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This Article is From Jul 09, 2015

अब शिवराज का क्‍या होगा...! कुछ नहीं...

Written by Dayashankar Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 22, 2016 12:56 pm IST
    • Published On जुलाई 09, 2015 13:12 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 22, 2016 12:56 pm IST
अब जबकि व्‍यापमं की जांच CBI को सौंप दी गई है, बीजेपी के प्रवक्‍ता दिल्‍ली और मध्य प्रदेश में सक्रिय हो गए हैं। अब कहा जा रहा है कि सारी मांगें मान ली गई हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्‍या सीबीआई की जांच व्‍यापमं में व्‍याप्‍त घोटाले का सबसे बड़ा निदान है...? क्‍या इसकी कोई राजनैतिक जिम्‍मेदारी नहीं थी। क्‍या यह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन वादों का मजाक नहीं है, जिनमें भ्रष्‍टाचार के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरतने की कसमें थीं। लेकिन जब सुषमा स्‍वराज को नहीं हटाया गया, वसुंधरा राजे को नहीं हटाया गया तो फि‍र शिवराज सिंह चौहान को क्‍यों हटाया जाए!

यह तो शिवराज के साथ नाइंसाफी होती कि तीन एक जैसे मामलों में दो लोगों को तो अभयदान मिला, लेकिन चौहान के हाथ से सत्‍ता छीन ली जाती। प्रधानमंत्री को जनता से किए वादों से ज्‍यादा यह बात खलती थी कि शिवराज-वसुंधरा और सुषमा स्‍वराज तीनों ने कभी पूरे मन से मोदी जी को नेता नहीं माना। खासकार सुषमा और शिवराज तो काफी देर तक मोर्चा संभाले रहे। वसुंधरा को पीएम ने एक कड़ा संदेश उस समय दिया, जब उनके बेहद योग्‍य और राजसी अंदाज वाले बेटे को लाख मनुहार के बाद भी अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।

सुषमा और शिवराज ने पीएम मोदी की ताजपोशी के बाद हथियार डाल दिए। सुषमा ने तो खामोशी की चादर ओढ़ ली। शिवराज चुपचाप व्‍यापमं का विस्‍तार करते रहे और प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर चले गए।

प्रेमचंद अपनी महान कहानी 'पंच परमेश्‍वर' में कहते हैं, अपनी कामनाएं भले पूरी न हों, लेकिन दुश्‍मनों से बदला लेने का अवसर समय जरूर देता है! भारतीय राजनीति में मोदी जी के अजेय कहे जा रहे कार्यकाल ने सालभर बाद ही भले हांफना शुरू कर दिया हो, लेकिन उन्‍हें अपने विरोधियों से निपटने का भरपूर अवसर एक साल बाद ही मिल गया। एक साथ शिवराज, सुषमा और वसुंधरा और कुछ हद तक रमन सिंह भी मोदी जी के राडार पर हैं।

तो इन्‍हें हटाया क्‍यों नहीं गया! तमाम आलोचनाओं के बाद भी अभयदान क्‍यों दिया गया! इसलिए ताकि घर, यानी संघ में शांति बनी रहे। इन चारों की जान पीएमओ में बसी है। सबसे शक्तिशाली मुख्‍यमंत्री और भाग्‍य पलटने दिल्‍ली तक आ धमकने का हुनर रखने वाले शिवराज की जान अब उस 'तोते' में है, जिसका कभी बीजेपी के दिग्‍गज ही मज़ाक उड़ाया करते थे।

तो इस बात की पूरी संभावना है कि व्‍यापमं में होने वाली मौतें रुक जाएंगी। सीबीआई अपनी जांच पूरी करती रहेगी, नष्‍ट प्रमाणों और बिना किसी समय सीमा के, और शिवराज की चुनौती और संभावनाएं फ‍िलहाल के लिए समाप्‍त।

यह सचुमच अविश्‍वसनीय भारत है, जहां इतने बड़े घोटाले और हत्‍याओं को राजनीति अपनी सुविधा के हिसाब से इस्‍तेमाल कर रही है। यह सरकार भी उसी रास्‍ते पर चल पड़ी है, जिस पर यूपीए-2 थी। सत्‍ता अपना स्‍वभाव नहीं बदलती। हमारे पास सिवाए सरकारें बदलने के कोई विकल्‍प नहीं है! है क्‍या...?

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