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This Article is From Jun 22, 2018

कश्मीर पर अपने नेताओं के बयानों से घिर गई कांग्रेस

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 22, 2018 19:38 pm IST
    • Published On जून 22, 2018 19:38 pm IST
    • Last Updated On जून 22, 2018 19:38 pm IST
कांग्रेसी नेताओं के आत्मघाती बयानों का सिलसिला जारी है. हिंदू आतंकवाद के बाद अब बारी है जम्मू-कश्मीर की जिसे लेकर कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने बयान दे डाले. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज़ के बयानों से कांग्रेस घिर गई है. अब पार्टी को सफाई देने पर मजबूर होना पड़ रहा है.

राज्य में पीडीपी के साथ तीन साल तक सत्ता की मलाई खाने के बाद अब राष्ट्रवाद के रास्ते पर निकली बीजेपी के लिए इन नेताओं के ये बयान एक सुनहरे मौके के तौर पर आए हैं जो उसके एजेंडे को आगे ले जाने में मददगार साबित हो सकते हैं. इसीलिए बीजेपी इन्हें लेकर आक्रामक हो गई है.

दरअसल, बीजेपी के पीडीपी से रिश्ता तोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद ने एक चैनल से कहा कि बीजेपी जिस तरह से ऑल आउट ऑपरेशन की बात कर रही है उससे लगता है जैसे वह एक नरसंहार की तैयारी कर रही है. उनके मुताबिक सेना की कार्रवाई में आतंकवादी कम और आम नागरिक ज्यादा मारे गए हैं. उन्होंने कहा कि "वे (सुरक्षा बल) चार आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं और बीस नागरिक मारे जाते हैं. उनकी कार्रवाई आतंकवादियों के खिलाफ कम और आम लोगों के खिलाफ ज्यादा है. मिसाल के तौर पर उन्होंने बताया कि पुलवामा में 13 नागरिक मारे गए जबकि एक ही आतंकवादी मारा गया."

यह हो सकता है कि आजाद कश्मीर घाटी में पार्टी की जड़ों को मजबूत करने की नीयत से यह बयान दे रहे हों. लेकिन क्या उनके बयान में दम है? एक नजर आंकड़ों पर डाल लेते हैं- यूपीए के वक्त 2010 से लेकर 2014 तक 136 नागरिक मारे गए जबकि मारे गए आतंकवादियों की संख्या 603 थी.एनडीए के वक्त 2014 से लेकर इस साल मई तक 150 आम नागरिक मारे गए जबकि 546 आतंकवादी ढेर कर दिए गए.

यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में अचानक तेजी आई. कई बार ऐसा हुआ है जब आतंकवादी विरोधी कार्रवाई के समय पत्थरबाजों ने पथराव कर कार्रवाई रोकने की कोशिश की. नागरिकों की मौत के पीछे यह भी एक बड़ी वजह बताई जाती है.

उधर, पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के रहनुमाओं ने आजाद के बयान को हाथों हाथ ले लिया. लश्कर ए तैयबा ने कहा कि आजाद ने वही कहा जो वो कहते आ रहे हैं. यही कारण है कि आजाद के बयान ने बीजेपी को हमलावर होने का एक बड़ा मौका दे दिया. पार्टी के मुताबिक आजाद का बयान सेना का मनोबल गिराने वाला है.

जाहिर है कांग्रेस के लिए आजाद जैसे वरिष्ठ नेता के बयान से खुद को अलग करना बेहद मुश्किल होगा. आजाद पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकारों में से एक हैं और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में पार्टी के लिए बेहद अहम चेहरा भी. कांग्रेस के आधिकारिक बयान में यह पसोपेश नजर भी आया.

जैसे कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आने के लिए आजाद का बयान ही काफी नहीं था. पार्टी सैफुद्दीन सोज के बयान से भी दिक्कत में आ गई. दरअसल, सोज़ की एक किताब 'कश्मीर ग्लिमपसेज ऑफ हिस्ट्री एंड स्टोरी ऑफ स्ट्रगल' आने वाली है. उसमें वो लिखते हैं कि अगर मौका मिला तो कश्मीरी आजाद होना चाहेंगे. सोज़ यहीं नहीं रुके. वे कहते हैं कि दस साल पहले पाकिस्तान के तानाशाह जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी यही बात कही थी. जाहिर है कांग्रेस के लिए एक के बाद एक आए ये बयान किसी सिरदर्द से कम नहीं. हालांकि कांग्रेस ने अपने को इनसे अलग करने में देरी नहीं की.

उधर, रोजगार के वादे और कृषि संकट को लेकर घिरी बीजेपी को लगता है कि जम्मू-कश्मीर के बहाने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वापसी का एक शानदार मौका है. यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने सीधे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा है. जेटली ने ब्लॉग में लिखा है कि कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक तौर पर जिहादी आतंकवाद और माओवादियों का विरोध करती रही है. लेकिन राहुल गांधी के मन में इनके लिए सहानुभूति नजर आती है.
उनको जेएनयू और हैदराबाद में आपत्तिजनक नारेबाजी करने वालों के साथ जाने का भी कोई अफसोस नहीं दिखता है.

तो क्या मुद्दों की तलाश में बैठी बीजेपी को कांग्रेस के इन दो नेताओं ने मुद्दे थमा दिए हैं. क्या कांग्रेस को इन बयानों से हुए नुकसान का अंदाजा है? क्या कांग्रेस इस नुकसान की भरपाई कर पाएगी? जाहिर है कांग्रेस बीजेपी दोनों ही पार्टियों के मिशन 2019 के लिए इन सवालों के जवाब बेहद अहम रहेंगे.


(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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