गुजरात के वडोदरा में 28 अक्टूबर को उस समय एक नया इतिहास रच गया, जब देश में सैन्य एयरक्राफ्ट बनाने वाली पहली कंपनी टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज ने किया. दुनिया का सबसे उन्नत मालवाहक सी 295 एयरक्राफ्ट का निर्माण स्पेन की एयरबस डिफेंस के साथ मिलकर टाटा कर रही है. वडोदरा में स्थित टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड कंपनी के निर्माण का काम 2022 में शुरू हुआ, जो दो साल के रिकॉर्ड समय में पूरा हो गया. खास बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने देश को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की इस रणनीति को दस साल पहले 2014 में सत्ता संभालते ही लागू कर दिया था. टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड कंपनी का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “10 साल पहले अगर हमने ठोस कदम नहीं उठाए होते तो आज इस मंजिल पर पहुंचना असंभव ही था. तब तो कोई ये कल्पना भी नहीं कर पाता था कि भारत में इतने बड़े पैमाने पर डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग हो सकती है.”
सी-295 एयरक्राफ्ट क्यों बना रहा भारत
भारतीय सेना को अपने सैनिकों, साजो सामान और अन्य सामानों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर मालवाहक एयरक्राफ्ट की जरूरत पड़ती है. इस समय वायुसेना AVRO-748 एयरक्राफ्ट का उपयोग करती है, जिनकी समय के साथ तकनीक पुरानी हो रही है. भारतीय वायुसेना दुश्मनों से लोहा ले सके, इसके लिए वायुसेना के पास अत्याधुनिक मालवाहक एयरक्राफ्ट की आवश्यकता लंबे समय से महसूस हो रही थी. इसी जरूरत को पूरा करने के लिए साल 2021 में रक्षा मंत्रालय और स्पेन की एयरबस डिफेंस ने सी-295 के 56 एयरक्राफ्टस की खरीद का समझौता किया था. भारत को ये 56 एयरक्राफ्टस करीब 21,935 करोड़ रूपए में मिल रहे हैं. लेकिन इस समझौते के जरिए रक्षा मंत्रालय ने सी-295 की टेक्नोलॉजी को भी भारत में लाने का एक बड़ा काम किया. इस करार के तहत सी-295 के 16 एयरक्राफ्ट स्पेन से बनकर अगस्त 2025 तक भारत आ जाएंगे, जबकि शेष 40 एयरक्राफ्टस का निर्माण टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड की हैदराबाद और वडोदरा यूनिट में किया जाएगा. स्पेन इसकी पूरी टेक्नॉलोजी भारत को देगा. एयरक्राफ्ट में लगने वाले सभी 1400 पार्टस में से 1300 पार्ट्स का निर्माण देश में ही होगा. इस एयरक्राफ्ट की बॉडी का निर्माण टाटा की हैदराबाद यूनिट में किया जा रहा है. हैदराबाद की ही यूनिट में पार्ट्स और इंजन लगाए जाएंगे और वडोदरा की यूनिट में एयरक्राफ्ट को अत्याधुनिक साजो सामान और तकनीक से लैस करके वायुसेना को सुपुर्द किया जाएगा. जिस गति से इन दोनों यूनिटस में काम हो रहा है, उसे देखते हुए 2026 तक भारत में ही निर्मित पहला सी-295 एयरक्राफ्ट वायुसेना को मिल जाएगा. आज पूरी दुनिया में इस एयरक्राफ्ट का उपयोग दो दर्जन से अधिक देशों की सेनाएं कर रही हैं. भारत में स्थापित हुई वडोदरा और हैदराबाद की यूनिटस से सी-295 एयरक्राफ्ट आने वाले कुछ सालों में निर्यात भी किए जाएंगे.
शीर्ष 25 रक्षा निर्यातकों में से एक भारत
मोदी सरकार की नीतियों का ही असर है कि पिछले दस सालों में देश के अंदर सैन्य साजो सामानों का न सिर्फ निर्माण होने लगा है, बल्कि उसके निर्यात में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है. यह जानकर आश्चर्य होगा कि आजादी के बाद 6 दशकों के औद्योगिक विकास के दौरान, साल 2014-2015 तक देश की रक्षा कंपनियां कुल 46,429 करोड़ रूपये मूल्य के रक्षा साजो-सामान का ही निर्माण करती थीं, जबकि 2014-2015 से 2023-2024 के दस सालों के दौरान देश की रक्षा कंपनियों ने करीब 1,27,265 करोड़ रूपये मूल्य के साजो-सामान का निर्माण किया. यानि पिछले दस सालों में देश में रक्षा साजो-सामान के उत्पादन में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है. आज देश में करीब एक हजार स्टार्टअप के साथ-साथ सरकारी और प्राइवेट कई कंपनियां रक्षा क्षेत्र में निर्माण का काम कर रही हैं. रक्षा उत्पादन के इकॉसिस्टम को खड़ा करने में सरकार को अभूतपूर्व सफलता हासिल हुई है. यही वजह है कि रक्षा साजो-सामान के निर्माण में तेजी से वृद्धि हुई है. इस वृद्धि का असर यह हुआ है कि रक्षा साजो सामानों का निर्यात भी तेजी से बढ़ा है.
आज भारत दुनिया के करीब 100 देशों को रक्षा सामानों की आपूर्ति करता है. इन देशों में प्रमुख नाम हैं- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, आयरलैंड, इजरायल, इटली, जापान, कोरिया, कुवैत, न्यूजीलैंड, स्वीट्जरलैंड, फिनलैंड, फ्रांस, सऊदी अरब, ब्रिटेन इत्यादि. अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन और बोइंग जैसी वैश्विक रक्षा कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले विमानों और हेलीकॉप्टरों के पुर्जे भारत की कंपनियों से निर्यात किए जाते हैं. वहीं फ्रांस की कंपनियां भारत से बहुत सारे सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदती हैं. जबकि अर्मेनिया भारत से एटीएजीएस आर्टिलरी गन, पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम, स्वाथी हथियार लोकेटिंग रडार और अन्य महत्वपूर्ण सैन्य सिस्टम लेता है. भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले रक्षा सामानों की लिस्ट देखकर सबसे अधिक आश्चर्य बुलेटप्रूफ जैकट के निर्यात को लेकर होता है. 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमले हुए थे तो हमारे जवानों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट भी नहीं था. जबकि आज भारत करीब 34 देशों को बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्यात करता है. ये किसी चमत्कार से कम नहीं है. 2013-14 तक भारत से मात्र 686 करोड़ रूपये के रक्षा सामानों का निर्यात हुआ था, जो 2023-24 में 21,083 करोड़ रूपए तक पहुंच गया, इस तरह से मात्र दस सालों में रक्षा सामानों के निर्यात में 30 गुना की वृद्धि हुई है. रक्षा मंत्रालय अगले पांच सालों में रक्षा निर्यात को 50,000 करोड़ रूपए तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रहा है. रक्षा साजो-सामान के निर्माण और निर्यात करने वाले 25 शीर्ष देशों की सूची में भी भारत शामिल हो चुका है.
यह बदलाव कैसे हुआ
आज भारत जिस तेजी से विश्व बाजार में अपने उत्पादों को पहुंचाने के लिए विभिन्न देशों के साथ व्यापारिक समझौते और रिश्ते बना रहा है, ऐसा भारत की नीतियों में पहले कभी नहीं देखा गया था. आज देश के रक्षा के क्षेत्र में भी वही उदारीकरण और खुलेपन की नीति अपनाई गई है, जो अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के लिए की गई है. प्रधानमंत्री मोदी ने वडोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड का उद्घाटन करते समय सरकार की रक्षा नीति को स्पष्ट करते हुए कहा “भारत के डिफेंस सेक्टर का कायाकल्प, राइट प्लान और राइट पार्टनरशिप का उदाहरण है. बीते दशक में देश ने अनेक ऐसे फैसले लिए, जिससे भारत में एक वाइब्रेंट डिफेंस इंडस्ट्री का विकास हुआ... हमने डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को विस्तार दिया...” 2014 से पहले भारत के पास रक्षा उत्पादन की नीति तो थी, लेकिन रक्षा उपकरणों के निर्यात की कोई एकीकृत नीति नहीं थी. लेकिन 2014 के बाद यह सब बदला और देश को अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी साजो-सामान के निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने के लिए, मेक इन इंडिया योजना को रक्षा के क्षेत्र में बड़ी तेजी से लागू किया गया. इसी का परिणाम है कि वडोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम लिमिटेड भारत का पहला एयरक्राफ्ट बना रही है और देश में एक हजार से अधिक स्टार्टअप्स रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन का काम कर रहे हैं.
विश्व को भारत पर भरोसा
दुनिया में भारत को सटीक, भरोसेमंद और सस्ती टेक्नॉलोजी के लिए जाना जाता है. भारत ने दुनिया में सबसे कम खर्च में चांद पर उतरने के मिशन पर सफलता पायी है तो मंगल ग्रह पर भी सबसे कम खर्च पर पहुंचने की टेक्नॉलोजी विकसित की है. आईटी के क्षेत्र में भी भारत के प्रभुत्व को पूरी दुनिया सलाम करती है. स्पेस और सॉफ्टवेयर में भारत के महारत की दुनिया तो कायल थी ही, अब रक्षा उपकरणों की भी कायल बनती जा रही है. यह इस बात का सबूत है कि देश में मौजूद मेधा को जब सही नेतृत्व, सही नीति मिलती है तो वह उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से चमत्कार पैदा करने की क्षमता रखता है.
हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...
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