विज्ञापन
This Article is From Nov 09, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : अच्छे-अच्छे संस्थानों का हाल ख़राब, ऐसी शिक्षा व्यवस्था छात्रों से खिलवाड़

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 10, 2017 12:40 pm IST
    • Published On नवंबर 09, 2017 22:07 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 10, 2017 12:40 pm IST
हमारी यूनिवर्सिटी सीरीज़ का 22वें अंक में प्रवेश कर चुकी है. हमारी सीरीज़ का असर ये हुआ कि व्यवस्था के कान पर जूं तो नहीं रेंगी मगर घास कट गई है. यह भी बड़ी कामयाबी है कि भले टीचर न रखे जाएं, लाइब्रेरी ठीक न हो, शौचालय न हो मगर इन सबके बीच घास कट जाए तो माना जाना चाहिए कि अभी कुछ बचा हुआ है. पिछली सीरीज़ में हमारे सहयोगी सोहित मिश्र जब मुंबई यूनिवर्सिटी के भाषा भवन की तरफ जा रहे थे तो घास की ये हालत थी कि जो व्यक्ति रास्ता बता रहा था वो बीच में ही रुक गया, कहीं यहां सांप न हो. भाषा भवन 2015 से बनकर तैयार है मगर इसका इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है. सोहित की ऊंचाई से भी बड़ी है घास की ऊंचाई. लग रहा है यूनिवर्सिटी नहीं, दियरा में भटक रहे हैं. सोहित ने नई तस्वीर भेजी है. बता रहे हैं कि अब यहां से घास काट दी गई है. मैदान साफ हो गया है. मगर छात्रों के रिज़ल्ट को लेकर जो प्रदर्शन हो रहे हैं उसका कोई नतीजा नहीं आया है. 9 नवंबर को हताश होकर छात्र परीक्षा भवन में ही ताला लगाने पहुंच गए. सफल तो नहीं हुए मगर उनकी परेशानी समझिए. मुंबई यूनिवर्सिटी में क्या घपला हुआ है, एक वीसी तक हटा दिया गया मगर जून में आने वाला रिज़ल्ट अभी तक अंतिम रूप से नहीं आया है. छात्र अब मांग कर रहे हैं कि जबतक दोबारा जांच के नतीजे नहीं आ जाते हैं दूसरी परीक्षाओं का आयोजन न हो.

समस्याएं जब तक कुलीन नहीं होती हैं उन पर किसी की निगाह नहीं जाती है. मुंबई यूनिवर्सिटी के ये छात्र कम से कम खिचड़ी पर ही बहस करते तो शायद लोगों का ध्यान चला जाता. आज हम आपको बंगलुरू ले जाना चाहते हैं. एम विश्वेश्वरैया का नाम तो सुना ही होगा, इनके जन्मदिन पर पूरे भारत में इंजीनियर्स डे मनाया जाता है. 15 सितंबर मनाया जाता है. देश के हर राज्य में आपको विश्वेश्वरैया भवन, चौराहा और उनकी मूर्ति ज़रूर मिलेगी. हमने तो पूर्णिया में एक चौराहे पर विश्वेश्वरैया की मूर्ति की देखी है. भारत रत्न विश्वेश्वरैया के नाम पर बने इंजीनियरिंग कॉलेज की हालत तो ठीक होनी चाहिए, नहीं है तो फिर भारत रत्न देने का क्या लाभ हुआ. विश्वेश्वरैया साधारण इंजीनियर नहीं थे.

आधुनिक भारत के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है तभी तो 1955 में उन्हें भारत रत्न मिला. सोचिए आज नेताओं को भारत रत्न देने को लेकर झगड़ा होता है, उस वक्त कितनों को भारत रत्न दिया जा सकता था मगर एक इंजीनियर को दिया जा रहा था. यह बात भी अपने आप में असाधारण है और विश्वेश्वरैया का योगदान भी. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाइट कमांडर ऑफ दि ब्रिटिश इंडियन एम्पायर का खिताब दिया था. मैसूर के कृष्ण सागर बांध के निर्माण में उनकी भूमिका को लेकर आज भी याद किया जाता है. भ्रदावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्ट्री, बैंक ऑफ मैसूर की इमारत इन्हीं की देन है. 32 साल की उम्र में ही विश्वेश्वरैया ने सिंध महापालिका के लिए काम करते हुए सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को जलापूर्ति की जो योजना बनाई उसे काफी सराहा गया था. वे सूरत से लेकर कई शहरों में काम कर चुके हैं और भारत के कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें अपने सम्मान से नवाज़ा था.

विश्वेश्वरैया के योगदान पर किताबें लिखी गई होंगी मगर उनके नाम पर बने University Visveahraiyya College of Engineering का हाल हम अपने सहयोगी निहाल किदवई की नज़र से देखेंगे. हमने बाकी कॉलेजों की तरह इसे भी बर्बाद किया है, इस खुशी में आज भी दस पूड़ी खा लीजिएगा. इसी साल 100 साल होने जा रहा है इस कॉलेज का. बंगलुरू यूनिवर्सिटी के तहत आता है जिस यूनिवर्सिटी ने तीन तीन भारत रत्न दिए हैं.

लाल रंग की इमारत बताती है कि हम पुरानी इमारतों का संरक्षण कितना ख़राब करते हैं. कम से कम इसके संरक्षण में तो इंजीनयरिंग का कमाल दिखना चाहिए था. इस इंजीनियरिंग कॉलेज में 4500 छात्र पढ़ते हैं. अंडर ग्रेजुएट से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट तक की पढ़ाई होती है. यहां से निकले इतने छात्रों को पद्म श्री और पदम भूषण मिला है कि निहाल ने लिखा है कि वो लिस्ट काफी लंबी हो जाएगी. 1917 में यह कॉलेज बना था. यह इसका सौंवा साल है. इस कॉलेज में 250 शिक्षक होने चाहिए मगर 95 शिक्षक ही 4500 इंजीयनिरिंग के छात्रों के लिए हैं. 80 फीसदी पोस्ट खाली हैं. छात्रों की फीस से इस कॉलेज को हर साल 12 करोड़ मिलता है. अलग अलग संस्थानों से भी मदद राशि मिलती है. बंगलुरू यूनिवर्सिटी से भी सालाना 25 करोड़ की राशि मिलती है फिर भी इसके कैंपस में आपको उदासी पसरी मिलेगी. यूनिवर्सिटी के लिए यह कॉलेज कमाई का ज़रिया है. इसलिए आज तक ऑटोनोमी नहीं दी गई जबकि 50 साल पहले महारानी कॉलेज को स्वायत्तता दे दी गई.

अब जो आप देखने जा रहे हैं उसे देखकर आप जैन कॉलेज आरा या हमारी यूनिवर्सिटी सीरीज़ में किसी भी कॉलेज का हाल जो आपने देखा होगा, भूल जाएंगे. हम चाहते हैं कि थोड़ी देर चुप रहें और आप भारत के विश्वविद्यालयों की बर्बादी को महसूस करें. पूड़ी खाना मत छोड़िएगा. वो खाते रहिए क्योंकि यह बहुत खुशी की बात है कि मधेपुरा से लेकर मुंबई और कतरास से लेकर बंगुलुरू तक के कॉलेजों की हालत एक जैसी हो गई है. निजीकरण के नाम पर सरकारी कॉलेजों को मरने के लिए छोड़ दिया गया. प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत बहुत खराब है. खुलते हैं और बंद हो जाते हैं. क्या हम भारत रत्न विश्वेश्वरैया के नाम से बने इस कॉलेज को भी बेहतर नहीं रख सके, ये नेशनल क्वेश्चन है. मैं तो नहीं पूछ रहा, आपको रास्ते में जो भी मिले पूछ लीजिएगा. ग़ौर से देखिएगा हमारी शिक्षा व्यवस्था में आई इन दरारों को, मशीनें जंग खा चुकी हैं चिमनियां हांफ रही हैं.

VIDEO: बेंगलुरु की यूनिवर्सिटी का हाल

निहाल किदवई लड़कों के हास्टल की तरफ भी गए. 62 कमरे हैं, कायदे से तो हर कमरे में 2 ही छात्र रहने चाहिए थे मगर किसी में भी 5 से 6 छात्र से कम नहीं है. यहां तक कि मनोरंजन के लिए जो कॉमन रूम है उसे भी कमरे का रूप दे दिया गया और निहाल ने बताया कि इसमे 32 लड़के रहते हैं. 350 छात्रों पर मात्र 20 शौचालय हैं. उनकी हालत आप देखिएगा तो विश्वश्वैरया जी की आत्मा से मांफी मांग लीजिएगा.

इसके बाद भी यहां के छात्रों को 100 फीसदी प्लेसमेंट मिलता है. ज़रूर इस कॉलेज की अपनी साख है और छात्रों की मेहनत भी लेकिन क्या हालत हो गई है. प्रिंसिपल साहब को भी सुन लीजिए. अधिकारियों को सुनने से यह ज़रूर हो जाता है कि अपनी ही रिपोर्ट ग़लत लगने लगती है. भारत में कुछ और हो सकता है मगर समस्या नहीं हो सकती है.

बंगुलरु के इंजीनियरिंग कॉलेज का एक सिस्टम है. छात्र जब 400 रुपये का फार्म भर कर दोबारा जांच की मांग करते हैं तो नंबर बढ़ जाते हैं. कई बार छात्रों को लगता है कि ऐसा कमाने के लिए किया जाता है. अब तो आलम यह है कि re-evaluation भी जैसे कोर्स का हिस्सा हो. बंगुलरु से आपको ले चलते हैं रांची. मुख्यमंत्री निवास से एक किलोमीटर की दूरी पर है सूरज सिंह मेमोरियल कॉलेज. नाम तो सूरज है मगर इस कॉलेज में जो अंधेरा देखकर आपकी आंखें चौंधियां जाएंगी.

पहले ही झटके में केमिस्ट्री के लैब को देख चलिए. आगे के लिए कलेजा मजबूत हो जाएगा. कई साल पहले ही लैब बन गया था मगर इसकी हालत बताती है कि प्रोफेसर तो दूर प्रेतात्माएं भी यहां नहीं आती हैं. जिनके नाम पर झारखंड में कई महिलाओं को डायन बताकर मार दिया जाता है. मुख्यमंत्री शिक्षा पर ज़रूर ही अच्छा भाषण देते होंगे, विज्ञापन तो अच्छा होता ही होगा मगर केमिस्ट्री का यह लैब बताता है कि वह विज्ञापन और भाषण के यथार्थ से ऊपर उठ चुका है. इसने लगता है कि सीधा मैडम क्यूरी को फोन कर दिया है कि आप लोग ही सारा रिसर्च कर लीजिए, हम लोग ज़रा बंद पड़े पड़े भारतीय व्यवस्था पर रिसर्च करते हैं. ये जो खिड़की के बाहर भीड़ लगी है उसे भीतर से देखिए. जिस क्लास में छात्र पढ़ते हैं क्लास के बाद उसी की खिड़की पर लाइन लगते हैं क्योंकि कमरे को आफिस में बदल दिया जाता है. वो इसलिए क्योंकि कॉलेज के पास पांच ही कमरे हैं. यहां जो छात्र छात्राएं दिख रही हैं उतने भर की जगह है. यही कामन स्पेस है. पांच कमरे में एक कमरा प्रिंसिपल के लिए रिज़र्व है, एक लैब का हाल आपने देखा ही, और एक कमरे में यह लाइब्रेरी है, बाकी बचे तीन ही कमरे, इन तीन कमरों पर 7000 छात्रों का भविष्य दांव पर है. 1972 में बने सूरज सिंह मेमोरियल कॉलेज में 7000 छात्र पढ़ते हैं. क्या आप एक कमरे में 2300 छात्र छात्राओं को बिठा कर दिखा सकते हैं, हंसी आ रही हैं न, हंसिए और मारे खुशी के बीस पूड़ी और खा लीजिए जब कुछ बचा ही नहीं है तो पूड़ी क्यों बची रहे, छनवाते रहिए, खाते रहिए.

हमारे सहयोगी हरबंस ने लगता है यह रिपोर्ट आप दर्शकों की परीक्षा लेने के लिए भेजी है. वो शायद यह देखना चाहते हैं कि आप बर्बादी को कितना बर्दाश्त कर पाते हैं. आरा पर हमने रिपोर्ट की तो लोगों को इसी बात से फर्क पड़ा कि उनके शहर के कॉलेज का कवरेज हुआ और वे टीवी में आने से रह गए. जब फेसबुक पर आशुतोष की यह प्रतिक्रिय पढ़ी तो थोड़ा चुप रहने का मन किया. सबकी तो ऐसी प्रतिक्रिया नहीं होगी मगर जिनकी भी होगी वो कितनी दुखद है. कहां तो आरा को रोना चाहिए कि शहर के कॉलेज की ऐसी हालत है तो उनके बच्चों की क्या हालत होगी लेकिन वे इस खबर को मनोरंजन की तरह कंज़्यूम कर रहे हैं. रांची के सूरज सिंह मेमोरियल कॉलेज में छात्र अटेंडेंस के लिए आते हैं. क्लास में जगह नहीं होगी तो ज़ाहिर है कि भाग ही जाएंगे. इस कॉलेज की कहानी सबके लिए चैलेंज है. एक शिक्षक पर 155 छात्रों का बोझ है और 2300 छात्रों के लिए मात्र एक कमरा है. यह सोच कर आप हमेशा के लिए मैथ्स पढ़ना छोड़ देंगे. कॉलेज की ज़मीन पर विवाद चल रहा है. दान में दी गई इस ज़मीन पर दानदाता परिवार ने दावा कर दिया है. मामला अदालत में है.

ऐसे कॉलेज में जो पढ़ना चाहता है वो भी कुछ समय के बाद पढ़ने से भागने लगेगा. शहर दर शहर प्रतिभाओं को कुचलने के लिए ये कॉलेज खुले हैं. क्लास में पढ़ाई नहीं होती तो गोदी मीडिया के सिलेबस को ही पढ़ाई समझेंगे. नौजवानों में राजनीतिक चेतना तो छोड़िए नागरिक चेतना भी नहीं है. दरअसल हम सबको मजबूरियों का बोध ठीक से कराया गया है. रैकिंग और ग्रेडिंग देकर महानगरों के दर्शकों और पाठकों को बताया जा रहा है कि सब कुछ ठीक होगा. सिस्टम को पता है कि दर्शकों की ऐसी दुनिया बन कर तैयार है जो अपने पड़ोस के बारे में नहीं जानती इसलिए उसे धारणा परसेप्शन का आइटम बेचते रहो ताकि लगे कि कुछ हो रहा है. ब्रेक के बाद हम दिल्ली के प्रदूषण की बात करेंगे. मास्क और एयर प्यूरिफायर की दुकानें चमक गई हैं. बैठकों और कमेटियों का दौर शुरू होने वाला है. आपको भी पता है कि होने के नाम पर कुछ नहीं होने वाला है.

हम लगातार आपको एडहॉक शिक्षकों की हालत पर रिपोर्ट दिखा रहे हैं. उनकी दिहाड़ी कितनी होती है, महीने में सैलरी कितनी बनती है, मातृत्व अवकाश नहीं मिलता है. इसके बाद भी उनकी ज़िंदगी की हालत की तस्वीर हमारे ज़हन में नहीं उभर पाती है. हमारे सहयोगी जफर मुल्तानी ने आगर मालवा के दो अतिथि विद्वानों के घर जाकर उनका रहन सहन देखा. कई वर्षों से ठेके पर पढ़ाए जाने के कारण उनकी आर्थिक शक्ति समाप्त प्राय हो गई है. होता यह है कि शिक्षक अपनी स्थिति बताते नहीं हैं जिससे समाज को पता नहीं लगता. मेरी राय में शिक्षकों को रोज़ छात्रों को बताना चाहिए और छात्रों को भी पूछना चाहिए कि आप एडहॉक हैं तो कैसे काम चलता होगा.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Previous Article
ईरान पर कब हमला करेगा इजरायल, किस दबाव में हैं बेंजामिन नेतन्याहू
प्राइम टाइम इंट्रो : अच्छे-अच्छे संस्थानों का हाल ख़राब, ऐसी शिक्षा व्यवस्था छात्रों से खिलवाड़
ओपन बुक सिस्टम या ओपन शूज सिस्टम, हमारी परीक्षाएं किस तरह होनीं चाहिए?
Next Article
ओपन बुक सिस्टम या ओपन शूज सिस्टम, हमारी परीक्षाएं किस तरह होनीं चाहिए?
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com