लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की एक और झांकी जम्मू-कश्मीर में देखने को मिल सकती है. एक-दूसरे के कट्टर दुश्मनों के बीजेपी के खिलाफ साथ आने का जो सिलसिला उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ वह अब जम्मू-कश्मीर पहुंचता दिख रहा है. जो बात कल तक सोची नहीं जा सकती थी, आज उस पर चर्चा शुरू हो गई है. वो है राज्य की राजनीति में एक-दूसरे के कट्टर विरोधी नेशनल कान्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती के साथ आने की बात. राज्य में राज्यपाल शासन अगले महीने समाप्त हो रहा है. इससे पहले सरकार बनने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. पीडीपी नेता अल्ताफ बुखारी ने बातचीत की कमान संभाली है. वे उमर अब्दुल्ला से मिल लिए हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस पीडीपी और एनसी साथ आएंगी.
माना जा रहा है कि इस गठबंधन की अगुवाई पीडीपी करेगी. लेकिन खुद महबूबा मुफ्ती शायद मुख्यमंत्री न बनें. इसके लिए अल्ताफ बुखारी का नाम लिया जा रहा है. वे कल राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं. उधर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कहा है कि सरकार बनाने को लेकर बातचीत चल रही है. अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि नेशनल कान्फ्रेंस का क्या रुख होगा. माना जा रहा है कि नेशनल कान्फ्रेंस पीडीपी कांग्रेस गठबंधन को बाहर से समर्थन दे सकती है.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में संख्या का गणित इस गठबंधन के पक्ष में है. वहां मनोनीत विधायकों को मिलाकर कुल 89 सदस्य हैं. यानी बहुमत का आंकड़ा 45 है. पीडीपी के पास 29, कांग्रेस के 12 और नेशनल कान्फ्रेंस के 15 विधायकों को मिलाकर आंकड़ा 56 हो जाता है. तीन निर्दलीय और सीपीआई का एक विधायक भी इनके साथ जा सकता है. दूसरी तरफ बीजेपी के पास 26 विधायक हैं और पीपुल्स कान्फ्रेंस के दो विधायक भी उनके साथ हैं. इन्हें मिलाकर आंकड़ा 28 तक ही पहुंचता है. बीजेपी की कोशिश पीपुल्स कान्फ्रेंस के सज्जाद लोन को मुख्यमंत्री बनवाने की है. लेकिन बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने लिए उसे 17 और विधायक चाहिए जो जाहिर है कि पीडीपी और कांग्रेस में टूट के बिना मुमकिन नहीं है. पीडीपी के वरिष्ठ नेता मुजफ्फर बेग खुलकर सज्जाद लोन के समर्थन में आ चुके हैं.
उधर, बीजेपी अभी खामोश है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि सरकार बनाने की यह कवायद सिर्फ दिखावे के लिए है ताकि अपनी-अपनी पार्टियों को टूटने से बचाया जा सके. बीजेपी सूत्रों का दावा है कि पीडीपी और कांग्रेस के कई विधायक पाला बदलने को तैयार हैं. उधर, खुद सज्जाद लोन विदेश में हैं. इस बीच खबर है कि राज्य के प्रमुख सचिव दिल्ली आ रहे हैं और वे यहां केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेंगे. महागठबंधन की संभावित सरकार को लेकर यह एतराज भी किया जा रहा है कि इसमें जम्मू की नुमाइंदगी नहीं होगी और ऐसे में इसका गठन ठीक संदेश नहीं देगा.
बहरहाल, यहां यह कहा जा रहा है कि इन दलों की पहली प्राथमिकता क्षेत्रीय संतुलन बनाने के बजाए हर हाल में बीजेपी को बाहर रखना है. यह भी याद दिलाया जा रहा है कि 2014 में चुनाव के बाद भी नेशनल कान्फ्रेंस ने बीजेपी को रोकने के लिए पीडीपी को बाहर से समर्थन देने की पेशकश की थी. तो सवाल यही है कि क्या जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता खत्म होगी? क्या जम्मू की नुमाइंदगी के बगैर सरकार बनाना ठीक होगा? और क्या केंद्र महागठबंधन की सरकार बनने देगा?
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From Nov 21, 2018
बीजेपी का नया सिरदर्द, 2019 से पहले कश्मीर में महागठबंधन
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 21, 2018 21:37 pm IST
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Published On नवंबर 21, 2018 20:08 pm IST
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Last Updated On नवंबर 21, 2018 21:37 pm IST
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