अगर इस हेडलाइन को देखकर आप चौंक गए हों तो चलिए इस गुत्थी को हम सुलझा देते हैं। ये शब्द हमारे हैं, लेकिन बोल या आप कहिए कथनी और करनी सबके लक्षण आपको बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के क्रियाकलापों में मिल जाएंगे। नए साल में भले मांझी इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन अपने निर्णयों से, अपने कदमों से वह इस बात का अहसास सबको करा रहे हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उन्हें बिठाने वाले नीतीश कुमार को बाय-बाय कर दिया गया है।
उनकी नीतियां, उनके चहेते अधिकारी और उनकी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को वह ठिकाने लगाने में लग गए हैं। पटना हाईकोर्ट का फैसला पार्टी के खिलाफ आता है, लेकिन मांझी उस पर अपनी पार्टी और सरकार का बचाव करने के बजाय उस निर्णय का स्वागत ही नहीं करते, बल्कि बोलते-बोलते यह भी बयान दे जाते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय गलत था।
बाकी कसर मांझी ने उस समय निकाल दी, जब उन्होंने अधिकारियों के तबादले में नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले चंचल कुमार को चलता कर दिया। सबको मालूम है कि चंचल भले नेताओं और अधिकारियों में बहुत लोकप्रिय नहीं हों, लेकिन नीतीश कुमार के दिल के करीब हैं, चाहे पटना में नए म्यूजियम की परियोजना हो या पटना में कनवेंशन सेंटर, सब पर चंचल अपने पुराने बॉस के अनुसार काम करवा रहे थे।
उनके जाने का मतलब साफ है कि मांझी इन परियोजनाओं को किसी न किसी बहाने लटका ही नहीं देंगे, बल्कि कोई न कोई जांच भी नीतीश को घेरने के लिए जल्द शुरू करवा दें तो कोई आश्चर्य नहीं।
बिहार में मांझी के करीबी और सत्ता के खेल को समझने वाले सब लोग जानते हैं कि आने वाले दिनों में मांझी के निशाने पर होंगे बिहार में बिजली विभाग के प्रत्यय अमृत। अगर मांझी उन्हें हटाने में सफल हो गए तो समझ लीजिए बिहार में गांव-गांव बिजली पहुंचाने की नीतीश कुमार की घोषणा भी अधर में रह जाएगी, लेकिन नीतीश कुमार के कट्टर समर्थक भी मानते हैं कि ऐसा होगा तो मांझी कुछ गलत नहीं करेंगे, बल्कि वह अपनी भविष्य की राजनीति की स्क्रिप्ट के अनुसार नीतीश कुमार को हाशिये पर धकेल रहे हैं।
इसमें गलती किसकी है, नीतीश कुमार की है, जिन्होंने मांझी को कुर्सी देने की मूर्खता की, लेकिन खामियाजा मात्र नीतीश कुमार ही नहीं उठाएंगे बल्कि जो लालू यादव मांझी के ऊपर अपना वरदहस्त दिए हुए हैं, उन्हें भी मांझी के साथ इस नजदीकी का मूल्य चुकाना होगा।
वो क्या होगा, किसी को नहीं मालूम, लेकिन लालू अगर मांझी के इन कदमों पर अपनी मौन सहमति देते रहे तो निश्चित रूप से नीतीश का विश्वास उनके ऊपर अधिक तो नहीं कम जरूर होगा और साथ ही महागठबंधन की योजना भी धरी की धरी रह जाएगी।
हां, इन सबके बीच बीजेपी के नेता जरूर मजा ले रहे होंगे, लेकिन जब आपके अच्छे दिन चल रहे हों तो ऐसे में आपके विरोधियों के घर में भगदड़ मची रहती है।