सोचिए अगर इस आम चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिले. किसी गठबंधन को भी न मिले. त्रिशंकु संसद की हालत में क्या होगा? यह एक ऐसा सवाल है जो बार-बार पूछा जा रहा है. इसका एक जवाब यह भी है कि ऐसे हालात में राष्ट्रपति सबसे बड़ी पार्टी या फिर चुनाव पूर्व सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं. ऐसा पहले भी हुआ है. हम यह बात इसलिए उठा रहे हैं कि चुनाव नजदीक आते ही बीजेपी ने न सिर्फ अपना कुनबा बढ़ाना शुरू कर दिया है बल्कि उन पुराने सहयोगियों को भी मनाने की कवायद शुरू कर दी है जो उससे नाराज हैं. इसके पीछे न सिर्फ लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की करने की उम्मीद है, बल्कि चुनाव के बाद की रणनीति भी है जिसमें बीजेपी अपने एनडीए को सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन के रूप पेश करने की कोशिश में है. इसी सिलसिले में कल बीजेपी ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ अपने गठबंधन को अंतिम रूप दिया. लोकसभा में 25 सीटों पर बीजेपी और 23 सीटों पर शिवसेना लड़ेगी. विधानसभा चुनाव में सीटें आधी-आधी होंगी.
आज बीजेपी ने तमिलनाडु में भी सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया है. इसमें एआईएडीएमके 25, पीएमके सात, बीजेपी 5 सीटों पर लड़ेगी. बाकी सीटें डीएमडीके, पीटी और एनआर कांग्रेस को दी जाएंगी. विधानसभा की 21 सीटों के उपचुनाव पर बीजेपी एआईएडीएमके की मदद करेगी. इधर, उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी ने अपने नाराज सहयोगियों को मनाने की कवायद शुरू कर दी है.
लंबे समय से नाराज चल रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के साथ दिल्ली आए और अमित शाह से मिले. अपना दल की अनुप्रिया पटेल से भी बीजेपी नेतृत्व की बातचीत होगी. पंजाब में अकाली दल को मना लिया गया है और वहां बीजेपी तीन और अकाली दल दस सीटों के पुराने फॉर्मूले के हिसाब से ही चुनाव लड़ेंगे. बिहार में सीटों का बंटवारा हो चुका है. एनडीए अपनी ताकत तीन मार्च को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान की रैली में दिखाएगा. वहां सभी घटक दलों के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर मौजूद रहेंगे. यह विपक्ष के महागठबंधन के जवाब में बीजेपी का महागठबंधन है.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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