असहिष्णुता पर अवार्ड लौटाना एकदम सही है... इस पर निरंतर संवाद और अपनी चिंता जाहिर करना भी उतना ही ज़रूरी है, लेकिन देश छोड़ने की बात समझ से परे है, क्योंकि ऐसा करके हम उनका अपमान करते हैं, जिनकी हैसियत विदेश क्या, देश में एक जगह से दूसरी जगह जाकर बसने तक की नहीं है... इससे आप अपने को उन करोड़ों लोगों से अलग कर लेते हैं, जो मदद के लिए आपकी ओर देखते हैं...
देश में असहिष्णुता बढ़ी है, इससे इनकार नहीं, लेकिन उनके लिए, जो आपकी खातिर कुछ भी करने को बेताब हैं, जीना तो जीना और अगर मरना भी पड़े, तो उनका साथ कैसे छोड़ा जा सकता है...
हम देश में उनके लिए नहीं रहते, जिनसे असहमत या डरे होते हैं, उनके लिए रहते हैं, जिनसे प्यार करते हैं... इसलिए आमिर हम तुम्हारे साथ हैं, लेकिन देश छोड़कर नहीं जा सकते... असहिष्णुता चाहे जितनी बढ़ जाए, लेकिन हम तुम्हें भी जाने की सलाह नहीं दे सकते, क्योंकि तुम और तुम्हारे जैसे 'असहमत' लोग चले गए तो हम सबकी, खासकर उनकी बात कौन करेगा, जो इस असहिष्णुता का शिकार हो रहे हैं... मगर उनकी कोई आवाज़ नहीं है, जैसी तुम्हारी है... तुम्हें असहिष्णुता पर दुःख है, हमें भी है, लेकिन तुम्हारी आवाज़ की वैल्यू है, तभी तो अरुण जेटली से लेकर राहुल गांधी तक तुम्हारे बयान के बाद सक्रिय हो गए... सरकार भरोसा और असहमति जताने में जुट गई...
इसलिए तमाम ख़बरों और असहिष्णुता के बाद भी मैं और तुम्हारे सभी प्रशंसक चाहते हैं कि तुम किरण राव की जगह उनकी आवाज सुनो, जो तुम्हारे साथ तब से हैं, जब किरण का तुमने नाम भी नहीं सुना होगा...
उम्मीद है, तुम्हारे पासपोर्ट पर नागरिकता के कॉलम में हमेशा भारत ही लिखा रहेगा...
'कयामत' से 'कयामत' तक, तुम्हारा गुमनाम प्रशंसक...
दयाशंकर...
This Article is From Nov 24, 2015
एक 'गुमनाम' प्रशंसक का खुला खत, आमिर खान के नाम, जिसके साथ हम रहना चाहते हैं...
Dayashankar Mishra
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 08, 2015 18:14 pm IST
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Published On नवंबर 24, 2015 13:15 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 08, 2015 18:14 pm IST
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