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This Article is From Jul 17, 2018

पीएम की महत्वाकांक्षा पूरी करने की दिशा में मायावती बढ़ा रही हैं ठोस कदम

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 17, 2018 20:22 pm IST
    • Published On जुलाई 17, 2018 20:22 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 17, 2018 20:22 pm IST
2019 में विपक्ष के महागठबंधन में प्रधानमंत्री का एक और ताकतवर दावेदार सामने आया है. वह हैं बीएसपी प्रमुख मायावती. लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं के पहले सम्मेलन में कल लखनऊ में नवनियुक्त राष्ट्रीय कॉआर्डिनेटर वीर सिंह और जय प्रकाश सिंह ने कहा कि अब बहनजी के प्रधानमंत्री बनने का समय आ गया है. इन नेताओं ने कहा कि कर्नाटक में कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवाने के बाद मायावती ताकतवर नेता के रूप में उभरी हैं. वे अकेली दबंग नेता हैं जो मोदी के विजय रथ को रोक सकती हैं. जयप्रकाश सिंह तो एक कदम आगे चले गए. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी राजनीति में कभी कामयाब नहीं होंगे. उन्होंने व्यक्तिगत टिप्पणी करते हुए कहा कि राहुल गांधी अपने पिता की तरह नहीं, बल्कि मां सोनिया गांधी की तरह दिखते हैं जो कि विदेशी हैं. इसीलिए वे कभी भी पीएम नहीं बन पाएंगे.

हालांकि उनकी यह टिप्पणी मायावती को नागवार गुजरी. उन्होंने आज सुबह ही जयप्रकाश सिंह को राष्ट्रीय कॉआर्डिनेटर और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दोनों पदों से हटा दिया. उन्होंने कहा कि विरोधी दलों के सर्वोच्च राष्ट्रीय नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी बीएसपी की संस्कृति के खिलाफ है. उन्होंने यह भी कहा कि यूपी समेत देश के दूसरे राज्यों में गठबंधन के बारे में सिवाए पार्टी हाइकमान के कोई और न बोले.

यह दिलचस्प है कि मायावती जयप्रकाश सिंह के उस बयान पर चुप हैं, जिसमें वो उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार बता रहे हैं. मायावती की पीएम बनने की महत्वाकांक्षा कोई छुपी बात नहीं है. 2008 में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कहा था कि अगर दलित की बेटी देश के सबसे बड़े और सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती है तो वही दलित की बेटी प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकती. यह बात अलग है कि अगले लोकसभा चुनाव यानी 2009 में उनकी पार्टी 20 सीटें ही जीत सकी, जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली. लेकिन अब हालात बदले हैं. सपा-बसपा-कांग्रेस-आरएलडी के महागठबंधन की चर्चा है. इन पार्टियों के साथ आने से बीजेपी गोरखपुर-फूलपुर-कैराना के तीन महत्वपूर्ण लोक सभा उपचुनाव हार चुकी है, लेकिन सीटों का बंटवारा कैसे होगा, इस पर अब भी सस्पेंस है. वैसे अखिलेश यादव कह चुके हैं कि मोदी को हटाने के लिए वे बीएसपी को बड़ी भूमिका देने के लिए तैयार हैं. लेकिन मायावती की नज़रें यूपी के बाहर भी हैं. वे जानती हैं कि प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अधिक से अधिक दलों का साथ चाहिए. कर्नाटक में जनता दल सेक्यूलर ने उनके लिए रास्ता खोला. अब इसी को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में दोहराना चाहती हैं.

उधर, कांग्रेस इन तीनों राज्यो में बीजेपी को हराने के लिए बेताब है, लेकिन मायावती का कहना है कि अगर समझौता करना है तो सभी राज्यों में सीटों के बंटवारे का हो. वे यह भी कह चुकी हैं कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबंधन होगा. कांग्रेस छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तो बीएसपी के साथ जाना चाहती है, लेकिन राजस्थान में फिलहाल उसका मन अकेले लड़ने का है. इस बीच, मायावती अजित जोगी से मिल लीं. इससे कांग्रेस में बेचैनी है क्योंकि छत्तीसगढ़ में बीजेपी कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर न के बराबर है. बीजेपी विरोधी वोट बंटने से फायदा बीजेपी को ही होगा.

छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 2013 में कांग्रेस से .75 फीसदी और 2008 में 1.7 फीसदी वोट ही ज्यादा मिले थे. जबकि बीएसपी को 2013 में 4.27 और 2008 में 6.11 फीसदी वोट मिले थे. यह गणित बताता है कि कैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए बीएसपी को साथ लेना फायदेमंद होगा, जबकि मध्य प्रदेश में बीएसपी के साथ आने से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी. 2013 में बीएसपी ने चार सीटें जीती थीं और 6.29 फीसदी वोट लिए थे. 2008 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को करीब नौ फीसदी वोट मिले थे. 2013 में कांग्रेस को बीजेपी से 8 फीसदी और 2008 में पांच फीसदी कम वोट मिले थे. दो और दो चार का गणित लगाएं तो साफ है कि बसपा और कांग्रेस के साथ आने से बीजेपी का मध्य प्रदेश का मजबूत किला ढह सकता है, लेकिन मायावती यह जानती हैं. इसीलिए वे राजस्थान की बात भी कर रही हैं और सम्मानजनक सीटों की भी.

बात घूम फिर कर यूपी पर ही आ जाती है जहां केवल दो सीटें जीती कांग्रेस सपा-बसपा से कितनी सीटें ले पाएगी और यहीं से 2019 का वही सवाल वापस आ जाता है कि महागठबंधन का नेता कौन होगा, क्योंकि वो चाहे मायावती हों या राहुल, यह इसी पर निर्भर करेगा कि किसे कितनी सीटें मिलती हैं. 

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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