कहां कैलाश कॉलोनी में रहने वाले और कभी दिल्ली में सबसे अधिक आयकर चुकाने वाले नंबर वन वकील अरुण जेटली. और कहां दिल्ली से सटे गाजियाबाद में निम्न मध्यम वर्ग की रिहाइश वाले वसुंधरा इलाके में पत्रकार परिसर सोसाइटी के बाहर बैठने वाला मुन्ना टेलर. दोनों में न कोई रिश्ता, न कोई बातचीत. फर्क यह कि आज जेटली नहीं रहे और मोहम्मद मुन्ना टेलर हंसी-खुशी अपने बच्चों के साथ जीवन काट रहा है. लेकिन जेटली नहीं होते तो शायद मोहम्मद मुन्ना आज का दिन नहीं देख पाता.
शायद इस बात को दस साल से भी ज्यादा हो गए. मैं बीजेपी मुख्यालय जो कि उन दिनों 11 अशोक रोड पर होता था, वहां रिपोर्टिंग के लिए मौजूद था. तभी पत्नी का फोन आया और मुझसे चिंतित स्वर में कहा कि हमारी सोसाइटी पत्रकार परिसर के बाहर बैठने वाला मुन्ना टेलर बहुत बीमार है और उसे अगर तुरंत चिकित्सा नहीं मिली तो वो शायद ही बचेगा. पत्नी इससे पहले भी कई बार उसकी मदद के लिए मुझे बोल चुकी थी लेकिन मैंने कभी ध्यान नहीं दिया, लेकिन उस दिन मुझे लगा कि शायद बात बहुत आगे बढ़ गई है. मैंने अरुण जेटली को फोन किया. उन्हें बताया कि सोसाइटी के बाहर लोगों के कपड़े सीने और रफू करने वाला मुन्ना टेलर है जिसे दिल की बीमारी है. डॉक्टर उसे कई बार एम्स में इलाज कराने के लिए कह चुके हैं लेकिन वह वहां नहीं जा सका. मैंने उन्हें बताया कि अगर मुन्ना टेलर को तुरंत मदद नहीं मिली तो वो शायद ही बच सके. जेटलीजी ने मुझसे कहा कि मैं चिंता न करूं. थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा. मुन्ना टेलर इस बीच मेरे पास बीजेपी मुख्यालय पहुंच चुका था. उसकी हालत बेहद खराब थी. थोड़ी देर में ही मुझे अरुणजी ने फोन किया और कहा कि मैं उसे एम्स में डॉ बिशोई के पास भेज दूं. मैंने ऐसा ही किया.
शाम को डॉ बिशोई का मेरे पास फोन आया और उन्होंने कहा कि मुन्ना का हार्ट ब्लॉकेज बहुत ज्यादा है और उसके लिए स्टेंट डालना होगा. उन्होंने कहा कि खर्च की चिंता न करें और एक ट्रस्ट है जो ऐसे मरीजों की देखभाल करता है. मोहम्मद मुन्ना का ऑपरेशन हुआ. जो कामयाब रहा. मुन्ना ने बाद में मुझसे बात की और शुक्रिया अदा किया. मैंने उसे बताया कि शुक्रिया मेरा नहीं, अरुणजी और डॉ बिशोई का अदा करें.
अरुणजी को बाद में मैंने बताया कि मुन्ना ठीक हो गया है और वो उनका बहुत एहसानमंद है. मुन्ना के परिवार के लोगों ने भी उन्हें शुक्रिया अदा किया.
अरुण जेटली का व्यक्तित्व ऐसा ही था. उन्होंने अनगिनत लोगों की इसी तरह मदद की. अपने स्टाफ के लोगों को घर दिए. उनके बच्चों को उसी स्कूल में पढ़ने भेजा जहां उनके अपने बच्चे पढ़े. कुछ बच्चों को तो विदेश भी पढ़ने के लिए भेजा. हर साल उनका जन्मदिन अनाथालय में मनाया जाता था. वे वहां बच्चों को उपहार बांटते थे. कहा जाता है कि अच्छे लोगों की भगवान को भी जरूरत होती है. शायद इसीलिए अरुणजी को भगवान ने अपने यहां जल्दी बुला लिया. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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