एक राजा था. बेहद प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी. उसकी वाणी में मानो साक्षात सरस्वती विराजती थीं. वह बोलना शुरू करते तो जनता लाजवाब हो जाती. विपक्षियों को मानो सांप सूंघ जाता. किस्सागोई और लच्छेदार वाक्यों के घोल में जनता अपना सारा सुख-दुख भूल जाती. जनता कहती, पानी चाहिए. जनता कहती, रोटी चाहिए. जनता कहती, काम चाहिए. राजा कहते, हम एक ऐसा देश रच रहे हैं, जहां दूध की नदियां बहेंगी, जहां न्याय की घंटियां चौबीसों घंटे बजा करेंगी. बस उनका कहना होता और जनता स्वप्नलोक में विचरण करने लगती. कुछ सवाल अगर आते भी, तो उन्हें राष्ट्रविरोधी करार दे दिया जाता. राजा का राज और इकबाल बुलंदी पर था. लेकिन वह समय से कुछ बड़ा करने के मूड में थे. उन्हें लग रहा था कि ऐसा कोई काम किया जाए, जिससे वह इतिहास के आंगन का बरगद बन जाएं, और उनके विरोधी सूरन की तरह धरती में समा जाए. आखिर वह दिन आ ही गया.
एक रोज़ राजा को उसके राज्य के सबसे बड़े तालाब में मगरमच्छ के 'सपरिवार' होने की ख़बर (शिकायत) मिली. ऐसी शिकायतें, सूचनाएं पहले भी आती रहती थीं. पूर्व राजाओं ने कड़ी कार्रवाई भी की थी, लेकिन कभी किसी ने इसे ऐसे अवसर के रूप में नहीं देखा था, जिससे राजा को इतिहास के आंगन में बरगद बनने का मौका मिले.
राजा ने एक रात अपने खास मंत्री को विशाल काफिले के साथ गांव की ओर रवाना कर दिया. विशाल मशीनें, बड़ी संख्या में सैनिक, उनसे भी ज़्यादा मजदूर. ऐसा काफिला, जिसे दूर से देखते ही लोगों में भय का वातावरण बन गया. जनता को संदेश गया कि राजा ने ज़रूर ऐसा बड़ा कदम उठाया है, जो अब तक कभी नहीं उठाया गया था. राजा पर सबका भरोसा जयघोषों के बीच बढ़ता गया. पूरे राज्य में बस एक ही चर्चा कि राजा ने कुछ बड़ा किया है, कुछ अच्छा किया है. यह काफिला बड़ा था और इस पर खर्च भी बड़ा था, तो राजा ने तुरंत एक टैक्स लगा दिया कि जिस–जिस गांव से होकर काफिला गुज़रेगा, उसे टैक्स देना होगा.
कुछ मासूमों, नासमझों की तरफ से आपत्तियां आईं, लेकिन उन्हें सरकार ने राजद्रोह करार दिया. राजा की ओर से ट्विटर पर लिखा गया, '...बड़े स्ट्राइक्स में दर्द भी बड़ा होता है... यह ऐसा कदम है, जिससे हम मगरमुक्त समय में प्रवेश कर जाएंगे...'
इस संदेश के प्रसारित होते ही...
मंत्री ने काफिले के साथ मगरमच्छ वाले गांव में प्रवेश कर लिया. उसे तालाब की पूरी स्थिति और वहां के पर्यावरण के हिसाब से काम करना था. तालाब पर आश्रितों और विस्थापितों के लिए पूरी योजना बनाने के बाद कार्रवाई होनी थी, लेकिन सोशल मीडिया पर संदेश आते ही उसने तुरंत एक्शन कह दिया. उसके एक मंत्री विदुर भारतवंशी ने विरोध करते हुए कहा, "यह एक बड़ा तालाब है, लाखों लोगों इसका पानी पीते हैं... यह उनके जीवन से जुड़ा हुआ है... मछलियों से बड़ा पर्यावरण और उससे बढ़कर इसके सहारे रोज़ी-रोटी कमाने वालों का क्या होगा... हमें तैयारी करके इस प्लान को आगे बढ़ाना चाहिए..." मंत्री ने विदुर को रोकते हुए कहा, "यह एक अच्छी सलाह है, लेकिन गलत समय पर है... यह इतिहास के आंगन में अपनी नेमप्लेट लगाने का समय है, चिंतन का नहीं... वीर चिंतन नहीं करते, एक्शन लिया करते हैं..."
और फिर... तालाब में भारी मात्रा में मिट्टी डालने के आदेश दे दिए गए, ताकि मगरमच्छ का अंत हो जाए. लेकिन ऑपरेशन शुरू होने की ख़बर लीक हो गई. उधर मिट्टी डलना शुरू हुआ और इधर एक-एक कर मगरमच्छ ने अपनी फैमिली दूसरे निकटवर्ती तालाब में शिफ्ट कर दी. इस बीच राजा ने होर्डिंग लगवा दिए. 'गरीबों के हित' में किए जा रहे काम की मुनादी में लाखों स्वर्ण मुद्राएं खर्च कर दीं.
तालाब से जिन मछुआरों का पेट पलता था, वे बेरोजगार हो गए. कई स्वर्ग सिधार गए. अनेक अपना सामान समेट दूसरे गांव की ओर निकल पड़े. मछलियां मिट्टी में दबकर मर गईं. वनस्पति और पर्यावरण पर खतरा बढ़ा, तो दूसरी ओर राजा के जनसंपर्क मंत्री ने कुछ नाटक कंपनियों को हायर कर लिया. उन्होंने गांव-गांव नाटक खेल लिए. तालाब में मगरमच्छ को मार गिराने के शौर्य के लिए दरबारी कवियों ने कई गीत लिख दिए.
एक जर्मन कंपनी ने रिपोर्ट जारी करते हुए लिखा - महाराज के तालाब में मिट्टी डालने के कदम से दुनियाभर में मछलियों और आम जनता पर हमला करने वाले 'मगरों' को कड़ा संदेश गया है. इस बीच, मिट्टी डालने वाली मशीन खराब हो गई, ठेकेदार ने भर्ती रोस्टर से पैसा डकार लिया और भुगतान नहीं मिलने से सैकड़ों मज़दूर काम छोड़कर चले गए. उधर, मगरमच्छ ने एक ओर सिमट आई मछलियों का भरपूर सेवन किया और अपने स्टॉक के साथ नज़दीकी तालाबों की ओर निकल गया.
राजा के महामंत्री को मगर के निकल जाने की ख़बर मिली तो मंत्रियों ने 'नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट विभाग' के CEO को तलब किया. वह काफी होशियार अफसर था. उसे इस तरह के ऑपरेशनों का खासा अनुभव था. उसने तुरंत दूसरे राज्य के शिकारियों से मगरमच्छ खरीद लिए, क्योंकि होर्डिंग्स लग चुके थे, गांव-गांव में नाटक खेले जा चुके थे. मीडिया ने राजा के जनता के प्रति संकल्प को 'रामराज्य' की संकल्पना के रूप में जनता के सामने विस्तार से रखा.
महामंत्री ने जर्मनी रिपोर्ट को राजा के सामने पेश करते हुए कहा, 'सर, हमें एक विशाल जनसभा करनी चाहिए... हमें विदेशी रिसर्च सेंटर तक समर्थन दे चुके हैं... आप तो जानते ही हैं, जर्मन बिला वज़ह किसी का समर्थन नहीं करते... उन्होंने भी लिखा है कि एक महान कल्याणकारी योजना आपके राज्य में किस तरह लागू की जा रही है...'
कुछ ही दिन बाद अख़बारों ने इस पर जो लिखा, उसका सार इस प्रकार था...
"राजा के मगरमच्छ-विरोधी इस अभियान का जनमानस पर व्यापक असर है... राज्य के सारे मगरमच्छ डरे हुए हैं... अब उनमें जनता और मछलियों के विरुद्ध जाने का साहस नहीं है... यहां तक कि वे सप्ताह में एक दिन का व्रत भी रख रहे हैं..."
दयाशंकर मिश्र Khabar.NDTV.com के संपादक हैं...
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This Article is From Nov 30, 2016
ऑपरेशन 'मगरमच्छ' : वीर राजा की कहानी, इसे नोटबंदी से न जोड़ें
Dayashankar Mishra
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 30, 2016 16:19 pm IST
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Published On नवंबर 30, 2016 14:57 pm IST
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Last Updated On नवंबर 30, 2016 16:19 pm IST
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