विज्ञापन
This Article is From Sep 21, 2022

'जादू' की उम्मीद में अशोक गहलोत, चाह रहे कांग्रेस में 'डबल रोल'

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 21, 2022 14:59 pm IST
    • Published On सितंबर 21, 2022 14:41 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 21, 2022 14:59 pm IST

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जिन्हें सार्वजनिक तौर पर जादूगर (उनके पिता पेशे से जादूगर थे) कहा जाता है, ने कल देर शाम सबको चौंकाते हुए कांग्रेस विधायकों की बैठक बुला ली (जिसे कई लोग एक तरह का जादू कह रहे हैं) और उन्हें गारंटी दी कि वह दिल्ली में रहते हुए भी राजस्थान की सेवा करते रहेंगे. इसका निहितार्थ यह हुआ कि यदि उन्हें कांग्रेसी पार्टी का नेतृत्व करने के लिए अध्यक्ष बनाया जाता है, जैसा कि सोनिया गांधी ने आग्रह किया है, तो वह अपना गढ़ और गद्दी सचिन पायलट जैसे प्रतिद्वंद्वी के हाथों में नहीं सौंपेंगे.

अशोक गहलोत 71 वर्ष के हैं; सचिन पायलट, जो कभी उनके डिप्टी थे, 45 वर्ष के हैं. साल 2018 में जब कांग्रेस ने राजस्थान विधानसभा का चुनाव जीता था, तब पायलट से वादा किया गया था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दोनों नेता  बारी-बारी से बैठेंगे. हालांकि, ऐसा होना अभी बाकी है. जबकि, राजस्थान में नई सरकार के गठन के लिए अगले साल चुनाव होने हैं. अशोक गहलोत ने ठान लिया है कि इस कार्यकाल में सचिन पायलट को राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाय. वह चाहते हैं कि अगर वो कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं, तो उनके द्वारा नामित व्यक्ति ही राज्य का मुख्यमंत्री बने.

gqm7u0b4
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट (फाइल फोटो)

राजस्थान पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए ही गहलोत ने कल रात सभी विधायकों की बैठक बुलाई. समय भी उपयुक्त था क्योंकि सचिन पायलट राहुल गांधी के नेतृत्व में 'भारत जोड़ो यात्रा' के तहत पदयात्रा के लिए केरल में हैं. आज दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भारत जोड़ो पदयात्रा में शामिल होने की बारी अब अशोक गहलोत की है.

दो दिन पहले सचिन पायलट ने नव निर्वाचित उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से मुलाकात की थी. उसी दिन अशोक गहलोत ने भी फौरन उनके लिए रात्रि भोज का आयोजन कर दिया. धनखड़ मूल रूप से राजस्थान के ही रहने वाले हैं. कांग्रेस के दोनों नेताओं के पदों में बदलाव की संभावनाओं के बीच उनकी पुरानी प्रतिद्वंद्विता चरम पर पहुंच गई है.

ddgkovbo
उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ सचिन पायलट

शशि थरूर, जिन्होंने दो दिन पहले सोनिया गांधी से मुलाकात की थी और उन्हें सूचित किया था कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते हैं, ने कल शाम प्रियंका गांधी से भी मुलाकात की थी. कांग्रेस पूरे दो दशकों के बाद अपने शीर्ष पद पर चुनाव के लिए तैयार है. शशि थरूर के करीबी सूत्रों ने मुझे बताया कि वह सोनिया गांधी से "अनुमति लेने" या "ग्रीन सिग्नल" के लिए नहीं बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर चर्चा करने के लिए मिले थे. शशि थरूर ने स्पष्ट रूप से सोनिया गांधी को चुनावों में साफ-सुथरी प्रक्रिया का "समर्थक" पाया, और यह रेखांकित करते हुए पाया कि वह "आधिकारिक" उम्मीदवार नहीं उतारेंगी बल्कि चुनावों में "तटस्थ" रहेंगी. हालाँकि, यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सोनिया गांधी अशोक गहलोत से कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका निभाने का आग्रह करती रही हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें गांधी परिवार के उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है.

लेकिन अशोक गहलोत से लेकर शशि थरूर तक, हर कोई सार्वजनिक रूप से राहुल गांधी के लिए अपने कदम पीछे खींचने के लिए तैयार है, जो इन दिनों पार्टी के "एकता मार्च" का नेतृत्व कर रहे हैं. राहुल ने सार्वजनिक रूप से इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या वह पार्टी की कमान संभालेंगे लेकिन सूत्रों का कहना है कि निजी तौर पर, उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वह फिलहाल इस पद को स्वीकार नहीं करेंगे.

pvholeq8
'भारत जोड़ो यात्रा' में राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेता.

अशोक गहलोत के करीबी विधायकों ने मुझसे कहा कि जब वो 'भारत जोड़ो यात्रा' पर राहुल गांधी से मिलेंगे तो वह उन्हें अध्यक्ष पद के लिए मनाने की अंतिम कोशिश करेंगे और फिर भी वह नहीं माने तो, जाहिर तौर पर "पार्टी को बचाने" के लिए, वह अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल करेंगे. मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अनिच्छुक उम्मीदवार हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी उन्हें जो कुछ भी कहेगी, वह उसे स्वीकार करेंगे. अशोक गहलोत एक चतुर नेता हैं, गांधी परिवार के भरोसेमंद हैं; जब सचिन पायलट ने दो साल पहले कांग्रेस को विभाजित करने का प्रयास किया था, तो यह अशोक गहलोत की राजनीतिक चतुराई थी जिसने सब बचा लिया था. सचिन पायलट के कथित समर्थकों को उनसे तब तक दूर रखा गया, जब तक कि युवा नेता को अलग-थलग नहीं छोड़ दिया गया और राजस्थान में तख्तापलट के विनाशकारी प्रयास के बाद मातृत्व भाव में उन्हें वापस आना पड़ा.

अशोक गहलोत ने गुजरात में पिछले चुनाव में राहुल गांधी के साथ मिलकर काम किया था, जहां कांग्रेस बीजेपी को डराने में कामयाब रही. हालांकि बीजेपी राज्य की सत्ता बचाए रखने में कामयाब रही. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अशोक गहलोत के पास विशाल संगठनात्मक कौशल और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जुड़ाव है क्योंकि उन्होंने पार्टी में बहुत सारे पदों पर काम किया है. बड़े कॉरपोरेट्स घरानों के साथ भी उनके अच्छे समीकरण हैं, जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है.

दूसरी ओर, शशि थरूर कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं के समूह G-23 के एक मूक सदस्य रहे हैं, जिन्होंने सोनिया गांधी को कई पत्र लिखे और कांग्रेस में बदलाव की मांग की.  G-23 के दो संस्थापकों, कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी के खिलाफ तीखे व्यक्तिगत हमला करने के बाद कांग्रेस छोड़ दी है.

868rvl9s
राहुल गांधी और शशि थरूर (फाइल फोटो)

शशि थरूर को सोनिया गांधी ने ही राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया था और 2009 के लोकसभा चुनाव में वह पहली बार तिरुवनंतपुरम से लोकसभा के लिए चुने गए थे. वह एक प्रसिद्ध लेखक और उत्कृष्ट सार्वजनिक वक्ता हैं. वह देश के शहरी इलाकों में पसंद किए जाते हैं लेकिन उनके पास कार्यकर्ताओं का आधार नहीं है. यहां तक कि उनके अपने ही गृह राज्य केरल की पार्टी इकाई, उनका समर्थन नहीं करती है. 10 अन्य राज्यों के साथ केरल ने भी राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया है.

कांग्रेस के अंतिम गैर-गांधी अध्यक्ष सीताराम केसरी थे, जिनकी जगह 1998 में सोनिया गांधी ने ली थी, और अब वह पार्टी की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली अध्यक्ष हैं. कांग्रेस, और लगातार पार्टी छोड़कर जाने वालों के बाद यहां बचे हुए कुछ नेता गांधी परिवार को लेकर कुछ ज़्यादा ही भावुक हैं. सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी के पास एक दृष्टिकोण है, जिसके तहत पार्टी का एजेंडा और विचारधारा तय करना उनका काम है, जबकि पार्टी अध्यक्ष संगठनात्मक सहयोग और लॉजिस्टिक्स देंगे. मौजूदा व्यवस्था काफी हद तक ऐसी है, जहां राहुल गांधी पर्दे के पीछे रहकर सभी फैसले किया करते हैं, और उनकी मां सोनिया की स्थिति रबर स्टाम्प जैसी होकर रह गई है.

कांग्रेस के अंदर इस कॉस्मेटिक सर्जरी से पार्टी के पतन में कितनी मदद मिलेगी, यह बहस का विषय है, जहां नेतृत्व से लेकर संगठनात्मक परिवर्तन तक, सब कुछ डू नॉट डिस्टर्ब मोड में है. हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष बनकर अशोक गहलोत को इस बात की खुशी होगी कि सचिन पायलट को अपना उत्तराधिकारी न बनने दिया जाय. इस बीच, युवा नेता अपना ड्रीम जॉब (मुख्यमंत्री का पद) पाने के लिए संघर्षशील हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com