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This Article is From Mar 22, 2014

चुनाव डायरी : कहां गए भाजपा के 'हनुमान'?

Akhilesh Sharma, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:10 pm IST
    • Published On मार्च 22, 2014 10:51 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:10 pm IST

जसवंत सिंह और हरिन पाठक दोनों में एक समानता है। दोनों हनुमान कहे जाते हैं। जसवंत सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी के हनुमान तो हरिन पाठक लाल कृष्ण आडवाणी के हनुमान। एनडीए की छह साल की सरकार में हर संकट में वाजपेयी को जसवंत सिंह याद आते थे। इसी तरह, आडवाणी की गांधीनगर सीट के सारे काम पास की अहमदाबाद पूर्व सीट से सांसद हरिन पाठक करते थे। लेकिन इस लोक सभा चुनाव में जसवंत सिंह का टिकट कट चुका है और हरिन पाठक के सिर पर तलवार लटक रही है।

आडवाणी के रूठने के पीछे माना गया कि वो पार्टी पर पाठक के टिकट के लिए दबाव बना रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक राजनाथ सिंह ने आडवाणी से कहा कि वो गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मान जाएं। जहां तक पाठक के टिकट का सवाल है, पार्टी इस पर विचार करेगी। लेकिन नरेंद्र मोदी, हरिन पाठक के टिकट के लिए तैयार नहीं हैं। 2009 के चुनाव में भी मोदी पाठक का टिकट काटने पर अड़ गए थे। तब भी आडवाणी की बेहद सख्ती के बाद ही उन्हें टिकट मिल पाया था।

लेकिन दूसरे हनुमान जसवंत सिंह के लिए पार्टी में इस तरह का दबाव डालने वाले नेता अब कोई नहीं है, यही वजह रही कि बगावत की धमकी देने के बावजूद बीजेपी ने बाड़मेर से हाल ही में कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम चौधरी को टिकट दे दिया। वसुंधरा ने इस बहाने एक तीर से दो निशाने साध लिए। एक तो राज्य की राजनीति में जसवंत के रूप में सत्ता का दूसरा केंद्र बनने से रोक दिया, दूसरा जाट वोटों को साथ लेने के लिए सोनाराम चौधरी के रूप में एक बड़ा संदेश दे दिया।

ये वही जसवंत सिंह हैं जिन्हें अपनी तेरह दिन की सरकार में शामिल करने के मुद्दे पर अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस के सामने आ गए थे। पोखरण में परमाणु परीक्षणों के बाद लगे आर्थिक प्रतिबंधों पर दुनिया भर में भारत का पक्ष रखने के लिए वाजपेयी ने उन्हें ही आगे किया था। संकट घरेलू मोर्चे पर हो या विदेशी मोर्चे पर, जसवंत सिंह ही आगे आया करते थे। कंधार में विमान अपहरण के बाद बंधक यात्रियों को छुड़वाने के बदले आतंकवादियों को अपने साथ विमान में ले जाने पर जसवंत सिंह की तीखी आलोचना हुई पर उन्होंने इसे सह लिया।

सरकार से हटने के बाद भी विवाद उनका पीछा करते रहे। अपनी दो पुस्तकों के ज़रिये उन्होंने बेहद तीखे विवाद खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि जब पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे तब प्रधानमंत्री कार्यालय में एक जासूस था जो अमेरिका को खुफिया जानकारियां देता था। बाद में वो इससे मुकर गए। जिन्ना पर लिखी दूसरी किताब में उन्होंने विभाजन के लिए सरदार पटेल की नीतियों को जिम्मेदार बता दिया। नरेंद्र मोदी ने गुजरात में इस किताब पर पाबंदी लगा दी और बीजेपी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।

हालांकि बाद में लाल कृष्ण आडवाणी के बीच-बचाव करने पर वो पार्टी में वापस आए। एनडीए ने उन्हें उपराष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार भी बनाया। उनके बेटे मानवेंद्र सिंह को विधानसभा का टिकट भी दिया और वो जीते। लेकिन एक बार फिर बीजेपी और जसवंत सिंह के रास्ते अलग-अलग होते दिख रहे हैं।

दरअसल, बीजेपी में अब कमान दूसरी पीढ़ी के हाथों में आ गई है। इस लोक सभा चुनाव में बंटे टिकट इस बात की पुष्टि कर रहे हैं। पार्टी में हो रहे अधिकांश फैसले नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी जैसे नेता मिल कर रहे हैं। आरएसएस इनमें बड़ी भूमिका निभा रहा है।
बीजेपी में अब ये समय पुराने हनुमानों को भूल, नए हनुमान ढूंढने का है।

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