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This Article is From Jan 27, 2015

जया कौशिक की कलम से : 'गणतंत्र' पर हावी 'ओबामा तंत्र'

Jaya Kaushik
  • Blogs,
  • Updated:
    जनवरी 27, 2015 14:13 pm IST
    • Published On जनवरी 27, 2015 13:51 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 27, 2015 14:13 pm IST

हर बार की तरह पूरे देश में गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया गया, लेकिन इस बार यह कुछ ख़ास रहा। ख़ास इसलिए कि पहली बार कोई अमेरिकी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद था। ऐसे में स्वाभाविक है लोगों, नेताओं और मीडिया सभी में एक अलग तरह की उत्सुकता और दिलचस्पी देखने को मिल रही थी।

यूं तो भारत की संस्कृति 'अतिथि देवो भव:' की रही है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपनी पत्नी मिशेल संग राजपथ पर परंपरा के विपरीत सुरक्षा कारणों से भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ उनकी कार में न आकर अपनी गाड़ी 'द बीस्ट' में पहुंचे। क्या इसका मतलब यह लगाया जाए कि ओबामा को भारतीय सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा नहीं?

जिस घनिष्ठ दोस्ती (ओबामा-मोदी) का ज़िक्र पीएम मोदी ने हैदराबाद हाउस में ज्वाइंट स्टेटमेंट के दौरान किया और दावे के साथ कहा कि दो देशों के रिश्ते बहुत हद तक दो मुल्कों के लीडरों की आपसी केमेस्ट्री पर भी निर्भर करते हैं। पीएम मोदी ने जिस तरह कई दफ़ा 'बराक' कहकर अमेरिकी राष्ट्रपति का ज़िक्र किया और ये कहा कि उनकी ओबामा से फ़ोन पर गप होती रहती है उससे एक बार को लगा कि शायद यह मित्रता सच में बहुत घनिष्ठ है, लेकिन ये क्या, भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में हमारे राष्ट्रपति की गाड़ी में ओबामा साहब को मात्र 15 मिनट बैठने के लिए पीएम मना न सके।

ये कैसी दोस्ती जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अति उत्साहित होकर प्रोटोकॉल तोड़ते हुए खुद अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत के लिए पालम एयरपोर्ट पर बाहें फैलाए खड़ा करती है, लेकिन यहां भी ओबामा मुस्कुराहट बिखेर अपनी बीस्ट गाड़ी में पत्नी मिशेल संग चले जाते हैं और पूरा तंत्र ओबामा के आगे के कार्यक्रम अनुसार मुस्तैदी से तैयारियों में जुटा रहता है।

भारत ने अपना 66वां गणतंत्र दिवस मनाया, लेकिन इतने अति विशिष्ट अतिथि के स्वागत की तैयारियों में जुटे कहीं न कहीं हमारा ध्यान इस पर्व की असली महत्ता और उसे सही मायनों में याद करने से जी चुराता नज़र आया.. चलिए इन बातों को दरकिनार कर कि ओबामा-मोदी ने कितना बेतकल्लुफ हो चाय पर चर्चा की या मिशेल ने क्या पहना और राष्ट्रीय भोज में क्या पकवान परोसे गए....

थोड़ा इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि हमारे संविधान निर्माताओं ने कितनी कड़ी मेहनत कर उसे बनाया और उसे लागू करवाया, जिसे पूरा देश एक राष्ट्रीय पर्व के तौर पर आज मना रहा है।

सवाल यह भी है कि जिस रूप में हम गणतंत्र दिवस समारोह मना रहे हैं, क्या वह एक प्रतीक मात्र बनकर तो नहीं रह गया है। जिस संविधान को बनाने में हमारे संविधान निर्माताओं ने दिन-रात एक कर दिया उसकी मूल भावनाओं को क्या हम समझ पा रहे हैं। सवाल यह भी है दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्क के प्रधान को अपना मुख्य अतिथि बनाकर गौरवान्वित महसूस कर लेना ही काफ़ी होगा?

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