आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में संस्थाओं के पुनर्निर्माण का एक बड़ा और चुनौतीपूर्ण दौर चला था. ज्यादातर ब्रिटिश प्रशासकों का यह मानना था कि उनके विदा होते ही इस देश का प्रशासकीय ढांचा, जिसे वह अपनी निजी उपलब्धि मानते थे चरमराकर ढह जाएगा. लखनऊ से कानपुर की अपनी यात्रा के बीच लॉर्ड माउंटबेटन को देखकर जब एक पुलिस का सिपाही 'सावधान' बनाना भूल गया तो माउंटबेटन ने अपने सैन्य सचिव से कहा था 'देखा अभी से इनका ये हाल है'.
स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस के पहले भारतीय आईजीपी श्री वीएन लाहिरी ने अपनी आत्म-कथा 'Before And After' में इस घटना को दर्ज किया है. अंग्रेज प्रशासकों (जिनमें पुलिस अधिकारी भी थे) को यह विकल्प दिया गया था कि अगर वह चाहें तो अपनी सेवानिवृत्ति तक यहां रह सकते थे, लेकिन यह उनके लिए असहज था कि जिन भारतीयों को उन्होंने अपने अधीन रखकर कार्य कराया, परवर्तित हालातों में अब वह भारतीयों के अधीन रहकर काम-काज करते. फलस्वरुप ज्यादातर ने स्वैछिक रूप से देश छोड़ने का निर्णय लिया.
एक अंग्रेज मिस्टर पोलक जो 1962 तक यहां रहे को छोड़कर सभी अंग्रेज अधिकारी अपने देश लौट गए. उत्तर प्रदेश पुलिस के ताने-बाने को पहले भारतीय आईजी (पी) वीएन लाहिरी ने अपने अथक परिश्रम और व्यावसायिक कौशल से सुधारा. वीएन लाहिरी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़े कई संस्मरणों को अपनी आत्म-कथा में साझा किया है. ये बड़े रोचक वाक़ये हैं, जिनसे नेहरू जी की शख्शियत पर बड़ी दिलचस्प जानकारियां मिलती हैं. नेहरू जी को प्रधानमंत्री होते हुए भी प्रोटोकॉल संबंधी तामझाम से बड़ी चिढ़ थी. प्रधानमंत्री के रूप में वह पुलिस द्वारा दिए जाने वाले 'गॉर्ड ऑफ ऑनर' के पात्र थे, लेकिन वह इस सबसे बड़ा चिढ़ते थे.
1950 की एक घटना को याद करते हुए लाहिरी जी ने लिखा कि उस समय पंडित गोविंद बल्लभ पंत मुख्यमंत्री थे. सचिवालय से निर्देश था कि पुलिस एयरपोर्ट पर ही प्रधानमंत्री को 'गॉर्ड ऑफ ऑनर' दे. नेहरू जी ने हवाई जहाज से उतरते ही मुख्यमंत्री से कहा कि आगे से उनके लिए यह सब न हो. संयोग से एक सप्ताह बाद वह फिर लखनऊ आए. चीफ सेक्रेटरी बीएन झा ने फिर से आईजी साहब से कहा कि प्रधानमंत्री के लिए गार्ड ऑफ ऑनर लगा दिया जाए. लाहिरी जी ने पिछली घटना की याद ताजा करते हुए ऐसा कुछ न करने का आग्रह किया. बात आई गई हो गई. एयरपोर्ट पर सलामी गार्ड लगा दी गई. इस बार प्रधानमंत्री उसे दखते ही भड़क गए. गार्ड कमांडर जब तलवार के साथ मार्च करता हुआ प्रधानमंत्री से गार्ड के निरीक्षण की अनुमति लेने पहुंचा तो प्रधानमंत्री ने जवाब दिया 'कमांडर साहब इसकी कोई जरूरत नहीं है'. इसके बाद कभी भी उत्तर प्रदेश आगमन पर उनके लिए कोई सलामी गार्ड नहीं लगाई गई. लेकिन नेहरू जी को सेरिमोनियल परेड का हिस्सा बनने और उसका औपचारिक निरीक्षण करने में कोई संकोच नहीं था.
उत्तर प्रदेश पुलिस देश का पहला पुलिस संगठन है जिसे एक भव्य समारोह में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के हाथों से 'पुलिस और पीएसी ध्वज प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है. यह भव्य समारोह 1952 में दिसंबर के पहले सप्ताह में लखनऊ में आयोजित हुआ था.एक 'बड़ी परेड' रखी गई थी. श्री एके दास परेड कमांडर थे, लेकिन हर व्यक्ति उस समय अचंभित रह गया जब देश के प्रधानमंत्री ने घोड़े पर बैठकर परेड का निरीक्षण करने का निर्णय लिया. यह एक शानदार दृश्य था. आज भी जब आप उत्तर प्रदेश के डीजीपी ऑफिस में प्रवेश करेंगे तो ठीक सामने की दीवार पर आपको यह दुर्लभ तस्वीरें दिख जाएंगीं. अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश पुलिस और खासकर पीएसी की खूब प्रशंसा की. आजादी के समय और उसके बाद होने वाले साम्प्रदयिक दंगों को रोकने में पीएसी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए दिसंबर 1952 का वह दिन एक गौरवशाली पल है, जिसकी स्मृतियां आज भी पुलिस लाइन लखनऊ के मैदान में मूक रहकर भी मुखरित हो उठती हैं देश के पहले प्रधानमंत्री से उत्तर प्रदेश पुलिस का यह रिश्ता उसकी अमूल्य धरोहर है.
धर्मेंद्र सिंह भारतीय पुलिस सेवा के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी हैं...
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