केजरीवाल की 'जंग' और 'बदलापुर' की याद!

केजरीवाल की 'जंग' और 'बदलापुर' की याद!

नजीब जंग। नाम तो सुना ही होगा! दिल्‍ली में इन दिनों एलजी नजीब जंग का नाम किसी भी सामान्‍य ज्ञान के सवाल जैसा है। पता है तो कोई बात नहीं, लेकिन नहीं पता है, तो आपके बारे में पूछने वाला, सोचने लगता है।

इन दिनों केजरीवाल सरकार और एलजी के बीच जिस 'युद्धस्‍तर' पर कार्रवाई चल रही है, वैसी दिल्‍ली और देश कम ही देखने के आदी रहे हैं। यहां तक कि 2014 के महाचुनावी बरस और मोदी-राहुल रैलियों के दिनों में भी वैसा 'रोमांच और एक्‍शन' देखने को नहीं मिलता था। शीला दीक्षित के राजयोग में कभी नजीब साहब को जंग की ओर जाते नहीं देखा था। शायद एक वजह यह रही हो कि सारे निर्णय शीला जंग साहब से पूछकर करती रही हों! अगर नहीं तो कभी तो कोई अनबन हुई होगी, मुझे तो गूगल बाबा से मिली नहीं, आपको मिले तो बताएं, जरूर।

दिल्‍ली जैसी आज है, जमाने से वैसी है। तो फि‍र यह 'जंग क्‍यों नई' है? क्‍या इसमें मोदी सरकार और पीएमओ की भूमिकाएं उतनी ही मासूम और संवैधानिक हैं, जितनी की भाजपा के प्रवक्‍ता बताते हैं? या बीजेपी केजरीवाल को सरकार के पिंजरे में कैद करने के मास्‍टर प्‍लान में व्‍यस्‍त है! अगर ऐसा है तो यकीन मानिए वह खुद के पांव में कुल्‍हाड़ी नहीं मार रही है, बल्कि पांव को आरा मशीन में डाल रही है, जहां से कोई पांव वापस नहीं आता।

इस देश ने राजनैतिक मतभेदों से भरे खूब जमाने देखे हैं। यहां केंद्र और राज्‍यों में लंबे अर्से तक अलग-अलग सरकारों ने अपना काम एक दूसरे को कोसते हुए गुजारा है, लेकिन उनके दैनिक कामों और जिम्‍मेदारियों के निर्वाह में ऐसे रोड़े का राजनैतिक नाटक हमने कभी नहीं देखा।   

मुझे पीएम नरेंद्र मोदी की ऊर्जा और भाषणों में तंज की निपुणता से ईर्ष्‍या है। वह असीम ऊर्जा और रात दिन काम में डूबे रहने वाले नेता और प्रधानमंत्री हैं, जैसा कि उनके ट्विटर अकाउंट से हमें समय-समय पर पता चलता है, लेकिन क्‍या वे अभी तक 'इलेक्‍शन मोड' पर हैं। क्‍या मोदी हमारी संवैधानिक और सामान्‍य राजनैतिक मर्यादा और परंपराओं को खतरे के निशान से ऊपर तक ले आए हैं।

बात जंग से शुरू होकर पीएम मोदी पर इसलिए एकाग्र हो गई है, क्‍योंकि पीएमओ इस 'दिल्‍ली की जंग' का केंद्र बनता दिख रहा है। आखिर हम अपने प्रधानमंत्री को एक ऐसे नेता के रूप में जानते हैं, जो बख्‍शते नहीं हैं, अपनी पसंद छुपाते नहीं। उन्‍होंने आडवाणी, जोशी को मार्ग 'दर्शक' बना दिया। अमित शाह को पथप्रदर्शक बना दिया। केजरीवाल को पीएम मोदी अपनी सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं। केजरीवाल ने उनको खूब तंग किया है। यहां तक की थाली में दिख रही दिल्‍ली एक झटके में छीन ली।

लेकिन केजरीवाल की दुश्मनी को दिल से लगाए रखने और बदला चुकाने का यह तरीका कहीं ज्‍यादा भारी पड़ सकता है। यहां मसला, पार्टी का नहीं है। यह देश की राजधानी और उन लोगों का है, जिन्‍होंने आपको पीएम विशाल हृदय और 56 इंच की छाती के लिए चुना था। जनता तो एक बार वोट देकर आपसे आस लगाए घर बैठ गई, लेकिन आप न तो घर में दिखते हैं और न ही उन संवै‍धानिक मूल्‍यों के प्रति सम्‍मान प्रकट करते दिखते हैं, जिनके लिए आपको चुना गया था। यहां तक कि विदेशों में भी कांग्रेस को कोसते रहते हैं। हां, आप बोलते चंगा हैं, जैसा कि कभी नहीं बोलने वाले मनमोहन सिंह ने कहा कि आप सुपरहिट वक्‍ता हैं, जिसके वादों पर जनता निसार थी, लेकिन अब वह चाहती है (इसमें दिल्‍ली भी है) विदेश नीति और वहां जयघोष के बीच उसके आंसुओं और मुद्दों का भी जिक्र और समाधान हो।

दिल्‍ली की सरकार को काम करने देना और उसमें एलजी रूपी रुकावट को दूर करना ऐसा ही काम है। हम सब चाहते हैं कि यह जंग जल्‍दी से जल्‍दी खत्‍म हो और यह आपके बिना हस्‍तक्षेप के संभव नहीं।

अगर दिल्‍ली को यह संदेश गया कि आपकी सरकार के चलते उसके काम अटके हैं, तो इसका असर बिहार और उत्‍तर प्रदेश की आगामी परीक्षाओं (चुनाव) में बेहद निगेटिव हो सकता है। जनता आपको दिल्‍ली में बैठाना चाहती थी, सो उसने कर दिया, लेकिन उसने बाकी जहां-जहां जिसे बैठाया है, अगर वो काम नहीं कर पाएंगे और आपका नाम गिनाएंगे तो इसकी कीमत आगामी दो सबसे बड़ी जंगों में चुकानी पड़ सकती है।

हां, एक बात और। केजरीवाल की इस बात से तो आप सहमत ही होंगे कि चुनाव जंग को नहीं लड़ना है, इसलिए केजरीवाल सरकार को काम करने दें और अपनी पार्टी से कहें कि वह बिहार और उत्तर प्रदेश की जंग की तैयारी करे। दिल्‍ली को केजरीवाल को सौंप दें, क्‍योंकि यही जनादेश है।

इस जंग के बीच मुझे 'बदलापुर' की याद आ रही है। भाजपा को अपने नेताओं (खासकर दिल्‍ली में सक्रिय) के लिए वरुण धवन की 'बदलापुर' का शो जल्‍दी रखना चाहिए।

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यह फि‍ल्‍म बहुत ही संवेदनशीलता से यह समझाती है कि आपका बदला कितना ही जरूरी और पवित्र क्‍यों न हो, उससे आपको भी उतना ही नुकसान होता है। इसलिए भाजपा और मोदी सरकार जितनी जल्‍दी इस बदलापुर मोड से बाहर आएगी, दिल्‍ली को केजरीवाल के विवेक पर छोड़ देगी, उतना उसके और दिल्‍ली के लिए बेहतर होगा। वरना 'जंग' की कीमत सबको चुकानी पड़ेगी।