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This Article is From Feb 23, 2015

'अण्णा रिटर्न्स', लेकिन क्या वही भरोसा पैदा कर पाएंगे?

Abhishek Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 23, 2015 17:14 pm IST
    • Published On फ़रवरी 23, 2015 17:08 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 23, 2015 17:14 pm IST

अण्णा हज़ारे एक बार फिर दिल्ली में धरने पर हैं। भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के विरोधी हैं अण्णा। लेकिन क्या अण्णा वही भरोसा पैदा कर पाएंगे?

बड़ा सवाल इसलिए है, क्योंकि यूपीए सरकार के दौरान हुए धरना प्रदर्शन से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। पहले अण्णा दिल्ली के लिए नए थे। दिल्ली में यूपीए के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा था और विपक्षी दल इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे।

कांग्रेस तब बंटी हुई थी और सरकार एक ऐसी कमान में थी, जिसे नहीं मालूम था कि अण्णा की 'आंधी' से कैसे निपटा जाए। कई सारे प्रयोग अण्णा से निपटने के लिए हुए, लेकिन ज्यादातर असफल रहे। तब अण्णा उस गुस्से को शक्ल भी दे रहे थे, जो कांग्रेस के खिलाफ लगातार तैयार हो रहा था।

अब बहुत कुछ बदल गया है। पिछली सरकार के मुकाबले पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। शुरुआती दौर में ही बता दिया है कि वो भूमि अधिग्रहण बिल पर संघर्ष नहीं, बातचीत करेगी। आंदोलन के पहले बीजेपी को पसंद करने वाले भैय्यू जी महाराज अण्णा से मिलकर आ चुके हैं।

इस सबके बीच अण्णा भी बदले हैं। राजनीति से दूरी की बात करते-करते वो लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ममता दीदी के साथ खड़े नजर आए। फिर अचानक से पलट भी गए। उनकी शिकायत थी कि चंद लोग भी दिल्ली में उनको सुनने के लिए नहीं जुटे। कभी अरविंद केजरीवाल की सेना मंच पर अण्णा के संग थी, वो अब नहीं है। वैसे नौजवान चेहरे भी नहीं दिख रहे, जो पूरी ताकत से सरकार को झुकाने में जुट जाएं। दिल्ली अब 'आप' पार्टी की है, जहां अण्णा के आंदोलन को हिट कराके अरविंद के चेहरे को कमज़ोर करना सियासी भूल होगी। ऐसा काम 'आप' करेगी, फिलहाल तो नहीं लगता।

अण्णा अबकी बार किसानों के लिए आंदोलन कर रहे हैं। उनकी ज़मीन के हक़ की लड़ाई है। ये ऐसा मुद्दा है, जिससे उस शहरी आंदोलनकारी का सीधा जुड़ाव मुमकिन नहीं, जो कभी बिजली, पानी और सड़क की लड़ाई के लिए अरविंद के साथ था। वो मीडिया मैनेजमेंट भी अण्णा के नए साथियों के लिए शायद संभव न हो, जो पिछली बार हुआ। ऐसे में बड़ा सवाल है कि अण्णा कितने दिन दिल्ली में टिकेंगे।

घरेलू मैदान यानी महाराष्ट्र में भी अण्णा के लिए अब बहुत कुछ बदल गया है। उनके गांव रालेगन सिद्धी में कभी अण्णा की तूती बोलती थी, अब विरोध की आवाज़ें हैं। उनके स्वयंसेवक घट रहे हैं।

कांग्रेस के राज में अण्णा से मिलने कभी पड़ोसी ज़िले अहमदनगर से मंत्री बाबा साहेब थोरात अक्सर आते थे। उनकी मौजूदगी अण्णा को ताकत देती थी। प्रशासन को संदेश साफ था कि अण्णा के उठाए मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई हो। तब अण्णा के साथ सीधी लड़ाई कांग्रेस की राज्य सरकार ने कभी नहीं की। लेकिन अब न तो कांग्रेस की सरकार है और न ही बाबा साहेब थोरात मंत्री और न वो प्रशासन, जो अण्णा के कहे को तुरंत मान ले।

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