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वडनगर में बना संग्रहालय क्यों है खास?

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 21, 2025 19:23 pm IST
    • Published On जनवरी 21, 2025 19:12 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 21, 2025 19:23 pm IST
वडनगर में बना संग्रहालय क्यों है खास?

17 जनवरी को गुजरात में अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर देश का पहला ऐसा संग्रहालय खुला, जहां पिछले 2500 सालों की घटनाओं का हम जीवंत अनुभव कर सकते हैं. 12,500 वर्गमीटर में बनी यह एक ऐसी विशाल ‘टाइम मशीन' है, जिसके वॉकवे शेड में एक बार प्रवेश कर लेते हैं तो इतिहास की हर घटना प्रत्यक्ष दिखाई देने लगती है. प्रागैतिहासिक काल की गवाही दे रही इन घटनाओं के पात्रों की सोच, रहन-सहन और काम करने का तरीका भी साक्षात आपके सामने होता है. यह संग्रहालय प्रधानमंत्री मोदी के गृहनगर वडनगर में बना है और इसका उद्घाटन किया केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने. 

वडनगर का यह आर्कियोलॉजिकल एक्सपीरिएंशियल म्यूजियम ढाई हजार सालों में बदलावों के सात दौरों को जीवंत कर रहा है. इनमें से हर दौर में वडनगर का बदलता हुआ चरित्र तो दिखता ही है, लेकिन इसमें हमारे संस्कारों की एक अटूट कड़ी भी दिखाई देती है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्म गुजरात के इसी वडनगर शहर में हुआ, जिसका वर्तमान चरित्र 2500 सालों में संस्कारों की अटूट श्रृंखला का आधुनिक स्वरूप है. इतिहास के इस लंबे कालखंड में वडनगर का सात बार निर्माण और विध्वंस हुआ. इसी की कहानी हमें आर्कियोलॉजिकल एक्सपीरिएंशियल म्यूजियम में दिखाई देती है. पुरातात्विक उत्खननों और वैज्ञानिक शोधों ने यह साबित किया है कि वडनगर आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से संपन्न एक पौराणिक और ऐतिहासिक शहर रहा है.

वैज्ञानिक प्रबंधन
वडनगर के निर्माण और विध्वंस की गवाही दे रही ये सात परतें धरती की कोख से निकली हैं. एक बड़ी भूमिका निभाते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग ने अब इन्हें हमारे सामने एक संग्रहालय के रूप में संजोकर रख दिया है. पुरातात्विक खनन और अनुसंधान बताते हैं कि वडनगर का उल्लेख पुराणों महाभारत, रामायण और जैन आगमों जैसे ग्रंथों में किया गया है. इन ग्रंथों में वडनगर के अलग-अलग कई नाम हैं, जैसे अनर्तपुर, आनंदपुर, चमत्कारपुर, स्कंदपुर और नागरका. वडनगर में पुरातात्विक खनन से मिले चीनी मिट्टी के बर्तन, कांच, पत्थर की मूर्तियों और धातु की कलाकृतियों का वैज्ञानिक अध्ययन आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी गांधीनगर, आईआईटी रूड़की जैसे संस्थानों ने किया है.

वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चलता है कि वडनगर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चरित्र 1400 ईसा पूर्व से विद्यमान रहा है. मेहसाणा का यह शहर हजारों सालों से एक जीवंत आर्थिक केंद्र रहा है. इस शहर में अन्य देशों से लोग व्यापार के लिए समुद्र के मार्ग से पहुंचते थे. इसलिए यह नगरीय व्यवस्था में काफी समृद्ध रहा है. इस शहर में जल प्रबंधन और कृषि की उन्नत व्यवस्था थी. आज जब वडनगर में पुरातात्विक उत्खनन हो रहे हैं तो ये सभी जानकारियां हमारे सामने आ रही हैं. उत्खनन में यहां मिले लोहे के सामानों का अध्ययन करने से पता चला है कि वडनगर में धातुकला की तकनीक भी विकसित हो चुकी थी. यही नहीं, शीशे और ताम्र के जो सामान मिले हैं, उनसे यह भी पता चलता है कि वडनगर में सिक्कों का भी निर्माण किया जाता था. इस तरह से यह कहा जा सकता है कि वडनगर में विकसित हुई सभ्यता के पास आधुनिक काल की तरह वैज्ञानिक ज्ञान और तकनीक थी.

सांस्कृतिक वैभव
वडनगर अपने 2500 साल के कालचक्र में सिर्फ आर्थिक केंद्र के रूप में ही नहीं विकसित हुआ, बल्कि सांस्कृतिक और ज्ञान का केंद्र भी बना. वडनगर पर कई राजवंशों का शासन रहा, जिनमें चालुक्य राजवंश की प्रमुख तौर पर चर्चा होती है. इन राजवंशों की शासन व्यवस्था में नागर ब्राह्मणों का प्रभुत्व था. वडनगर, नागर ब्राह्मणों का केंद्र था. इन नागर ब्राह्मणों के प्रयासों ने वडनगर को एक बौद्धिक केंद्र के रूप में स्थापित किया. इसलिए पौराणिक काल से यहां की ख्याति ज्ञान की राजधानी के रूप में थी. वडनगर में नागर ब्राह्मणों के इन्हीं प्रयासों का परिणाम हुआ कि यहां कई धर्मों का संगम देखने को मिलता है. यहां पर हिंदू, बौद्ध, जैन और इस्लाम धर्म को पल्लवित होने का एक समान वातावरण मिला. भारत में सनातन धर्म की धर्मनिरपेक्षता का वडनगर से बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है. वडनगर के इस धर्मनिरपेक्ष चरित्र के सबूत पुरातात्विक उत्खनन से  मिले हैं. वडनगर के उत्खनन से कई  बौद्ध विहारों, जैन मंदिरों और हिंदू मंदिरों के प्रमाण सामने आए हैं.

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति
2500 साल के इतिहास में वडनगर जिस तरह एक आर्थिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ, उससे इसकी ख्याति दुनियाभर में भी फैली. इस ख्याति का ही परिणाम था कि सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्युएन त्सांग यहां आए और कई दिनों तक रहे. वडनगर में अपने प्रवास के दौरान ह्युएन त्सांग ने शहर के विभिन्न स्थलों का दौरा किया. जिस समय ह्युएन त्सांग वडनगर आए थे, उस समय वडनगर का नाम आनंदपुर था. ह्युएन त्सांग सिर्फ एक यात्री ही नहीं थे, बल्कि वह एक इतिहासकार भी थे. वे अपनी यात्रा के सारे अनुभवों को अपने यात्रा वृतांत में भी लिखते थे. ऐसे ही एक यात्रा वृतांत में उन्होंने वडनगर के बारे में लिखा है. इस वृतांत में ह्युएन त्सांग ने वडनगर के बौद्ध विहारों और बौद्ध भिक्षुओं के बारे में तो लिखा ही है, साथ ही साथ उन्होंने वहां की गतिविधियों के बारे में भी विस्तार से लिखा है. आज वडनगर में जो पुरातात्विक उत्खनन और अनुसंधान हो रहे हैं, उनसे ह्युएन त्सांग की यात्रा वृतांत में लिखी बातें सही साबित हो रही हैं.

देश का अनोखा संग्रहालय
इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के युग में वडनगर ने एक प्रकार से 2500 साल के इतिहास को हमारी आंखों के सामने जीवित कर दिया है. वडनगर में एक ऐसा  पुरातत्व अनुभवात्मक संग्रहालय (Archaeological Experiential Museum) बनकर तैयार हो गया, जो देश में अपने आप में पहला है. इस संग्रहालय में नवीनतम तकनीक की मदद से वडनगर के हर दौर के सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक जीवन का अनुभव किया जा सकता है. यह संग्रहालय उसी स्थल पर बना है, जहां पुरातात्विक उत्खनन किया गया है. इस उत्खनन स्थल पर एक वॉकवे शेड है, जिस पर चलते हुए हम वडनगर के 2500 साल के इतिहास से गुजरने का अनुभव सकते हैं.

इस संग्रहालय में आने वालों को वडनगर के अतीत का डिजिटल अनुभव होगा, जो उन्हें यहां के पुराने दौर में ले जाएगा. इस डिजिटल अनुभव को साकार करने के लिए उत्खनन से मिले 5000 पुरातात्विक धरोहरों का उपयोग किया गया है. यह 4000 वर्गमीटर में फैला हुआ है, जहां 16 से 18 मीटर की गहराई तक पुरातात्विक अवशेष देखने को मिलते हैं. इन पुरातात्विक धरोहरों में मिट्टी के बर्तन, सिक्के, आभूषण, हथियार, औजार, मूर्तियां, खेल सामग्री, अनाजों के डीएनए और कंकालों के अवशेष हैं. 12,500 वर्गमीटर में फैले इस संग्रहालय में नौ विषयों पर अलग-अलग गैलरी है.

वर्तमान वैभव
वडनगर अपने समृद्ध अतीत की नींव पर विकसित हो रहा है. हाटकेश्वर महादेव का मंदिर उसी समृद्धि का आज शिखर है. यह मंदिर वडनगर के नागर ब्राह्मणों के कुल देवता का है. मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग है. मंदिर के ही परिसर में काशी विश्वेश्वर शिव मंदिर, स्वामीनारायण मंदिर और दो जैन मंदिर भी हैं. मंदिर के पास एक कीर्ति तोरण है. यह नक्काशीदार गेट बारहवीं शताब्दी में चालुक्य राजवंश के शासकों ने बनवाया था. पत्थरों से बने इस द्वार पर पौराणिक कथाओं के दृश्यों और देवी-देवताओं की नक्काशी की गई है. चालुक्य राजाओं ने युद्ध में विजय के स्मारक के रूप में इस तोरण का निर्माण किया था. शहर की शर्मिष्ठा झील, वडनगर के जल प्रबंधन के संस्कार का एक उत्तम उदाहरण है. यह एक प्राचीन झील है, जो अरावली पहाड़ियों से निकलने वाली कपिला नदी से बनी है. इस झील की सुंदरता सभी को आकर्षित करती है. यही नहीं, वडनगर के वैभवशाली चरित्र में ताना-रीरी बहनों के संस्कार को भुलाया नहीं जा सकता है. ताना-रीरी वडनगर की ऐसी दो बेटियां थी, जिनके लिए संगीत एक आराधना थी. वे अपनी कला में इतनी निपुण थीं, जिनका लोहा तानसेन जैसे महान संगीतज्ञ भी मानते थे. अपने संगीत की रक्षा करने के लिए इन दोनों बहनों ने आत्म उत्सर्ग कर दिया. उन्हीं की याद में वडनगर में 2010 से हर साल ताना-रीरी संगीत महोत्सव का आयोजन किया जाता  है. 

कुल मिलाकर देखें, तो वडनगर के सुनहरे वर्तमान में यहां के इतिहास के अलग-अलग कालखंडों की अद्भुत झलक भी देखने को मिलती है और इसी की अनुभूति कराता है वडनगर का नवनिर्मित संग्रहालय.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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