एक मुख्यमंत्री को आतंकवादी बताना एक ऐसा प्रयोग था जो संयोग से फेल कर गया. दिल्ली की जनता ने केजरीवाल से कहा कि हम आपको जानते हैं और आप आतंकवादी नहीं हैं. आम आदमी पार्टी ने 60 से अधिक सीटें जीतकर बता दिया कि बीजेपी के सैकड़ों सांसदों, दर्जनों मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की सभा काम नहीं आई. सुबह के रुझान में बीजेपी को 21 सीटें मिल रही थीं लेकिन वह सिंगल डिजिट में सिमट गई. 6500 सभाओं की रणनीति, गोदी मीडिया का सपोर्ट और कार्यकर्ताओं की फौज ने बीजेपी के वोटर को समेट लिया, बल्कि बढ़ा भी लिया लेकिन सीटों की संख्या 3 से 8 ही हो सकी. केजरीवाल को आतंकवादी कहना बीजेपी के काम नहीं आया.
अगर केजरीवाल आतंकवादी होते तो उनकी पार्टी का दफ्तर इस तरह सुबह जीत के इंतज़ार में सज़ा न होता. मीडिया की टीम जमा थी और कार्यकर्ता नतीजों के इंतज़ार में थे. शरद शर्मा ने दिखाया कि कैसे नतीजे के ही दिन केजरीवाल ने मिस्ड कॉल वाली देशभक्ति का प्लान लॉन्च कर दिया है. आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह देशभक्ति का कोर्स शुरू करेगी. हमने जिस देशभक्ति की भावना को अंग्रेज़ों के दौर में 100 साल लड़ कर हासिल किया था, क्या हम 70 साल में भूल गए हैं कि अब कोर्स करना होगा. शायद आम आदमी पार्टी देशभक्ति के नाम पर किसी को आतंकवादी बताने की राजनीति के जवाब में यह कोर्स शुरू करना चाहती है. उम्मीद है आप के सिलेबस में राष्ट्रीय नायकों का इस तरह बंटवारा नहीं होगा कि नेहरू कांग्रेस के हैं तो सबसे खराब, और कांग्रेस के पटेल की मूर्ति बना कर पटेल ही पटेल. उम्मीद तो यही है हम अपने प्यारे हिन्दुस्तान को प्यार करने का नुस्खा किसी सिलेबस से न सिखें, इसकी मिट्टी इसकी हवाओं और इसके लोगों को गले लगा कर सीखें. उन मोहल्लों में जाकर सीखें जिन्हें दिल्ली की राजनीति में पाकिस्तान और आतंकवादियों को अड्डा बताने का ख़तरनाक खेल खेला गया है.
जैसे ही भाजपा ने यह रणनीति अपनाई गोदी मीडिया के पत्रकार ट्वीट करने लगे कि क्या दिल्ली की हवा अचानक से बदलने लगी है. उस बदलाव को वैधानिकता यानी ऑफिशियल किया जाने लगा जो ज़मीन पर थी ही नहीं. बस इतनी थी कि बीजेपी का वोट आठ प्रतिशत बढ़ा है और सीटों की संख्या 3 से बढ़ कर आठ हुई है. झूठे वीडियो बनाए गए और उसे गोदी मीडिया के स्टूडियो में डिबेट का टॉपिक बनाया गया. पत्रकारों के हर सवाल आतंकवाद और शाहीनबाग को लेकर होने लगे. हर जवाब में इसका ज़िक्र आने लगा. डिबेट के सारे सवाल बीजेपी के एजेंडा के हिसाब से होने लगे. 62 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी को भी लगने लगा कि कहीं कुछ बदल तो नहीं रहा है.
एक महीने में दिल्ली में एक पूरा पैकेज लांच हुआ. पहले जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में गुंडों का हमला होता है. जामिया में लाठी चार्ज होता है. शाहीन बाग़ एक विलेन के रूप में उभरता है. गोदी मीडिया के पत्रकार ट्वीट करने लगते हैं कि लगता है कि दिल्ली की हवा बदल रही है. फिर अचानक सब कहने लगते हैं कि बीजेपी ने दिल्ली के चुनावों में वापसी कर ली है. गोदी मीडिया के डिबेट के सारे सवाल अब बीजेपी की तरफ से पूछे जाने लगते हैं. बदलाव की जो आंधी खड़ी की गई उसमें आम आदमी पार्टी को सिर्फ एक प्रतिशत वोट का नुकसान हुआ. 54 प्रतिशत वोट आए हैं. बीजेपी को 40% वोट मिले हैं. 2015 के विधान सभा चुनावों की तुलना में 8 प्रतिशत ज़्यादा. बीजेपी को इस बात की भी चिन्ता है कि कांग्रेस रिजेक्ट हो गई है.
अमित शाह ने तो कहा था कि 11 फरवरी को झटका लगेगा. अमित शाह दावा करते रहे कि 45 सीटों से कम नहीं आएगी. वे शाहीन बाग के खिलाफ वोट मांगने लगे. नागरिकता संशोधन कानून पर जनादेश से जोड़ने लगे. यही नहीं ऐसा वोट मांगने लगे ताकि शाहीन बाग में बैठी औरतों को करंट लग जाए. वोट से जवाब देने की राजनीति तो देखी सुनी गई है मगर वोट से किसी को करंट लगवाने की बात पहली बार हुई.
सितारों से आगे जहां और भी हैं, अभी इश्क़ के इम्तहां और भी हैं, मशहूर शायर इक़बाल की इसी ग़ज़ल में एक शेर है, तू शाहीन है, परवाज़ है काम तेरा, तेरे सामने आसमां और भी हैं. 1935 में लिखी गई थी. जब रामपुर से जामिया आए अंसारुल्ला ने यहां ज़मीन खरीदी तो इस मोहल्ले का नाम शाहीन रख दिया. इकबाल के शेर से शाहीन लेकर. ये 1984 की बात है. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्टर फरीहा ने लिखा है. शाहीन बाग़ को निशाना बनाने की रणनीति का आधार ही यही था कि वहां धरने पर बैठी महिलाएं मुसलमान हैं. जबकि वहां हर धर्म के लोग जाते रहे.
दिल्ली चुनाव ने नफरत की एक भाषा को ऑफिशियल किया है. यही कि मुसलमानों को गद्दार, आतंकवादी और पाकिस्तानी कहा जा सकता है. 2014 के चुनाव में इसकी शुरुआत हुई थी. 18 अप्रैल 2014 को झारखंड के गोड्डा में गिरिराज सिंह ने कह दिया कि जो मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकना चाहते हैं उनके लिए भारत में जगह नहीं होगी, पाकिस्तान में होगी. दो दिन बाद सुशील मोदी ने ट्वीट कर कह दिया था कि गिरिराज के बयान को बीजेपी मंज़ूर नहीं करती है. तब निर्मला सीतारमण ने कहा था कि जो सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट किया था वही पार्टी लाइन है. 22 अप्रैल 2014 को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी ट्वीट करते हैं.
'बीजेपी के शुभचिंतकों के द्वारा जो तुच्छ बयान दिए जा रहे हैं, वो अभियान को विकास और गुड गर्वनेंस से भटका रहे हैं. मैं ऐसे किसी भी गैर ज़िम्मेदार बयान को नामंज़ूर करता हूं.'
यह वो समय था जब नरेंद्र मोदी गुडी गुडी इमेज बना रहे थे. किसी भी तरह से ऐसी राजनीति को पीछे रख रहे थे और अपने भाषणों में एक टीम इंडिया की बात कर रहे थे. क्रिकेट की टीम को टीम इंडिया कहा जाता था. ज़हीर ख़ान, इरफ़ान पठान या अज़हरुद्दीन के बगैर टीम इंडिया होती नहीं थी. कोई नहीं कहता था कि इरफ़ान पठान गद्दार है. आतंकवादी है. सब टीम इंडिया का हिस्सा थे. बीजेपी ने जल्दी ही टीम इंडिया की भाषा छोड़ दी. 2015 में चुनाव जीतने की जल्दी में रक्सौल की सभा में अमित शाह ने कह दिया कि बिहार में बीजेपी हारी तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे. जिस झारखंड के गोड्डा में गिरिराज ने पाकिस्तान वाली बात कही थी और उन्हें डांट पड़ी थी उसी झारखंड के दुमका में प्रधानमंत्री मोदी कपड़े से पहचानने वाली बात कहते हैं. 15 दिसंबर 2019 को. गोड्डा और दुमका में मात्र 73 किमी की दूरी है. छह साल में गिरिराज का बयान प्रधानमंत्री मोदी का हो चुका था.
कपड़ों से पहचानने की राजनीति ने रुकने का नाम न लिया. आतंकवादी बताने, गद्दार बता कर गोली मारने के नारे लगाए जाने लगे. न प्रधानमंत्री ने रोका और न ही चुनाव आयोग ने एफआईआर की. खुद गृहमंत्री अपनी पूरी लड़ाई को शाहीन बाग को दिए जाने वाले जवाब से जोड़ने लगे. टुकड़े टुकड़े गैंग से जोड़ने लगे. यानी जिस लाइन से बीजेपी ने 2014 में इंकार किया था वो 2020 में बीजेपी की मेन लाइन हो गई.
लोकसभा में कांग्रेस के सासंद विंसेंट एच पाला और जसबीर सिंह गिल ने एक सवाल पूछा. क्या टुकड़े टुकड़े गैंग के नाम से किसी गैंग की पहचान की गई है, क्या इसे गृहमंत्रालय या कानून के हिसाब से इसे श्रेणीबद्ध किया है, क्या यह जुमला किसी खास सूचना पर आधारित है, क्या मंत्रालय ने टुकड़े टुकड़े गैंग के नेताओं की कोई सूची बनाई है. इसके जवाब में भारत के गृह राज्य मंत्री ने एक लिखित जवाब में कहा है कि मंत्रालय के पास टुकड़े टुकड़े गैंग नाम के किसी ग्रुप की कोई सूचना नहीं है. न ही ऐसी किसी जांच एजेंसी द्वारा सरकार के ध्यान में ऐसी सूचना लाई गई है.
तो आपने देखा कि टुकड़े टुकड़े गैंग को लेकर सरकार के पास ऐसी कोई सूचना नहीं है. मगर इस टुकड़े टुकड़े गैंग नाम से ऐसा भूत खड़ा किया गया कि कुछ लोग देश को बांट रहे हैं. केजरीवाल चुप चाप इस राजनीति से दूर स्कूल अस्पताल की बात करते रहे. तभी एक पत्रकार मुख्यमंत्री केजरीवाल से सवाल पूछता है कि क्या आप हनुमान चालीसा सुना सकते हैं. केजरीवाल सुना देते हैं. फिर राजनीति में बजरंग बली एंट्री करते हैं.
मगर यह सवाल ही खतरनाक था. किसी नेता के हिन्दू होने की जांच करने वाला सवाल. इस सवाल के जवाब की राजनीति में दिल्ली में एक नया प्रतीक खोज लिया जाता है. केजरीवाल कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर जाते हैं. बीजेपी मंदिर जाने पर सवाल करती है. बीजेपी को लगा कि जैसे राहुल गांधी को मंदिर जाने पर घेर लिया था वैसे ही केजरीवाल को घेर लेंगे. केजरीवाल ने लौट कर ट्वीट कर दिया कि बजरंग बली ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया है. अब इस बात की कॉपी कौन चेक करता कि आशीर्वाद दिया है या नहीं. बीजेपी ऐसा करती तो फंस जाती. केजरीवाल ने जीत के बाद पहले भाषण में कहा भी कि आज मंगलवार है. इसके बाद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया हनुमान मंदिर जाते हैं. दिल्ली की राजनीति का कोई धार्मिक केंद्र नहीं था. बीजेपी के हिन्दू मुस्लिम राजनीति ने 2020 के चुनाव में पहली बार एक धार्मिक केंद्र दिया है. कनाट प्लेस का हनुमान मंदिर. यह केंद्र अरविंद केजरीवाल का खोजा हुआ है. जिस मंदिर में लाखों लोग चुपचाप जाते रहे हैं वह अब राजनीतिक हार और जीत से पहले और बाद के चुनावी कार्यक्रम का हिस्सा बन गया है. बजरंग बली की खोज काम आई. सौरभ भारद्वाज ने बताया कि जब बीजेपी के कार्यकर्ता मतदाताओं को जय श्री राम बोल कर हिन्दू खतरे में है बोल कर बीजेपी को वोट देने के लिए कह रहे थे तब आम आदमी के कार्यकर्ता जय बजरंग बली बोल कर उनका मुकाबला करने लगे.
हर चुनाव में अगर ऐसे ही देवताओं की मदद ली जाने लगी तो राजनीति में जनता हारती चली जाएगी. एक दिन चुनाव इसी पर हो जाएगा कि मैदान में बजरंग बली की जय होगी या मां दुर्गा की. अगर मतदाता हिन्दू होने लगेगा, मुस्लिम होने लगेगा तो कमज़ोर हो जाएगी. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला ने दिल्ली के कनाट प्लेस के मुख्य पुजारी से बात की.
अनुराग ठाकुर ने मंच से गोली मारने के नारे लगवा कर आने वाले समय में बीजेपी के खाते में कौन सा हीरा जोड़ा है, समझना होगा. बीजेपी के सांसद प्रवेश सिंह वर्मा को अपने बयानों से क्या मिला सोचना चाहिए. प्रवेश वर्मा ने यहां तक कह दिया कि शाहीन बाग़ की तरफ से लोगों की भीड़ आएगी और लड़कियों को घरों से निकाल कर ले जाएगी. बलात्कार करेगी. मार डालेगी. व्हाट्सएप यूनिवर्सटि में मुसलमानों के खिलाफ दिन रात दुष्प्रचार चलता रहता है. इस ज़हर ने अनेक युवाओं को सांप्रदायिक बना दिया है लेकिन खुद बीजेपी के बड़े नेता शिकार हो जाएंगे उन्हें पता भी नहीं चला.
6 फरवरी को दिल्ली के गार्गी कॉलेज में मर्दों की भीड़ टूट पड़ी. लड़कियों के साथ जम कर यौन हिंसा हुई. न तो पुलिस थी और न ही प्रवेश वर्मा के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह वहां बचाने गए थे. प्रवेश वर्मा ने कहा था कि दिल्ली में औरतों को सिर्फ मोदी और शाह बचा सकते हैं. खुद प्रवेश वर्मा भी गार्गी कालेज नहीं गए हैं. सोचिए इस भीड़ को अब अपराधी कहने के लिए हमारे पास शब्द नहीं बचे हैं. हमारे सारे शब्द शाहीन बाग़ और एक समुदाय को अपराधी और आतंकवादी बताने में खत्म होने लगे हैं. गारगी कालेज की लड़कियां अपनी लड़ाई अकेले लड़ रही हैं. वो दस फरवरी को भी लड़ रही थीं और 11 फरवरी को भी कालेज में आंदोलन कर रही थीं जब दिल्ली चुनाव के नतीजे आ रहे थे.
चुनाव आयोग की भी बात हो. केजरीवाल को आतंकवादी कहने पर प्रवेश वर्मा पर चुनाव आयोग कदम उठाता है और वही बयान जब प्रकाश जावड़ेकर देते हैं तो चुनाव आयोग कदम नहीं उठाता है. क्या चुनाव आयोग ने नफरत से भरे बयानों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाएं.
नागरिकता संशोधन कानून की राजनीति अभी खत्म नहीं हुई है. यह निर्भर करेगा कि आम आदमी पार्टी इस पर क्या स्टैंड लेती है, क्या वह बाकी विपक्षी सरकारों की तरह विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव पास करेगी. इस सवाल का जवाब चुनाव में नहीं मिला, क्या बाद में मिलेगा, दिल्ली में जो हुआ है, जो हो रहा है, वो इस चुनाव के बाद थम जाएगा, रुक जाएगा, दावे से नहीं कह सकते. दावे के साथ तो यह कहा जा रहा है कि अब दिल्ली के बाद बिहार और बंगाल में हिन्दू खतरे में पड़ेगा, वहां के मुसलमानों को आतंकवादी और गद्दार कहा जाएगा. और उनके साथ जो खड़ा होगा या खड़ा होने से कतराएगा उसे आतंकवादी कहा जाएगा.