एक तरफ मॉब लिचिंग और विचारधारा के आधार पर हत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ नफरत फैलाने वाले बयान भी लगातार बढ़ रहे हैं. ये बयान सांसदों-विधायकों और प्रवक्ताओं की ओर से दिए जाते हैं. राजनीतिक पार्टियां इनसे किनारा कर लेती हैं मगर समाज को बांटने वाले और हिंसा के लिए उकसाने वाले ये बयान अपना असर छोड़ जाते हैं.
सबसे पहले बात करते हैं कर्नाटक बीजेपी के विजयपुर से विधायक बासवन गौड़ा पाटिल की. उन्होंने करगिल विजय दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि अगर वे गृहमंत्री होते तो बुद्धिजीवियों को गोली मारने का आदेश दे देते. उन्होंने उदारवादियों और बुद्धिजीवियों को राष्ट्रदोही करार दिया. बासवन गौड़ा के मुताबिक बुद्धिजीवी देश की सारी सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिसके लिए जनता टैक्स देती है और उसके बाद भारतीय सेना के खिलाफ ही नारेबाजी करती है. उन्होंने यह भी कहा कि देश को सबसे ज्यादा बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्षों से ही ख़तरा है.बासवन गौड़ा इससे पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं, जब उन्होंने पार्षदों से मुस्लिमों की मदद न करने की अपील की थी.
यह उस कर्नाटक के नेता का बयान है जिस राज्य में पत्रकार गौरी लंकेश की सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी जाती है. राज्य पुलिस के मुताबिक उनकी हत्या में हिंदुत्ववादी ताकतों का हाथ है. सिर्फ कर्नाटक ही नहीं, देश के कई राज्यों में बुद्धिजीवियों और उदारवादियों पर हमले हुए हैं. नफरत फैलाने के बयानों का सिलसिला उत्तर प्रदेश में भी जारी है. अंबेडकरनगर से बीजेपी सांसद हरिओम पांडे ने कहा कि अगर मुसलमानों की आबादी पर काबू नहीं पाया गया तो पाकिस्तान की तरह एक नया देश भारत में आकार ले लेगा. विवादास्पद बयान देते रहने वाले बीजेपी विधायक सुरिंदर सिंह भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने कहा कि हिंदुओं को पांच-पांच बच्चे पैदा करने चाहिएं.
ऐसे बयान देने वालों में कांग्रेस के कई नेता भी हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर कह चुके हैं कि अगर 2019 में बीजेपी फिर जीती तो भारत 'हिंदू पाकिस्तान' बन जाएगा. वे मॉब लिचिंग की घटनाओं को लेकर हिंदू तालिबान की बात भी कर चुके हैं. मणिशंकर अय्यर ने गुजरात चुनावों के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को नीच कहा था और कांग्रेस से निलंबित कर दिए गए थे. दिग्वजिय सिंह भी गाहे-बगाहे बयानों से विवाद खड़े करते हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव त्यागी ने हाल ही में एक टीवी डिबेट में एंकर के लिए बेहद अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था. कांग्रेस आलाकमान के कहने पर उन्होंने माफी मांगी.
एनडीटीवी ने नफरत फैलाने वाले बयानों का विश्लेषण किया तो पता चला कि ऐसे बयान देने वाले अधिकांश जनप्रतिनिधि और बड़े नेता हैं. 2014 से अब तक नफरत फैलाने वाले 130 बयान आए हैं. यह यूपीए-2 के मुकाबले 520 फीसदी ज्यादा हैं. ऐसे बयान देने वालों में बीजेपी के नेता सबसे आगे हैं. 91 फीसदी बयान बीजेपी नेताओं के हैं. 2014 से अब तक आए ऐसे 130 में से 118 बयान बीजेपी नेताओं के हैं. बीजेपी आलाकमान भी कई बार अपने सासंदों और विधायकों को टोक चुका है. एक बार तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बाकायदा उन सब सांसदों को फटकार लगाई थी जो भड़काऊ भाषणों और बयानों से पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर चुके हैं. पीएम नरेंद्र मोदी भी कई बार टोक चुके हैं. उन्होंने कहा था कि कैमरे देखते ही प्रवचन देकर मीडिया को मसाला न दें. इसके बावजूद बीजेपी नेताओं की बयानबाजी का सिलसिला लगातार जारी है.
उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक हफ्ते के भीतर ही दूसरी बार पार्टी नेताओं को बयानबाजी से बाज आने की चेतावनी दी है. उन्होंने नेताओं को लक्ष्मण रेखा की याद दिलाई है और कहा है कि जो इसे लांघेगा उसके खिलाफ कार्रवाई से पार्टी नहीं हिचकेगी. तो ऐसा क्यों है कि आलाकमान की चेतावनी के बावजूद नेता भड़काऊ बयान देने से बाज़ नहीं आ रहे? और नफरत फैलाने वाले नेताओं के खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए? जाहिर है जब तक पार्टियों की ओर से कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती, इस तरह के बयानों का सिलसिला थमने वाला नहीं है.
This Article is From Jul 27, 2018
नेता भड़काऊ बयान देने से बाज क्यों नहीं आ रहे?
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 27, 2018 19:41 pm IST
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Published On जुलाई 27, 2018 19:41 pm IST
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Last Updated On जुलाई 27, 2018 19:41 pm IST
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