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राम आएंगे....'त्रेतायुग' की अयोध्या 'कलयुग' में मेरी नजर से

Sweta Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    January 21, 2024 13:35 IST
    • Published On January 21, 2024 13:35 IST
    • Last Updated On January 21, 2024 13:35 IST

"राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी, दीप जलाकर दीवाली मैं मनाऊंगी...." कुछ ऐसा ही नजारा त्रेतायुग में भी रहा होगा, जब राम को एक आदर्श बेटा, आदर्श भाई, आदर्श पति और एक आदर्श राजा के रूप में पूजा जाता था. उस समय जब कैकेयी के वचन में बंधे राजा दशरथ ने अपने दिल पर पत्थर रख जब राम को अयोध्या छोड़ वनवास जाने का आदेश दिया होगा, तब अयोध्या के लोगों ने भी यही सोचा होगा कि जब उनके राम वापस लौटेंगे, तो वे भी उनके स्वागत में घर सजाकर और दीप जालकर खुशियां मनाएंगे. आज के अयोध्या की तस्वीर भी कुछ अलग नहीं है. लोगों के मन के भाव अपने राम के लिए आज भी बिल्कुल वैसे ही हैं. वही भक्ति, वही भाव और दूर जाने पर वापसी के लिए बिल्कुल वही इंतजार...

अयोध्या में रामलला की वापसी का 500 साल पुराना इंतजार अब खत्म हो चुका है. 22 जनवरी को होने वाले रामलला के भव्य स्वागत के लिए नगर ही नहीं बल्कि पूरा देश तैयार है. राम नगरी को ठीक उसी तरह से सजाया जा रहा है, जैसे त्रेतायुग में उस समय सजाया गया होगा, जब भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे होंगे. शायद यही वजह है कि अयोध्या को त्रेतायुग की थीम पर सजाया और संवारा जा रहा है. आज रोशनी में सराबोर अयोध्या, दीवारों पर रंग-रोगन, रामायण युग के प्रसंग,कलाकृतियां...ये सब देखकर लग रहा है कि त्रेतायुग में भी भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के अयोध्या वापसी पर ठीक इसी तरह से खुशियों की दीवाली मनाई गई होगी.

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युग, साल, महीने, दिन, तारीख... सब बदल गए लेकिन अगर कुछ नहीं बदला, तो वो है रामलला के लिए लोगों की श्रद्धा और लगाव. पिछले 500 सालों में न जानें कितने लोगों ने अपने आराध्य के इंतजार में जान गंवा दी और न जाने कितने लोगों ने इस सपने को अपनी आंखों में लिए ही संसार से आंखें मूंद लीं, लेकिन मंगल बेला आखिरकार आ ही गई. साल 2024...कलयुग की अयोध्या में त्रेतायुग की वापसी का साल है. रामलला के इंतजार में पलकें बिछाए बैठे लोगों में आज अपने आराध्य के लिए उस युग जैसी भक्ति और जुनून महसूस किया जा रहा है, यही वजह है कि राम को अपने रोम-रोम में आत्मसात कर चुके और भक्ति भाव में डूबे लोग अपनी सुध-बुध खोये मीलों का फासला भुलाकर अयोध्या की तरफ खिंचे चले आ रहे हैं. 

छत्तीसगढ़ से पैदल अयोध्या पहुंचे नरेश गुप्ता का कहना है,"अयोध्या आज वास्तविक रामराज्य जैसा लग रहा है. हर कोई हर किसी का अभिवादन कर रहा है, लोग सेवा कर रहे हैं, मुफ्त भोजन खिला रहे हैं. अयोध्या का माहौल ऐतिहासिक हो गया है."  या ऐसा कहें कि कलयुग की अयोध्या में त्रेतायुग की झलक दिखाई दे रही है. त्रेतायुग के केवट और शबरी जैसी भक्ति मुझे आज वड़ोदरा के किसान अरविंद भाई पटेल और अलीगढ़ के उद्योगपति सत्य प्रकाश शर्मा और लखनऊ के उस सब्जी बेचने वाले में भी नजर आती है, जिन्होंने राम मंदिर को 2 महीने तक महकाए रखने के लिए 108 फीट की अगरबत्ती, सेफ्टी के लिए 10 फीट ऊंचा दुनिया का सबसे ऊंचा ताला और 8 देशों का समय बताने वाली अनोखी घड़ी प्रभु श्रीराम के स्वागत में अयोध्या भिजवाई है. त्रेतायुग में श्री राम के कदम जब अयोध्या में पड़े होंगे, तो जिस तरह से खबूसूरत रंगोली से दुल्हन की तरह सजी धरा ने प्रभु श्रीराम का भव्य स्वागत किया गया होगा, ठीक उसी तरह आज भी अयोध्या रंगोली से सजी नजर आ रही है. श्रद्धा भाव के मामले में महाराष्ट्र की सांगली के रहने वाले सुनील कुमार भी पीछे नहीं हैं. रंगोली के 100 किलो रंग लेकर सुनील कुमार अयोध्या दौड़ पड़े. रामभक्त सुनील यहां की सड़कों को रंगोली से सजा रहे हैं. 

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अयोध्या नगरी को त्रेतायुग की थीम पर सजाया और संवारा जा रहा है. सड़क किनारे लगे सूर्यस्तंभ, एक बार फिर से श्रीराम के सूर्यवंशी होने की याद दिला रहे हैं. यहां का कण-कण राममय है. पूरी अयोध्या नगरी इन दिनों भक्ति रस में सराबोर है. जगह-जगह रामायण का प्रसारण और राम लीलाओं का रस लिया जा रहा है. अयोध्या को देखकर ऐसा लग रहा है कि जिस रामराज्य की कल्पना कलयुग में करना भी मुश्किल है, वो साक्षात साकार हो चला है. अयोध्या में एक बार फिर से त्रेतायुग वापस आ गया है.

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आज अयोध्या नगरी में त्रेतायुग जैसा ही नजारा है. कलयुग की शुरुआत में जब भाई-भाई की जान लेने से नहीं कतरा रहा, ऐसे में किसी ने ये कल्पना तक नहीं की होगी कि इसी कलयुग की अयोध्या में एक बार फिर से त्रेतायुग की झलक देखी जा सकेगी. लेकिन यह कल्पना नहीं बिल्कुल सच है. अयोध्या का माहौल आज पूरी तरह से ऐतिहासिक और पैराणिक हो गया है. हजारों साल पुरानी जिस अयोध्या का वर्णन वाल्मीकि की रामायण और तुलसीदास की कल्पना में मिलता है, उसके गौरवशाली इतिहास को आज एक बार फिर से नई पहचान मिल गई है. त्रेतायुग की अयोध्या की झलक आज की अयोध्या में महसूस करना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है.

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प्रभु राम जब वनवास से वापस अयोध्या लौटे तो अयोध्या नगरी में हर एक कोने की सफाई और रंगाई-पुताई कर दीयों से रोशन किया गया. प्रभु के चरणों की पहली आहट का स्वागत धरा पर पलकें बिछाए इंतजार कर रही रंगोली ने किया. राम ने जैसे ही कदम आगे बढ़ाए  तो अयोध्या की प्रजा ने रंग-बिरंगे फूलों की वर्षा कर अपना प्यार उन पर बरसाया. बच्चों ने अपने काका को नमन किया तो वहीं छोटों ने उनके पांव छूकर आशीष लिया. रामलला जैसे ही महल पहुंचे तो सभी माताओं ने उनको सीने से लिपटाकर आंसुओं से उनका स्वागत किया. उसके बाद रामलला की आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी गई. खाने को छप्पन भोग और पहनने को रत्नों और मोतियों से सजे वस्त्र रामलला के लिए तैयार किए गए....आज का नजारा भी कुछ ऐसा ही है. मथुरा के लड्डू, आगरा का पेठा और दूर-दूर से पहुंच रही मिठाइयां और रामलला के लिए तैयार खूबसूरत वस्त्र ये सब मेरे मन को रामायण काल फिर वापस ले जा रहे हैं.

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त्रेतायुग में राम की अयोध्या वापसी पर कैसी रही होगी तैयारी...

महर्षि वाल्मीकि की रामायण के युद्धकांड 130 वें सर्ग में लिखा गया है,"विष्टीरनेकसाहस्त्राश्चोदयामास वीर्यवान्।समीकुरुत निम्नानि विषमाणि समानि च।स्थलानि च निरस्यंतां नन्दिग्रामादित: परम्। सिंचन्तु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा" इसका मतलब है कि भरत के कहने पर छोटे भाई शत्रुघ्न ने हजारों करीगरों से नंदीग्राम से अयोध्या तक की उबड़-खाबड़ सड़क मिट्टी भरकर बराबर करने को कहा. और ठंडे पानी से छिड़काव करने के लिए कहा. 

आज भी त्रेतायुग की तरह ही राम के स्वागत में अयोध्या की सड़कों का कायाकल्प किया गया है. कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए सड़कों पर काम किया गया है. राम नगरी की खूबसूरती बढ़ाने का काम भी बखूबी किया जा रहा है. एयरपोर्ट से लेकर रेलवे स्टेशन तक का कायाकल्प किया गया है.

"ततोअभ्यवकिरन्त्वन्ये लाजै: पुश्पैश्च सर्वश:। समुच्छितपताकास्तु रथ्या: पुरवोत्तमे।शोभयन्तु च वेश्मानि सूर्यस्योदयनं  स्त्रग्दामभिर्मुक्तपुष्पै: सुगन्धै: पंचवर्णकै:।" इसका मतलब है कि सड़क पर फूल बिछाए जाएं और अयोध्या में झंडे लगाए जाएं. नगर के सभी भवनों को फूल-माला और मोतियों के गुच्छों के साथ ही पांच सुगंधित पदार्थों के चूर्ण से सजाए जाएं.

त्रेतायुग की तरह ही आज की अयोध्या को भी रामलला के स्वागत के लिए फूलों से सजाया जा रहा है. जगह-जगह भगवा झंडे लगाए गए हैं. हर तरफ साज-ओ-सज्जा की जा रही है.

तुलसीदास ने अपनी चौपाई में लिखा है कि "होहिं सगुन सुभ बिबिधि बिधि बाजहीं गगन निसान।
पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान।"
इसका मतलब है कि नगर में तरह-तरह के शुभ शगुन चल रहे हैं और ढोल नगाड़े बज रहे हैं. नगर की महिलाओं और पुरुषों को दर्शन देकर प्रभु अपने महल की तरफ चले गए.

आज के अयोध्या की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है. रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले 6 दिन का अनुष्ठान नगरी में किया गया, जिनमें अलग-अलग तरह की पूजा अनुष्ठान और दूसरे शुभ शगुन शामिल हैं. कलश में सरयू का पवित्र जल भरने से लेकर हवन-अनुष्ठान पूरी श्रद्धा-भाव से किए जा रहे हैं.

आज अयोध्या नगरी में रामलला के स्वागत के लिए चल रही तैयारियां त्रेतायुग से बिल्कुल भी अलग नहीं हैं. उस युग जैसी ही स्वागत तैयारियां आज भी अयोध्या में की जा रही हैं. गुजरात से 44 फीट ऊंचा और 5 टन वजनी ध्वज दंड, उत्तर प्रदेश के जलेसर से 2100 किलो का भव्य घंटा, सूरत से माता सीता के लिए खास साड़ी और गुजरात के दरियापुर से सोने की परत चढ़ा विशाल नगाड़ा अयोध्या तोहफे के रूप में अयोध्या भेजा गया है. रामलला के लिए इस प्यार ने युगों के फासले को पूरी तरह से पाट दिया है.रामलला के लिए लोगों का भक्ति-भाव आज भी त्रेतायुग जैसा ही है.

स्‍वेता गुप्‍ता NDTV में चीफ सब एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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