विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From Jun 20, 2018

नोटबंदी के बाद जो आतंकवाद ख़त्म हो गया था, उसी कारण गठबंधन ख़त्म हो गया

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    June 20, 2018 05:18 IST
    • Published On June 20, 2018 05:18 IST
    • Last Updated On June 20, 2018 05:18 IST
आज कश्मीर के कई बड़े अख़बारों ने पत्रकार शुजात बुख़ारी की हत्या के विरोध में अपने संपादकीय कोने को ख़ाली छोड़ दिया है. ईद की दो दिनों की छुट्टियों के बाद जब अख़बार छप कर आए तो संपादकीय हिस्सा ख़ाली था. ग्रेट कश्मीर, कश्मीर रीडर, कश्मीर आब्ज़र्वर, राइज़िंग कश्मीर के अलावा उर्दू अखबार डेली तमलील इरशाद ने भी संपादकीय ख़ाली छोड़ दिया.

धारा 370 हटाने के नाम पर राजनीति करते रहने वाली बीजेपी इस धारा से मुड़ गई. पीडीपी के साथ तीन साल तक सरकार चलाई. कई चुनौतियां आईं मगर गठबंधन चलता रहा. प्रधानमंत्री की कश्मीर नीति का घोषित रुप नहीं दिखता है. ईंट का जवाब पत्थर से देने की रणनीति को ही अंतिम रणनीति मान ली गई और हालात अब इस मोड़ पर पहुंच गए हैं कि बीजेपी को फिर से मुड़ना पड़ रहा है. मुमकिन है कि अब वह फिर से धारा 370 का जाप करेगी.

आतंकवाद कम नहीं हुआ. आतंकवादी हमले कम नहीं हुए. यह बीजेपी के राम माधव ही कह रहे हैं. क्या यह सिर्फ महबूबा की नाकामी है, फिर तीन साल तक बीजेपी के दस मंत्री सरकार में बैठकर भीतर से क्या देख रहे थे? सेना के जवानों से लेकर अधिकारियों की शहादत सबके सामने हैं.

मेजर गोगोई का किस्सा आपको याद होगा. जीप पर डार को बांध ले आए थे. उस तस्वीर से कितना बवाल मचा. वहीं, मेजर साहब पर कथित रुप से नाबालिक लड़की के साथ धरे जाने का आरोप लगा और उन पर कोर्ट ऑफ इंन्क्वायरी के आदेश हैं.

संकर्षण ठाकुर ने लिखा है कि महबूबा मुफ़्ती मेजर आदित्य कुमार का नाम भी एफआईआर में दर्ज कराना चाहती थीं. उनके सैनिक पिता सुप्रीम कोर्ट चले गए. बीजेपी ने दबाव बढ़ाया तो महबूबा को पीछे हटना पड़ा. इसका मतलब जब बीजेपी चाहती थी तब उसके हिसाब से हो जाता था.

याद कीजिए 2016 के साल में चैनलों में क्या हो रहा था. घाटी से भी आवाज़ आ रही थी कि ये चैनल आग सुलगा रहे हैं. अविश्वास बढ़ा रहे हैं. मगर इनका मकसद साफ था. कश्मीर के बहाने हिन्दी प्रदेशों की राजनीति को सेट किया जाए.

पत्थरबाज़ी की घटना को लेकर चैनलों के ज़रिए खूब तमाशा किया गया. आईएएस टॉपर फैज़ल को भी चैनलों ने घसीट लिया तब उन्होंने लिखा था कि बकवास बंद हो वर्ना वे इस्तीफा दे देंगे. इस साल फरवरी में 11000 पत्थरबाज़ों से मुकदमा वापस ले लिया गया. इस पर कोई हंगामा नहीं हुआ. कहा गया कि युवाओं को मुख्यधारा में वापस लाने के लिए ऐसा किया गया है. इस बीच न जाने कितने लोगों को इन पत्थरबाज़ों का समर्थक बताकर चुप करा दिया गया.

आप इंटरनेट पर सर्च कर देख सकते हैं कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह और राम माधव के बयान हैं कि महबूबा का मुकदमा लेने का फैसला अकेले का नहीं था. गृहमंत्रालय से सलाह मशविरा के बाद लिया गया था. राम माधव बता सकते हैं कि कश्मीर में तब हालात क्या सुधर गए थे जो मुकदमे वापस लिए गए. उसका क्या नतीजा निकला. राम माधव कह रहे हैं कि सीज़फायर का कोई नतीजा नहीं निकला लेकिन हालात तो सीजफायर से पहले भी उतने ही ख़राब थे. तो किस हिसाब से कहा जा रहा है कि सीज़फायर का पालन नहीं हुआ.

कहा जा रहा है कि महबूबा पाकिस्तान से बातचीत की समर्थक थीं. बातचीत की बात या संकेत तो मोदी सरकार भी देती रही. पाकिस्तान महबूबा नहीं मोदी गए थे. हाल ही में राजनाथ सिंह ने सभी पक्षों से बातचीत के लिए वार्ताकार की नियुक्ति की है. क्या वार्ताकार की नियुक्ति में देरी हुई, उससे क्या निकलना था और इसका अंजाम क्या किसी बातचीत की मेज़ पर पहुंचना था?

कश्मीर की राजनीति की एक और धुरी है जिसे बीजेपी थामे रहती है. कश्मीरी पंडितों की राजनीति. इस पर आप दि वायर में छपे लेख को पढ़ सकते हैं. कश्मीरी पंडितों के बीच इस लेख को लेकर अलग-अलग राय है. सहमति में और असहमति में. इसे लिखा है आमिर लोन और सुहैल लोन ने.

कश्मीरी पंडितों की वापसी की राजनीति बीजेपी ने ही खुलकर की है मगर केंद्र में दो दो सरकार चलाने के बाद भी वह इस मामले में आगे नहीं बढ़ पाई. न अटल जी के समय न मोदी जी के समय. मैं कश्मीर मामले का जानकार नहीं हूं. आप खुद ही इस लेख को पढ़ें और सोचें. कश्मीरी पंडितों का नाम लेने वाली बीजेपी की जब पहली बार राज्य में सरकार बनी तब क्या हुआ, क्या किया, वही बता सकती है.

इंटरनेट सर्च कर रहा था. प्रधानमंत्री दर्जन बार कश्मीर जा चुके हैं. चुनावी रैलियों में भी और योजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन के लिए. वे जब भी गए योजनाओं और विकास पर बात करते रहे जैसे कश्मीर की समस्या सड़क और फ्लाईओवर की है. मगर उन्होंने इस समस्या की जटिलता को सौर ऊर्जा के प्लांट और हाईड्रो प्लांट के शिलान्यास तक सीमित कर दिया. उनकी कश्मीर नीति क्या है, कोई नहीं जानता.

अनंतनाग में डेढ़ साल से सांसद नहीं है. चुनाव आयोग वहां चुनाव नहीं करा पा रहा है. अगर आप कश्मीर से नहीं हैं तो इसके बारे में पढ़िए, सोचिए. जुमलों और नारों के आधार पर निर्णय करने से बचिए. हमारे हिस्से में समझ विकसित करना ही है. जो लोग जानते हैं ज़्यादा जानते हैं वे भी तो नहीं सुलझा पाए. जो नहीं जानते हैं उन्होंने इस आग को सुलझाए ज़रूर रखा. कायदे से दोनों तरह के लोग फेल हैं.

यहां से कश्मीर को लेकर अब नैरेटिव बदलेगा. आने वाले चुनावों में नाकामी छिपाने के लिए कश्मीर, आतंक से लड़ाई और हमारे प्रिय जवानों की शहादत का इस्तमाल होगा. अब मीडिया आपको बताएगा कि आतंकवाद से आर- पार की लड़ाई होने वाली है. यह भी देख लीजिए. फिलहाल, प्रधानमंत्री मोदी को मीडिया विजयी भले घोषित कर दे मगर सच्चाई यही है कि वे तीन साल तक कश्मीर को लेकर जिस रास्ते पर भी चले वो फेल हो चुके हैं.

एक एंकर ने कहा कि राज्यपाल के सहारे मोदी की चलेगी और आतंक चलता हो जाएगा. मैं भी चाहता हूं कि आतंक चलता हो जाए मगर एंकर के इस उत्साह से डर लगता है. कहां से लाते हैं वो ऐसा आत्मविश्वास. प्रोपेगैंडा की भी हद होती है. इसीलिए मैं टीवी नहीं देखता. जब भी देखता हूं ऐसी मूर्खताओं वाले जुमले से सदमा लग जाता है. एंकर ने ऐसे एलान कर दिया जैसे मोदी का व्हाट्सएप आया हो.

हिन्दू मुस्लिम राजनीति ही इस देश की सच्चाई है. यही चलेगा. यह चलता रहे इसी के आस-पास मुद्दे सेट किए जाएंगे. आप चाहें किसी भी पाले में होंगे, आप भी सेट हो जाएंगे. मैं कश्मीर के बारे में खास नहीं जानता. कुछ नहीं जानता. आज ही सब पढ़ा हूं इसलिए कुछ अनुचित लगे तो माफ कीजिए. वैसे मोदी सरकार का दावा था कि नोटबंदी के कारण आतंकवाद की कमर टूट गई है. आज उसी आतंकवाद के कारण गठबंधन की कमर टूट गई. नोटबंदी भारत के साथ किया गया राष्ट्रीय फ्रॉड था. हम कब इसे स्वीकार करेंगे.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
हमारे एजुकेशन सिस्टम में कहां-कहां 'रॉकेट साइंस' लगाने की जरूरत है?
नोटबंदी के बाद जो आतंकवाद ख़त्म हो गया था, उसी कारण गठबंधन ख़त्म हो गया
INDI एलायंस : कोई इधर गिरा, कोई उधर गिरा...
Next Article
INDI एलायंस : कोई इधर गिरा, कोई उधर गिरा...
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com