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This Article is From Oct 03, 2016

विश्लेषण : भारतीय क्रिकेट का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है कोलकाता टेस्ट

Shailesh Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    October 03, 2016 17:59 IST
    • Published On October 03, 2016 17:59 IST
    • Last Updated On October 03, 2016 17:59 IST
जिस वक्त सौरव गांगुली बता रहे थे कि कोलकाता की पिच टर्निंग ट्रैक नहीं होगी, दो तरह की सोच सामने आ रही थी. पहला, कहीं सौरव की यह कोई ट्रिक तो नहीं? ऐसी ट्रिक वो कप्तान के तौर पर आजमाते रहे हैं. लेकिन वो जिन तर्कों के साथ बता रहे थे, ऐसा अंदेशा कम ही था. तब दूसरा हिस्सा आता है. अगर पिच सूखी और उस तरह टर्निंग नहीं होगी, जैसी भारत में दिखती रही है, तो टीम इंडिया का रुख क्या होगा? दरअसल, यह रुख ही भारतीय क्रिकेट का भविष्य तय करने वाला साबित होने वाला था.

पिच का टर्निंग पॉइंट
अनिल कुंबले यकीनन अजित वाडेकर नहीं हैं, जिन्होंने कोच के तौर पर तय किया था कि हम अपने घर में ‘अखाड़ा’ पिचों पर खेलेंगे. वाडेकर का तर्क था कि हम दूसरों के घर में नहीं जीतते, तो कम से कम अपने घर में तो जीतें. इसमें कुछ गलत भी नहीं. वो दौर चलता रहा. सौरव गांगुली ने अपने घर में ज्यादा बदलाव तो नहीं किया, लेकिन तय किया कि हम बाहर भी जीतें. महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी से अगर किसी को एक सबसे बड़ी शिकायत होगी, तो वो यही कि टर्निंग पिच की चाह में विदेश में बेहतर प्रदर्शन पर फोकस कम हुआ. उस दौर में प्रदर्शन बिगड़ा.

कोच अनिल कुंबले और कप्तान विराट कोहली इसे कितना बदलते हैं, यह जानने के लिए अलग पिच पर उनका ‘अप्रोच’ देखना जरूरी था. यकीनन पिच अलग होने पर रुख अलग रहा, जो भारतीय क्रिकेट के लिए टर्निंग पॉइंट हो सकता है. गांगुली की कप्तानी और कुंबले की सोच ने ही 21वीं सदी के पहले दशक में भारत को विदेश में कामयाबी दिलाई थी. अब गांगुली सीएबी अध्यक्ष हैं, उन्होंने इस तरह की पिच मुहैया करवाई, उसमें कोच कुंबले की सोच मिलकर टर्निंग पॉइंट साबित हो सकती है.

मुश्किल हालात से वापसी
भारत ने दोनों पारियों में मुश्किल हालात से वापसी की. पहली पारी में स्कोर 46 पर तीन था, जब चेतेश्वर पुजारा और और अजिंक्य रहाणे का पारियां मैच में भारत को मजबूती से लेकर आईं. निचले क्रम के बल्लेबाजों ने तय करवाया कि स्कोर 316 तक पहुंचे, जो इस सतह पर यकीनन अच्छा स्कोर था. दूसरी पारी में भी भारत का स्कोर एक वक्त छह विकेटपर 106 था. यहां से रोहित शर्मा और ऋद्धिमान साहा ने कमाल का जुझारू अंदाज दिखाया. कमजोर हालात से वापसी से हमेशा टीम को उस मैच में ही नहीं, आगे के लिए भी भरोसा और हौसला मिलता है. भारत ने 263 रन बनाए और न्यूजीलैंड के सामने टारगेट रखा 376 रन का.

न्यूजीलैंड का अंदाज
मेहमान टीम ने इस टेस्ट में जो अंदाज दिखाया, वो भी दरअसल टर्निंग पॉइंट जैसा है. लग रहा था कि न्यूजीलैंड टीम जुझारू है, ऐसी पिच पर बेहतर दिख सकती है. कानपुर के नतीजे को पीछे छोड़ने के लिए कोलकाता बेस्ट जगह थी. लेकिन उन्होंने पहली पारी में ही मैच का नतीजा तय कर दिया. इस टेस्ट में उनके लिए बल्लेबाजी का वो बेस्ट समय था, जो उन्होंने खोया. सिर्फ 204 पर टीम सिमट गई. ऐसी पिच पर विपक्षी को 112 रन की बढ़त देना अपने लिए वापसी के मौके बंद कर लेने जैसा है.

पहली पारी में अगर नंबर नौ बल्लेबाज टॉप स्कोरर हो, तो बल्लेबाजी की हालत समझी जा सकती है. वैसे भी न्यूजीलैंड टीम ने भारतीय सरजमीं पर महज दो मैच जीते हैं. 1969 और 1988 में. ऐसा लगा कि वो हार की मानसिकता से बाहर नहीं आए हैं. वैसे भी टीम में ऐसे कम ही खिलाड़ी हैं, जिन्होंने भारत में इस सीरीज से पहले टेस्ट खेले हों, उनमें भी कप्तान केन विलियम्सन का बाहर होना टीम के लिए बड़ा झटका था.

शमी-भुवी की गेंदबाजी
जब पता था कि कोलकाता पिच स्पिन के लिए उस तरह मददगार नहीं होगी, तब स्विंग और रफ्तार ने काम किया. शमी और भुवनेश्वर ने पहली पारी में आठ और मैच में 12 विकेट झटके. उन्होंने तय किया कि विपक्षी समझ जाएं.. जहां अश्विन-जडेजा नहीं हैं वहां शमी और भुवी तो हैं.

खासतौर पर पहली पारी में भुवी की स्विंग ने बहुत कुछ तय किया. विपक्षी को संदेश दिया कि सिर्फ स्पिन में ही नहीं, रफ्तार में भी टीम इंडिया उनसे बेहतर है. इसमें जोड़ना जरूरी है कि उनका इस्तेमाल करने में विराट कोहली कप्तान के तौर पर शानदार रहे हैं. सिर्फ जीत की मानसिकता तय थी, बाकी पूरे मैच में जरूरत के हिसाब से उन्होंने अपनी मानसिकता बनाई. गेंदबाजों का इस्तेमाल बेहतरीन रहा.

साहा के दो अर्धशतक
जबसे महेंद्र सिंह धोनी टेस्ट से रिटायर हुए, यह बड़ा सवाल था कि अब बल्लेबाजी में उनके जैसा भरोसा लेकर कौन आएगा. भले ही धोनी को टेस्ट के मुकाबले वनडे में बेहतर बल्लेबाज माना जाता रहा है, लेकिन वो हमेशा एक भरोसा लेकर आते थे. ऋद्धिमान साहा की दोनों पारियां उस लिहाज से टर्निंग पॉइंट रहीं. इस मैच में तो रही हीं, भविष्य के लिए भी टीम बैलेंस के लिए साहा बड़ा रोल निभा सकते हैं. साहा ने पहली पारी में 54 और दूसरी में 58 रन बनाए. दोनों बार जब वो आए, टीम मुश्किल में थी. दोनों बार वो आउट नहीं हुए.

न्यूजीलैंड ने दूसरी पारी में कुछ समय जरूर संघर्ष किया. लेकिन दूसरी पारी शुरू होने तक मैच का नतीजा लगभग तय हो गया था. 197 पर न्यूजीलैंड की दूसरी पारी खत्म हुई और भारत ने 178 रन से मैच जीता. इस हार के साथ सीरीज भारत के नाम आ गई. टीम इंडिया नंबर वन हो गई. लेकिन इससे ज्यादा अहम यह है कि अलग तरह की पिच पर अलग तरह के रुख के साथ टीम ने मैच जीता. यह टीम इंडिया के भविष्य के लिए अच्छा है.

शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं...

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