केंद्र सरकार की किसान विरोधी छवि मिटाने की कोशिश है फसल बीमा योजना

केंद्र सरकार की किसान विरोधी छवि मिटाने की कोशिश है फसल बीमा योजना

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जिस आक्रामक ढंग से फसल बीमा योजना को जनता के सामने पेश किया है, उससे साफ है कि पार्टी और नरेंद्र मोदी सरकार ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह योजना तैयार की है। पार्टी को एहसास है कि वह चाहे लैंड बिल हो, या कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का 'सूट-बूट की सरकार' कहकर हमला, विपक्षी पार्टियां सरकार की किसान-विरोधी छवि बनाने की कोशिश में लगी हैं। बिहार विधानसभा चुनाव और गुजरात-महाराष्ट्र के स्थानीय निकायों के चुनाव में, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में, हुई बीजेपी की करारी शिकस्त शायद यह दिखा भी रही है कि विपक्षी पार्टियां अपनी कोशिश में कामयाब हो रही हैं।

फसल बीमा योजना के जरिये सरकार सीधे किसानों से जुड़ना चाह रही है। यह ज़रूर है कि पहली बार फसल बीमा योजना की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने ही की थी और बाद में उसे अलग-अलग ढंग से राज्यों में लागू किया गया, लेकिन योजना इतनी जटिल और किसान-हित-विरोधी है कि इससे अधिकांश किसानों को फायदा नहीं मिल सका। इस बीच मॉनसून के कमज़ोर रहने, लगातार सूखा पड़ने, और बेमौसम बारिश से फसलें बर्बाद होने से किसानों की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ग्रामीण इलाकों में आमदनी में कमी आई है, और सरकार की नीतियों का सीधा फायदा किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

इसी बीच, मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल पर अपना काफी कुछ दांव पर लगा दिया था। वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री लैंड बिल के फायदे इस तरह गिनाने में जुट गए थे, जैसे इसके लागू होने से किसानों की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। पार्टी नेताओं से कहा गया कि वे देशभर में घूमकर किसानों को लैंड बिल के फायदे गिनाएं, मगर पार्टी के एक हिस्से और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के भीतर से ही विरोध की वजह से सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े। इसी बीच, कांग्रेस लैंड बिल को लेकर लगातार हमलावर होती चली गई। आग में घी डालने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सूट ने किया और राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार को 'सूट-बूट की सरकार' कहते हुए इस पर किसान-गरीब विरोधी होने और उद्योगपतियों की हिमायती होने का आरोप लगाते रहे।

सरकार के भीतर यह राय भी बनी कि वैसे तो गरीब, किसान और मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं, जिनमें प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, जनधन योजना और मुद्रा बैंक जैसी कई महत्वपूर्ण योजनाएं शामिल हैं, लेकिन ये दीर्घकालीन योजनाएं हैं और इनका सीधा फायदा जनता तक पहुंचने में वक्त लगेगा। उम्मीदों की लहर पर सवार होकर सत्ता में आई मोदी सरकार को लेकर लोग इतना इंतज़ार करने को तैयार नहीं हैं। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं। लोग तात्कालिक परिणाम चाहते हैं और उनकी यह भी अपेक्षा है कि ज़मीन पर काम होता दिखना चाहिए। सरकार से उनकी यह अपेक्षा भी होती है कि वह सीधे-सीधे उनके जीवन पर असर डाले।

ग्रामीण इलाकों में असंतोष की हवा स्थानीय निकायों के चुनावों में दिखने लगी है। हाल में महाराष्ट्र में बीजेपी सत्ता में होने के बावजूद चौथे नंबर पर आई। वहीं गुजरात में, जहां शहरी इलाके बीजेपी के साथ रहे, ग्रामीण इलाकों में पार्टी की हार हुई। वहां हार के कारणों में एक कारण यह भी गिनाया गया कि राज्य सरकार समय रहते कपास के न्यूनतम खरीद मूल्य में बढ़ोतरी नहीं कर सकी, इसीलिए किसान इससे नाराज़ हुए। इसके बाद सरकार में यह सोच बनी कि किसानों तक सीधे तौर पर फायदा पहुंचना ज़रूरी है।

इसी मकसद से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तैयार की गई है। मौजूदा योजना की तुलना में नई योजना किसानों को तुरंत और प्रभावी फायदा पहुंचाने में मददगार होगी। पुरानी योजना में किसानों को बैंकों से कर्ज बीमे का प्रीमियम काटकर ही दिया जाता था और प्रीमियम की राशि भी 15 फीसदी तक होती थी। नई योजना में प्रीमियम की राशि न के बराबर है। यानी रबी (सर्दी) फसलों के लिए डेढ़ फीसदी और खरीफ (गर्मी) की फसलों के लिए दो फीसदी। नई योजना का फायदा सभी किसानों को मिलेगा। कोशिश है कि खेत में बीज बोने से लेकर फसल पककर घर आने तक बीमा के दायरे में रहे, ताकि किसी भी तरह का नुकसान होने पर किसान की भरपाई हो सके।

पूर्वी उत्तर प्रदेश, मराठवाड़ा, बुंदेलखंड और विदर्भ के सबसे ज्यादा सूखा-प्रभावित इलाकों को इस योजना का सीधा फायदा मिलेगा। इन्हीं इलाकों में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। फसल खराब होने पर 25 फीसदी क्लेम तुरंत सीधे किसान के खाते में पहुंचेगा। नुकसान का जायज़ा लेना और फिर मुआवजे की रकम तय करना जैसी सरकारी औपचारिकताएं बाद में पूरी की जाएंगी। प्राकृतिक आपदाओं के साथ स्थानीय आपदाओं को बीमे के दायरे में शामिल किया गया है। बेमौसम की बारिश, ओला गिरने या फिर आंधी-तूफान से फसल का नुकसान होने पर भी किसानों को बीमे की राशि दी जाएगी।

सरकार के सामने अब बड़ी चुनौती इस योजना को ज़मीन पर लागू कर किसानों को सीधा और तुरंत फायदा पहुंचाने की है। पार्टी को भी इस काम में जोड़ लिया गया है। व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार की योजना बनाई गई है। राज्य सरकारों को साथ लेने की कवायद की गई है। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से उसे अपनी छवि बदलने में मदद मिलेगी, मगर ऐसा तभी हो पाएगा, जब सबसे ज्यादा प्रभावित किसानों तक यह योजना और इसका लाभ पहुंच पाए।

अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया में पॉलिटिकल एडिटर हैं...

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