विज्ञापन
This Article is From Dec 14, 2014

प्रदीप कुमार की कलम से : बत्रा साहब, क्या आपको वाल्श की याद आई?

Pradeep Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    दिसंबर 28, 2014 14:32 pm IST
    • Published On दिसंबर 14, 2014 16:31 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 28, 2014 14:32 pm IST

चैंपियंस ट्रॉफी सेमीफाइनल में पाकिस्तान से हार के बाद, कोई भारतीय हॉकी टीम की हार पर बात नहीं कर रहा है। हर कोई पाकिस्तानी खिलाड़ियों के बर्ताव पर सवाल उठा रहा है।

पाकिस्तानी खिलाड़ियों के व्यवहार को उचित नहीं ठहराया जा सकता और इसकी शिकायत भी उचित मंच पर होनी चाहिए। दर्शकों के साथ अभद्रता का मामला ऐसा है, जिस पर किसी भी इंटरनेशनल टीम को शर्मसार होना चाहिए।

लेकिन क्या पाकिस्तानी हॉकी टीम के कोच की ओर से माफी मांगने और अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ की ओर से पाकिस्तानी हॉकी टीम की माफी को स्वीकार कर लिए जाने के बाद भी हॉकी इंडिया द्वारा इसे तूल दिया जाना जायज है? वह भी तब, जब भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी खेल के दौरान तनाव की बात अनजानी नहीं है।

हां, पाकिस्तान टीम के रवैये से हर खेल प्रेमी आहत है, होना भी चाहिए। लेकिन उनके जेहन में वैसी पाबंदियां नहीं उठ रही हैं, जैसे हॉकी इंडिया के प्रमुख नरेंद्र बत्रा अपनी ओर से सुना रहे हैं। उन्होंने कहा है कि टीम इंडिया पाकिस्तान के साथ कोई सीरीज नहीं खेलेगी। उन्होंने ये भी कहा है कि चूंकि इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन ने पाकिस्तान टीम पर कोई कार्रवाई नहीं की है, लिहाजा भारत किसी इंटरनेशनल हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन नहीं करेगा।

एक मिनट ठहर कर सोचिए, अगर पाकिस्तानी खिलाड़ियों का व्यवहार अभद्र नहीं होता, तब यही बत्रा साहब मीडिया के सामने इस तरह चढ़कर बयान दे रहे होते? शायद नहीं।

इस बार चैंपियंस ट्रॉफी में टीम इंडिया अगर खिताबी मुकाबले से बाहर हुई है, तो इसकी वजह इन्हीं बत्रा साहब की एक जिद है। चैंपियंस ट्रॉफी से ठीक पहले उन्होंने भारतीय हॉकी को पटरी पर लाने वाले कोच टैरी वाल्श को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

एशियाई खेलों में लंबे अंतराल के बाद जिस तरह से टैरी वाल्श ने हॉकी टीम को गोल्ड मेडल दिलाया, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम होगी। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम को एक यूनिट के तौर पर मैच्योर बनाया, टीम किसी एक सरदार या गुरबाज या पी श्रीजेश के बूते बहुत बेहतर नहीं करने लगी थी, बल्कि टीम का हर खिलाड़ी अपनी भूमिका को मुस्तैदी से निभाता दिखा।

यही कोच की भूमिका होती है, वो टीम को उसकी ताकत का एहसास दिलाता है और टीम के हर खिलाड़ी के प्रदर्शन को निखारता है। टैरी वाल्श इसमें कामयाब रहे। उन्होंने टीम के फिटनेस स्तर को इंटरनेशनल स्तर पर ला दिया था, ऐसे में बेहतर अनुबंध की मांग करना उनका हक था। खेल मंत्रालय के दखल के बावजूद नरेंद्र बत्रा ने उन्हें बनाए रखने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

चैंपियंस ट्रॉफी सरीखे बड़े टूर्नामेंट से ठीक पहले ये कदम कितना महंगा पड़ा, ये टीम के प्रदर्शन से साफ नजर आया है। वाल्श की बताई रणनीति और निर्देश को टीम ने अपनाया जरूर, लेकिन आखिरी मौके पर टीम चूकती नजर आई।

सीरीज के पहले मैच में जर्मनी के खिलाफ टीम इंडिया आखिरी मिनट में हारी, तो अर्जेंटीना के खिलाफ बढ़त लेने के बाद टीम इंडिया ने मुकाबला गंवाया। नीदरलैंड और बेल्जियम के खिलाफ टीम ने जरूर शानदार प्रदर्शन दिखाया, लेकिन सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ टीम अंतिम मिनट में हार गई। इन मौकों पर हॉकी प्रेमियों को निश्चित तौर पर टैरी वाल्श की याद आई होगी।

दरअसल, भारतीय हॉकी टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी में जिस तरह का प्रदर्शन दिखाया, उससे उम्मीद बंधती है कि अगर टैरी वाल्श टीम के साथ जुड़े होते, तो भारतीय टीम चैंपियंस ट्रॉफी में अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन जरूर दिखाती। टीम सेमीफ़ाइनल तक पहुंची, तो इसमें भी वाल्श की कोशिशों का ही नतीजा नजर आया।

अब यह भी तय है कि वाल्श जिस मोड़ पर हॉकी टीम को छोड़कर गए हैं, वहां से टीम को आगे ले जाने की जरूरत बनी हुई है। बत्रा साहब, उम्मीद है कि आपका ध्यान इस ओर भी जाएगा।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी, भारत-पाक हॉकी मुकाबला, नरेंद्र बत्रा, टैरी वाल्श, Champions Trophy Hockey, India Vs Paksitan, India-Pak Hockey Match, Tarry Walsh, Narendra Batra
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com