विज्ञापन

मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला क्यों?

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 29, 2025 16:33 pm IST
    • Published On जनवरी 29, 2025 16:33 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 29, 2025 16:33 pm IST
मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला क्यों?

नेता प्रतिपक्ष के पद पर पहली बार आसीन हुए राहुल गांधी इन दिनों अक्सर 'नफरत के बाजार' में 'मोहब्बत की दुकान' लगाने की बात करते हैं. देश का मेनस्ट्रीम मीडिया भी इसे प्रमुखता से दिखाता है और प्रकाशित करता है. लेकिन जिस प्रकार से राहुल गांधी स्वयं मीडिया के खिलाफ बयान दे रहे हैं, वो कहीं न कहीं न केवल उनके दुराग्रह को प्रदर्शित करता है, बल्कि पूरी मीडिया की गरिमा को चोट पहुंचाने का कार्य करता है. 27 जनवरी को मध्य प्रदेश के महू में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने सभी मीडिया घरानों को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की तो अगले ही दिन राजधानी दिल्ली में एक रैली के दौरान उन्होंने मीडिया वालों को शत्रु बताने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी. ऐसे लगता है कि मानो राहुल गांधी संविधान बचाने के अपने राजनीतिक मुद्दे के साथ-साथ मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को भी खत्म करने की मुहिम चला रहे हैं.

जिस संविधान को बचाने का राजनीतिक अभियान राहुल गांधी चला रहे हैं, वह अभियान ही लोकतंत्र की नींव को हिलाने का काम कर रहा है. हमारा संविधान ‘हम, भारत के लोग' के उस सामूहिक चिंतन का प्रतिफल है जो संविधान सभा में दो साल, ग्यारह महीने और सत्रह दिनों तक किया गया. इस मंथन से लोकतंत्र का जो अमृत निकला, वो लगातार 75 वर्षों से इस देश के हर नागरिक के अधिकारों को अमरता प्रदान कर रहा है. इस संविधान की प्रस्तावना के शुरुआती चार शब्द ‘हम, भारत के लोग' हमारे लोकतंत्र का प्राण तत्व है. इन्हीं चार शब्दों के माध्यम से लोकतंत्र की अमरता को अक्षुण्ण रखने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का ब्रह्मास्त्र भी संविधान ने नागरिकों के हाथों में सौंप दिया.

यहां गौरतलब करने वाली बात यह है कि 75 सालों के इतिहास में ऐसे कई अवसर आए, जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म करने का प्रयास किया गया. कई बार राजनीतिक दलों के नेताओं में एक अहंकार पैदा हुआ कि उनकी सोच, समझ और तार्किक क्षमता ‘हम, भारत के लोग' के सामूहिक चिंतन से बेहतर है. नेताओं में जनता से बेहतर समझने का अहंकार बढ़ते-बढ़ते कब घृणा में बदल गया, यह उन्हें पता ही नहीं चला. इसका परिणाम हुआ कि ये नेता जब भी सत्ता में आए, इन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म करने के लिए संविधान संशोधनों और ताकत का इस्तेमाल किया, मीडिया और सूचना तंत्रों पर अंकुश लगाया. राहुल गांधी आज जब मीडिया की स्वतंत्रता के खिलाफ एक अभियान चला रहे हैं तो उसे समग्रता में समझना जरूरी है.

अहंकार की तुष्टि के लिए, घृणा का सहारा
राजनीतिक दल के नेता जब अपनी सोच और समझ को जनता-जनार्दन की सोच से बेहतर समझने लगते हैं, तो घृणा कैसे फैलती है इसे कुछ ताजा उदाहरण से समझा जा सकता है. 28 जनवरी को मध्यप्रदेश के महू में कांग्रेस ने “जय बापू, जय भीम, जय संविधान रैली” का आयोजन किया. इस रैली को संबोधित करने  के लिए लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता और कांग्रेस पार्टी के प्रमुख चेहरे, राहुल गांधी भी पहुंचे. रैली को संबोधित करते हुए, राहुल गांधी ने कहा “ये मी़डिया कैमरा लिए घूम रहा है, ये आपका मीडिया थोड़े ही है. आप भूखे मर जाओ, आपके बच्चे भूखे मर जाएं, आत्महत्या कर लें, किसान मर जाएं, इनको कोई फर्क नहीं पड़ता. हिन्दुस्तान के किसान की बात नहीं करेंगे, मजदूर की बात नहीं करेंगे, बेरोजगार युवाओं की बात नहीं करेंगे. अफगानिस्तान की बात होगी, पाकिस्तान की बात होगी मगर हिन्दुस्तान की बात, किसानों की बात, मगर मजदूरों की बात ये नहीं करेंगे. और ये आपके हर एक घर में ये घुसे हुए हैं. सब बेरोजगार हैं हिन्दुस्तान में और कोई रास्ता नहीं है भईया, टीवी देखो, जो चौबीस घंटा, तो देखना ही पड़ेगा, जो ये कहेंगे देखना ही पड़ेगा. डराने में लगे हैं हिन्दुस्तान को, देखो-देखो अफगानिस्तान में क्या हो रहा है, देखो-देखो उधर क्या हो रहा है. अरे भाई हमें ये भी बता दो हिन्दुस्तान में क्या हो रहा है”. ये शब्द राहुल गांधी की उस सोच को बताते हैं, जिसमें यह मान लिया गया है कि वे ही भारत की जनता के बारे में बेहतर सोच सकते हैं और उनको सुनने आने वाली जनता को सोचने-समझने की कोई क्षमता नहीं है. उनको अपनी इस मजबूरी का समाधान यही नजर आया कि वह मीडिया और पत्रकारों के खिलाफ, समाज में असंतोष पैदा करें, घृणा पैदा करें.

कांग्रेस या राहुल गांधी द्वारा मीडिया और पत्रकारों के लिए समाज में असंतोष या घृणा पैदा करने का यह कोई पहला उदाहरण नहीं है. इसके अगले ही दिन दिल्ली पहुंचकर राहुल गांधी कहते हैं कि मीडिया के लोग उनके दोस्त नहीं हैं. यही नहीं आए दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी किसी न किसी पत्रकार की बेइज्जती करके, यह अहसास करना चाहते हैं कि जनता को भी मीडिया और पत्रकारों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए. मीडिया के खिलाफ लोगों को उकसाने का ये प्रकरण लगातार बढ़ता जा रहा है.

याद कीजिए, लोकसभा चुनाव के ठीक पहले, देश की विपक्षी पार्टियों ने इंडिया गठबंधन बनाया और इस गठबंधन की तरफ से कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एलान किया कि वह देश के 14 पत्रकारों का बहिष्कार करेंगे. उन्होने कहा "13 सितंबर, 2023 को अपनी बैठक में ‘INDIA' समन्वय समिति द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार, विपक्षी गठबंधन के दल इन 14 एंकर के शो और कार्यक्रमों में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजेंगे.'' इंडिया गठबंधन के इस निर्णय पर न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिज़िटल एसोसिएशन (एनबीडीए) ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा ''विपक्षी गठबंधन के प्रतिनिधियों को भारत के कुछ शीर्ष टीवी न्यूज़ एंकरों के कार्यक्रम में जाने से रोकना लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ है. ये असहिष्णुता का संकेत है और प्रेस की स्वतंत्रता को ख़तरे में डालता है. विपक्षी गठबंधन ख़ुद को बहुलता और स्वतंत्र प्रेस का हिमायती बताता है लेकिन उसका ये फ़ैसला लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर चोट करता है.'

आपातकाल का काल
मीडिया संस्थानों और पत्रकारों के खिलाफ असंतोष और घृणा का भाव पैदा करने या उनकी आवाज को बंद करने का काम आज ही नहीं हो रहा है बल्कि इससे भी बुरा दौर 21 महीनों के दौरान 1975 से 1977 में था. ‘हम, भारत के लोग' जब देश की सत्ता से भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर रहे थे, तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे देशद्रोह समझ लिया. सत्ता और जनता के बीच मौजूद समझ की इस खाई ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को न सिर्फ भयभीत कर दिया, बल्कि उन्होंने वह कदम उठा लिया, जिसकी कल्पना ‘हम, भारत के लोग' ने कभी नहीं की थी. 25 जून, 1975 की मध्यरात्रि को देश में आपातकाल लगा दिया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को पूरी तरह खत्म कर दिया गया. मीडिया संस्थानों पर सरकार के अनुसार खबर प्रकाशित करने का फरमान जारी किया गया. जिन संस्थानों और पत्रकारों ने ऐसा नहीं किया, उन्हें या तो सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया या उनसे समाचार पत्रों को प्रकाशित करने की सुविधाएं छीन ली गईं. देश में जहां भी सरकार की नीतियों को लेकर जनता ने धरना प्रदर्शन किया, उन सभी लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया और उनके मन की अभिव्यक्ति की ज्वाला को शांत करने के लिए यातनाएं दी गईं. 21 महीनों तक चले दमन के इस चक्र ने लोकतंत्र को मूक बधिर करने का जो प्रयास किया, वह सफल नहीं हो सका क्योंकि ‘हम, भारत के लोग' के रग-रग में लोकतंत्र का लहू बहता है. इसलिए भारत को दुनिया में लोकतंत्र की जननी माना जाता है.

गणतंत्र होते ही गला घोंटने का प्रयास
इस बात को कोई भूल नहीं सकता कि गणतंत्र बनते ही लोकतंत्र की जननी ‘हम, भारत के लोग' का गला घोंटा गया. 26 जनवरी, 1950 को संविधान सभा को संविधान आत्मसात किए हुए अभी 14 महीने ही हुए थे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नियंत्रित करने के लिए पहला संविधान संशोधन प्रधानमंत्री नेहरू ने पेश कर दिया. खास बात ये है कि इस समय तक देश में पहला चुनाव भी नहीं हुआ था. ‘हम, भारत के लोग' ने प्रतिनिधियों को चुनकर संसद में भी नहीं भेजा था, फिर भी यह संशोधन अंतरिम संसद में पेश कर दिया गया. इस संशोधन को लाने की वजह यह थी कि कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना मीडिया कर रही थी और देश की सर्वोच्च अदालत सरकार की गलत नीतियों को गैर संवैधानिक घोषित कर रही थी. इससे पंडित जवाहर लाल नेहरू की सोच और ‘हम, भारत के लोग' की सोच के बीच एक खाई पैदा हुई और इसका परिणाम हुआ कि सभी विरोधों के बावजूद पंडित नेहरू ने संख्या बल के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 19 और 31 में अंतरिम संसद से संशोधन पारित करवा लिया. इस संशोधन के पक्ष में 246 और विपक्ष में 14 मत पड़े थे. संशोधन करने से पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राज्य के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र में यह साफ-साफ लिखा कि मीडिया और अदालतें, सरकार एवं विधायिका के काम में रोड़ा बन रही हैं. उन्होंने पत्र में लिखा, “हालात अब बर्दाश्त के बाहर हो गए हैं. हमें इसका समाधान ढूंढ़ना होगा, अगर इसका मतलब संविधान में संशोधन है, तब भी.”

लोकतंत्र की इमारत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से बनती है. जब-जब इसको बर्दाश्त करने की सीमा टूटी है, तब-तब घृणा से तानाशाही उपजी है. आज जब विपक्ष केंद्र में लगातार तीन चुनाव से जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में असफल रहा है, तब क्या नफरत की ये दुकान उनके किसी काम आ पाएगी, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.  

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com