इंदिरा की हिटलर से तुलना के पीछे क्या है सियासत ?

तैंतालीस साल पहले रात का स्याह अंधेरा लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोत गया था. अपने भविष्य को लेकर आशंकित इंदिरा गांधी ने 1947 की आजादी के बाद पहली बार नागरिकों की आजादी छीनने का काम किया.

इंदिरा की हिटलर से तुलना के पीछे क्या है सियासत ?

तैंतालीस साल पहले रात का स्याह अंधेरा लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोत गया था. अपने भविष्य को लेकर आशंकित इंदिरा गांधी ने 1947 की आजादी के बाद पहली बार नागरिकों की आजादी छीनने का काम किया. सभी देशवासियों के मौलिक अधिकार सस्पेंड कर दिए गए. विपक्ष के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. प्रेस पर अकुंश लगा दिया गया. दिल्ली की फ्लीट स्ट्रीट कहे जाने वाले बहादुरशाह जफर मार्ग पर अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई, ताकि अगले दिन अखबार न निकल सके. अगले दिन हर अखबार के दफ्तर में एक सेंसर अफसर बैठा दिया गया जिसका काम हर खबर की पड़ताल करना था कि उसमें इंदिरा गांधी या सरकार के खिलाफ कुछ न लिखा हो. इंदिरा गांधी ने यह कदम खुद को मजबूत करने के लिए उठाया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ चुनाव याचिका में फैसला देते हुए उन्हें अयोग्य करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर स्टे नहीं दिया. इससे पहले गुजरात में पहली बार कांग्रेस की हार हुई. महंगाई आसमान छू रही थी. छात्रों के आंदोलन ने भीषण रूप ले लिया था. 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान पर जयप्रकाश नारायण की ऐतिहासिक रैली ने इंदिरा गांधी की कुर्सी को बुरी तरह से हिला दिया था. इंदिरा के करीबी सिद्धार्थ शंकर रे ने उन्हें भरोसा दिला दिया था कि जिस तरह 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान बाहरी आपातकाल लगाया गया वैसे ही फिर से अंदरूनी आपातकाल लगाने का समय आ गया. वरिष्ठ बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में आरोप लगाया है कि इंदिरा गांधी का आपातकाल जर्मनी में हिटलर की तानाशाही और नाजी जर्मनी से प्रेरित था. 

उन्होंने लिखा है कि कैसे हिटलर और इंदिरा गांधी दोनों ने देश पर ख़तरे का ज़िक्र करते हुए तानाशाही थोपी और इसके लिए संविधान रद्द नहीं किया, बल्कि उसी का इस्तेमाल किया. दोनों ने विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कराया और दोनों ने प्रेस सेंसरशिप लागू की. जेटली ने लिखा है कि इंदिरा इस मायने में आगे निकल गईं कि उन्होंने अपनी तानाशाही को वंशवाद में बदला जो हिटलर ने नहीं किया था. यहां तक की संसद की मियाद पांच साल से बढ़ा कर सात साल कर दी. जर्मनी में एक नाजी नेता ने कहा कि जर्मनी में अब एक ही नेता का शासन है और वह शासन है फ्यूरर का. भारत में देवकांत बरुआ ने कहा 'इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा.'

जर्मनी में खुफिया पुलिस गेस्टापो की कार्रवाई न्यायिक जांच से बाहर कर दी गई और भारत में नागरिकों को जीने और स्वतंत्रता का अधिकार देने वाले अनुच्छेद 21 को निलंबित कर दिया गया. हिटलर ने 25 सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रमों का एलान किया तो इंदिरा गांधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रमों का. उनके बेटे संजय गांधी ने इसमें पांच और जोड़ दिए. जो फिल्मी कलाकार साथ नहीं आए उन पर पाबंदी लगा दी गई. आकाशवाणी पर किशोर कुमार के गाने बजने बंद हो गए. देश भर में बड़े पैमाने पर मकानें और दुकानें तोड़ी गईं. संजय गांधी जनसंख्या नियंत्रण चाहते थे इसलिए जबरन नसबंदी कराई गई. जब गांवों में सरकारी जीप घुसती थी तो मर्द खेतों में छुप जाते थे.

जेटली लिखते हैं किसी ने तब कहा था कि 'दाद देता हूं मैं मर्द-ए-हिंदुस्तान की, सर कटा सकते हैं लेकिन नस कटा सकते नहीं.' तो यह तो हुई बात बीजेपी की जिसके नेता ज़ोर-शोर से हर साल आपातकाल की बरसी मनाते हैं. वे आपातकाल के भुक्तभोगी रहे. उन्होंने जेल में 19 महीने बिताए और अब वे मानते हैं कि आज की पीढ़ी को आपातकाल के बारे में बताना जरूरी है. इसलिए प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मंत्री और उपराष्ट्रपति से लेकर कई केंद्रीय मंत्री लेखों, कार्यक्रमों आदि के माध्यम से आपातकाल के बारे में जनजागरण कर रहे हैं. इरादा कांग्रेस को और खासतौर से गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा करना भी है और उन विपक्षी नेताओं को इंदिरा गांधी के आपातकाल के बारे में याद दिलाना है जो गाहे-बगाहे पिछले चार साल से कहते आ रहे हैं कि देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आपातकाल जैसे हालात हो गए हैं. ये विपक्षी नेता और सोशल मीडिया पर कई लोग इंदिरा से मोदी की तुलना करते हैं. वे उन हालातों की भी तुलना करते हैं जिनके चलते 75 में आपातकाल लगाया गया था.

इंदिरा ने उम्रदराज नेताओं को किनारे कर पार्टी पर अधिपत्य स्थापित किया और मोदी ने अमित शाह के साथ मिलकर बीजेपी पर. जैसे इंदिरा ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण और महाराजाओं का प्रिवीपर्स खत्म कर गरीबों का दिल जीता और इधर मोदी ने नोटबंदी और कई सरकारी योजनाओं के माध्यम से बीजेपी के लिए गरीबों-किसानों और पिछड़ों का वोट बैंक तैयार किया. इंदिरा गांधी ने न्यायपालिका में दखल दिया और मनमाने ढंग से जजों की नियुक्ति की. मोदी सरकार पर भी संवैधानिक संस्थाओं और न्यायपालिका के कामकाज में दखल के आरोप लगाए जाते हैं. रिटायर हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने सरकार पर न्यायपालिका के काम में दखल का आरोप लगाया. चुनाव आयोग में सलाहकार रहे एसके महेदीरत्ता ने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों की अलग-अलग घोषणा करने में उनकी सलाह नहीं ली गई, लेकिन बीजेपी इन्हें खारिज करती आई है. पार्टी नेता कहते हैं कि वे आपातकाल के भुक्तभोगी रहे हैं और देश में दोबारा ऐसे हालत कभी नहीं बनने देंगे.


(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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