लोकसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण का मतदान खत्म होते ही बीजेपी ने भी अपनी चुनावी रणनीति का दूसरा चरण शुरू कर दिया है. यह वह चरण है जिसमें बीजेपी अपने तरकश में मौजूद हर तीर का इस्तेमाल कर रही है. इसे हिंदुत्व 2.0 का नाम दिया गया है. यानी मोदी-शाह का वह हिंदुत्व जो वाजपेयी-आडवाणी के हिंदुत्व से बिल्कुल अलग है. तब मंदिर मंडल का दौर था तो इस दौर में मंदिर और मंडल को मिलाकर हिंदुत्व का नया रूप तैयार किया गया है. यह आक्रामक हिंदुत्व है जो खुलकर ध्रुवीकरण करता है.
इसमें बम धमाकों के आरोप में जेल काट चुकी और जमानत पर बाहर साध्वी को टिकट देने में भी गुरेज नहीं है.वो इसे धर्म युद्ध बताती हैं. इसमें विकास का छौंक है. बालाकोट और उड़ी के बाद हुए सर्जिकल और एयर स्ट्राइक का जिक्र करते हुए राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा का तड़का है.
विपक्ष पर अब भी तुष्टिकरण का आरोप है और वंशवाद के खिलाफ जंग छेड़ने की आव्हान है. उस पर टुकड़े-टुकड़े गैंग की नुमाइंदगी करने का आरोप चस्पा कर दिया जाता है. विपक्ष को पाकिस्तान परस्त और उस पर देश का दुश्मन होने का आरोप भी चस्पा कर दिया जाता है.
इस हिंदुत्व में आर्थिक तरक्की का ऐसा मॉडल है जो समाज के उन तबकों को साथ लेने की कोशिश करता है जो अब तक बीजेपी से दूर रहे और दूसरी पार्टियों के वोट बैंक के रूप में काम करते रहे. उग्र हिंदुत्व का यह स्वरूप किसी भी तरह से क्षमाप्रार्थी नहीं दिखता. उसे आलोचनाओं की परवाह नहीं. देश के ताने-बाने और सांप्रदायिक सौहार्द के बिगड़ने के आरोप से बेपरवाह है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाई जाती भारत की असहिष्णु छवि से जरा भी फिक्रमंद नहीं.
यह हिंदुत्व का वह रूप है जो मोदी-शाह की चुनावी मशीनरी से तैयार उस बीजेपी की नुमाइंदगी करता दिख रहा है जो चुनाव लड़ने के लिए चौबीस घंटे सातों दिन तैयार दिखती है. मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से दिग्विजय सिंह के खिलाफ खड़ा करना इसी हिंदुत्व की निशानी है. यह आरएसएस का फैसला है. जिस पर मोदी-शाह की मुहर है. यह उस कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश है जो बीजेपी के आक्रामक हिंदुत्व के आगे पहले ही खुद को बेबस पा रही है.
कांग्रेस का हिंदुत्व नर्म हिंदुत्व कहा जा रहा है जिसमें टीवी कैमरों के सामने मंदिरों के चक्कर लगाना और नामांकन भरने से पहले हवन करना जरूरी है. कांग्रेस की बेबसी का यह भी नमूना है कि साध्वी के प्रतिद्वंद्वी दिग्विजय सिंह जब कैमरे के सामने आते हैं तो ललाट पर तिलक लगा कर नर्मदा का जयकारा करते हैं.
साध्वी की उम्मीदवारी पर कांग्रेस अपने प्रवक्ताओं को टीवी डिबेट में भेजने से मना कर देती है. कांग्रेस प्रवक्ता कहते हैं कि ये ध्रुवीकरण की कोशिश है. उसके सहयोगी जरूर सोशल मीडिया के जरिए बीजेपी के इस फैसले पर आक्रामक होते हैं. उमर अब्दुल्ला ट्वीट करते हैं.
बीजेपी ने अपने उम्मीदवार से कानून व्यवस्था का मखौल बनाया है. एक ऐसा शख्स जिस पर आतंकवाद का आरोप है और मुकदमा चल रहा है साथ ही स्वास्थ्य आधार पर जमानत पर है वह गर्मी में चुनाव लड़ने के लिए सेहतमंद है. हिंदुत्व का शासन है.
इधर, इन आलोचनाओं से बेपरवाह बीजेपी ने अपने प्रचार अभियान का भी दूसरा चरण शुरू कर दिया है. काम रुके ना, देश झुके ना का नारा भी फिर एक बार मोदी सरकार के नारे में मिला दिया गया है. कोशिश है कि राष्ट्रवाद और विकास दोनों मुद्दे साथ-साथ चलते रहें. पर सवाल है कि कट्टर हिंदुत्व पर चलना बीजेपी की मजबूरी है या रणनीति? बीजेपी के इस नए दांव का कांग्रेस के पास क्या है जवाब?
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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