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This Article is From Oct 29, 2014

बाबा की कलम से : काले धन का सफेद सच

Manoranjan Bharti
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 15:07 pm IST
    • Published On अक्टूबर 29, 2014 19:47 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 15:07 pm IST

काला धन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के रुख ने सरकार को मजबूर किया कि केवल कुछ ही नामों को सार्वजनिक नहीं किया जाए और अब सारे नाम अदालत के पास हैं। लेकिन ये चुनावी नारा अब भी जनता के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है और यह बड़ी चर्चा का विषय है। लेकिन विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापिस लाना क्या इतना आसान है? यदि ऐसा होता तो ये पैसा कब का वापिस हो जाता।

आपके सामने कुछ सच्चाई रखना चाहता हूं कि सच क्या है और प्रचार क्या। इस सूची के क़रीब 150 नाम ऐसे हैं, जिन्होंने टैक्स दे रखा है और इसलिए उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं बनती। यानि जितना सरकार की जेब में आना था आ गया। अब इन नामों को उजागर करने का कोई तुक नहीं बनता। हां अगर इन लोगों को बदनाम करना है तो बात कुछ और है।

इन 627 नामों में से बचे 577 नाम। अधिकतर खातों में 40−50 करोड़ रुपये हैं। कुछ में 500 से 1000 करोड़ हैं, लेकिन वह टैक्स की छूट देने वाले देशों से चल रहे ट्रस्टों के हैं। आयकर विभाग के लिए पता करना मुश्किल है कि इन ट्रस्टों का लाभ किन लोगों को मिल रहा है। ये टैक्स में छुट देने वाले देशों में हैं, जहां से फर्जी कंपनी या ट्रस्ट बना कर पैसा जमा कराया गया है।

अगर पूरी लिस्ट से कर चोरी की कुल रकम निकाली जाए तो वह 1000 करोड़ तक निकलती है, जो जुर्माना लगाकर 3,000 करोड़ हो सकती है, लेकिन ये 3000 करोड़ रकम हासिल करना भी इतना आसान काम नहीं है।

आयकर विभाग को दिए जवाब में 120 से ज़्यादा लोगों ने विदेशों में कोई खाता होने की बात से इनकार किया है। ये पता लगाना आसान नहीं है कि ये सच बोल रहे हैं या नहीं। क्योंकि भारत को गिनती के नाम ही फ्रांस और जर्मनी की सरकारों से मिले हैं।
इसके अलावा भारतीय अफ़सरों के पास जो लिस्ट है, वह चोरी की है। इसे बैंक के कर्मचारी को घूस दे कर इकट्ठा किया गया है। कानून की निगाह में उसकी कोई मान्यता नहीं है। इस लिस्ट में जो भी नाम हैं बैंक उनकी तस्दीक नहीं करने जा रहे।

विदेशी खातों की बात नकारने वालों से आयकर विभाग बस हलफ़नामे ले पा रहा है। कुछ मामलों में बस नाम हैं उनके खाते की रक़म नहीं। इस चोरी की लिस्ट के बूते आयकर विभाग तलाशी जुर्माने या ज़ब्ती का काम नहीं कर सकता।

इस मामले में मुश्किल सिर्फ़ इतनी ही नहीं है। दूसरे देशों से जो समझौते हैं, उनकी वजह से भी आयकर विभाग के हाथ बंधे हुए हैं। भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच के समझौते में 2011 के बाद के ही नाम उजागर करने पर सहमति है, उसके पहले के कोई ब्योरे नहीं।

वहीं फ्रांस ने सूची साझा करते हुए ये समझौता किया था कि आयकर विभाग ये नाम किसी दूसरे विभाग को नहीं दे सकता, यानी प्रवर्तन निदेशालय तक को नहीं। इसलिए आयकर विभाग सिर्फ नोटिस और समन जारी कर सकता है।

फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड और जमर्नी के साथ हुए समझौतों के मुताबिक सिर्फ अदालत ही नाम उजागर कर सकती हैं, सरकारें नहीं।
अभी भारत और भी विदेशी खातेदारों के नाम हासिल करने की कोशिश में है। ऐसे में किसी समझौते का उल्लंघन पूरी कोशिश को खटाई में डाल सकता है।

दरअसल ये साफ़ है कि विदेशी बैंकों में जमा ब्लैक मनी वापस लाने का मामला इतना आसान और आकर्षक नहीं है, जितना हमारे नेताओं ने चुनाव प्रचार में बना दिया था।

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