ्यों के आधार पर सच बोल रहे हैं लेकिन ये भी सच है कि जब उन्हें मूंछ के साथ दाढ़ी आई तब उन्होंने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर जो कोठी, जो मॉल के लिए जमीन, या लाखों-लाख का कर्ज चंद सेकंड में माफ़ कर दिया जाता है, उसका क्या परिणाम होगा? खासकर जब आप लालू यादव के बेटे हों और आप उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बनने वाले हों, तब आपको एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए.

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शायद तेजस्वी सही में उस समय बहुत छोटे थे, जब उनके पिता इस देश में एक नहीं दो-दो प्रधानमंत्री के नाम पर मुहर लगाने वाले महत्पूर्ण शख्स थे. लालू अपने खिलाफ चारा घोटाले के मामला लंबित रहने के कारण प्रधानमंत्री बनने की इच्छा दबाकर मन मसोस कर रहे गए थे. लालू यादव वही शख्स हैं जिन्हें चारा घोटाले में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना पड़ी थी और जेल तक जाना पड़ा. ये सब ऐसे राजनीतिक जीवन की नसीहत हैं जिसे केवल याद कर लेने से आप गलती नहीं दोहराते.

लालू यादव के अलावा राबड़ी देवी की कमजोरी रही है येन-केन प्रकरेण अधिक से अधिक संपत्ति अर्जित करना. जब आपके घर में पार्टी का सांसद और करीबी प्रेम गुप्ता हो तब ये सब पाना आसान हो जाता है. लालू यादव और उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव अब महसूस कर रहे होंगे कि ये सब जीवन की मृगतृष्णा है. डिजिटल ज़माने में जहां सब कुछ कंप्यूटर पर एक क्लिक में मिल जाता है वहां ये सब करना राजनीतिक क्रब खोदने के समान है.

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तेजस्वी अपने खिलाफ चल रही जांच के लिए भले ही बीजेपी और केंद्र सरकार समर्थकों पर आरोप लगाएं लेकिन सब जानते हैं कि अगर उनके निर्माणाधीन मॉल की जमीन की मिट्टी पटना जू को बेचने का विवाद सामने नहीं आया होता तो शायद एक के बाद एक उनके और पूरे परिवार द्वारा अर्जित संपत्ति की कहानी का खुलासा नहीं हुआ होता. आपको लालू यादव की हिम्मत की दाद देनी होगी जिस माल की तीन एकड़ जमीन उन्होंने जिस कंपनी में पहले तेजस्वी और राबड़ी देवी को निदेशक और बाद में उसका नाम बदलकर मालिकाना हक़ लिया उस पर जब नौ वर्ष पूर्व विवाद हुआ था. तब लालू यादव रेल मंत्री रहते हुए इस्तीफा देने से केवल इस आधार पर बच गए थे कि उसका मालिकाना हक़ उनके या उनके परिवार के सदस्यों के नाम नहीं बल्कि उनके पार्टी के संसद प्रेम गुप्ता की पत्नी सरला गुप्ता की कंपनी के नाम है.

लालू यादव संपत्ति का मोह नहीं छोड़ पाते. उन्हें ये अति आत्मविश्वास हो गया था कि चूंकि अब वो रेलमंत्री नहीं हैं इसलिए उनका कोई बिगाड़ नहीं सकता. लेकिन वो भूल गए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रेल मंत्रालय में अनुभव के आधार पर लल्लन सिंह और शिवानंद तिवारी ने इस मामले को 2008 में उजागर किया था. चारा घोटाले के तरह ये आरोप भी दस्तावेज़ के आधार पर लगाए गए. साल बदल जाता है लेकिन दस्तावेज यथावत रह जाता है.

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राजद के नेता भी मानते हैं कि लालू यादव अगर तेजस्वी यादव को अपना सही अर्थो में राजनीतिक उत्तराधिकार देना था तब जमीन, मकान और मॉल के इस गड़बड़झाले से तेजस्वी को अलग रखना था. पार्टी के नेता मानते हैं कि लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले के जितने मामले लंबित हैं, वैसे में राजनीतिक रूप से उनका बहुत सकिय्र रहना आसान नहीं. खासकर लालू यादव का अपने कुछ अति महत्वाकांक्षी सलाहकारों की सलाह पर ये मान लेना कि नीतीश कुमार कुर्सी पर बैठे रहने के लिए वो हर कुछ उनके इशारे पर करेंगे, जैसा यूपीए-I के समय कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह करते थे. लालू इस बात का आकलन करने में बुरी तरीके से चूक गए कि नीतीश को एक लंबे समय तक वो डिक्टेट नहीं कर सकते हैं. खासकरके जब उनके साथियों में शहाबुद्दीन, राजभल्लव यादव और बालू माफिया का एक बड़ा वर्ग हो शामिल हो.  

मंत्री के रूप में हो या विपक्ष के नेता के रूप में तेजस्वी का प्रदर्शन चाहे जैसा हो, वह चर्चा का विषय जरूर रहा है. तेजस्वी, जब नीतीश मंत्रिमंडल में पथ निर्माण मंत्री थे, तब उन्होंने विभाग के कामकाज में शिकायत का कोई मौका नहीं छोड़ा. विधानसभा में भी उनका परफॉरमेंस संतोषजनक था. अपने विभाग के प्रोजेक्ट की मंजूरी को लेकर उन्होंने केंद्रीय मंत्री से मिलकर उसे मंजूर करवाने में कोई देर नहीं की. एक बार जब उन्होंने राज्य के लंबित परियोजना के लिए सभी सांसदों को चिठ्ठी लिखी तो लगा बिहार की सत्ता पर एकाधिकार जमाये और अब 65 की उम्र पार कर चुके लालू, नीतीश, रामविलास पासवान और सुशील मोदी का सही सब्दो में उत्तराधिकारी आ गया है और वो सही मायनों में राज्य के भावी मुख्यमंत्री हैं. खासकर सोशल मीडिया में उनकी जितनी दिलचस्पी और सक्रियता थी, उससे लगा बिहार में एक नेता है जो समय से ताल से ताल मिलाकर चल रहा है.  

तेजस्वी को जितनी जल्दी ऊंचाई मिली उससे कहीं तेजी से धरातल भी देखने को मिल रहा है. तेजस्वी अपने पिता लालू यादव की तरह बड़बोलेपन के शिकार हुए. सार्वजनिक मंच से उन्होंने नीतीश कुमार पर एहसान जताते हुए कहा कि मेरे चाचा नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे. वो शयद इस ग़लतफ़हमी के शिकार थे कि नीतीश कुमार उनकी इन सब बातों को सुनकर कुर्सी प्रेम में उन्हें और उनके पार्टी के प्रवक्ताओं को झेलते रहेंगे. तेजस्वी के पार्टी के लोग भी मानते हैं कि भले लालू यादव के पास 2015 में 81 विधायक जीतकर आए लेकिन उसमें एक बड़ा महत्वूर्ण फैक्टर नीतीश रहे. आप मात्र यादव-मुस्लिम और दलित के एक वर्ग के आधार पर कई सीटें तो जीत सकते हैं लेकिन आपके खिलाफ जो बिहार की राजनीति में गोलबंदी है, उसमें आप 40 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकते.

भले ही तेजस्वी यादव अब तक राजद के जनरेशन नेक्स्ट के नेता बनकर उभरे हैं लेकिन उनकी अपनी कुछ कमियां हैं. जो टीम उनके आसपास है, उसमें या तो उनके संबंधी हैं या स्वजातीय. राजनीति में आप कैसे लोगों को साथ और नजदीक रखेंगे, इसका कोई स्टाइल बुक नहीं है लेकिन अगर आपकी टीम में सभी वर्गों के लोगों का साथ नहीं होता तो आपका राजनीतिक सोच बड़ी नहीं होती. सबसे बड़ी बात है कि आप आम लोगों के लिए कितना सहज तरीके से उपलब्ध होते हैं और खासकर अपने पार्टी के अनुभवी नेताओं का कितना लाभ उठा पाते हैं. अभी तक तेजस्वी इन सभी मापदंड पर अपने पार्टी के बहुत से लोगों को प्रभावित नहीं कर पाए हैं.

आने वाले कुछ महीने और साल तेजस्वी यादव के लिए काफी मुश्किलों से भरे साबित होने वाले हैं. भले ही उनके पास एक कमिटेड वोट बैंक है लेकिन जब तक उस वोट बैंक में अन्य जातियों और वर्गों को वो जोड़ने में कामयाब नहीं होते तब तक पूरे राज्य में जीत सुनिश्चित नहीं कर सकते. जांच एजेंसी खासकर सीबीआई और आयकर विभाग की जांच से बेदाग निकलना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. फ़िलहाल अपने पिता की तरह कोर्ट मुकदमा से उनका वास्ता एक लंबे समय तक पड़ेगा. अगर न्यायलय में वो अपने आप को निर्दोष साबित करने में विफल रहे तब उनके लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने का सपना धरा का धरा रह जाएगा. इसलिए वो जितनी जल्दी अपने खिलाफ सभी मामलों में अपने आप को निर्दोष साबित कर लें उनकी राजनीति केवल इसके ऊपर निर्भर करेगा.

तेजस्वी यादव के लिए दूसरी सबसे बड़ी चौनौती होगी अपने पार्टी को खासकर विधायकों को एकजुट रखना. पार्टी का हर विधायक फ़िलहाल उनके हर कदम को बारीकी से देखेगा क्योंकि उसका भविष्य पार्टी के नेताओं खासकर तेजस्वी यादव के साथ जुड़ा है. हालांकि विधायक दल में टूट फ़िलहाल कुछ लोगों के लिए एक कोरी कल्पना हो सकती है लेकिन अगर उन्हें सम्मान नहीं मिला तो तेजस्वी अपने पिता लालू यादव के तरह उनकी वफ़ादारी की उम्मीद नहीं कर सकते.  

विपक्ष के नेता के रूप में भले तेजस्वी यादव ने एक प्रभावी भाषण देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उसके बाद पार्टी की रैली जो 27 वर्षों में लालू यादव की पहली ऐसी रैली थी जब वो सत्ता से केंद्र और बिहार दोनों जगह दूर थे लेकिन उसका सफल आयोजन निश्चित रूप से तेजस्वी यादव के लिए काफी उत्साह बढ़ाने वाला रहा. सृजन घोटाला हो या बाढ़ वहां विपक्ष सरकार के खिलाफ जितना आक्रामक होता है, उसका बिल्कुल आभाव दिखा.

राजद के लोग भी मानते हैं कि यहां तेजस्वी यादव को सुशील मोदी से बहुत कुछ सिखने की गुंजाइश है. इसके अलावा उन्होंने अपने पहले लिखे पत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जनता के समस्या नहीं बल्कि अपने आवास को नियमित करने की गुहार लगाई. जब तक वो अपने मुकदमों से बेदाग साबित नहीं होते, अपने वोट बैंक में अन्य वर्गों को जोड़ने में कामयाब नहीं रहते तब तक नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी पूंजी उसी तरीके से साबित होंगे जैसे कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए हैं.

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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