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अखाड़ा फिर से : क्लिकबेट के बिना कंटेंट से जीत लिया दिल

Himanshu Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 03, 2025 18:50 pm IST
    • Published On मई 03, 2025 18:49 pm IST
    • Last Updated On मई 03, 2025 18:50 pm IST
अखाड़ा फिर से : क्लिकबेट के बिना कंटेंट से जीत लिया दिल

संवादों की धार, सामाजिक सरोकार और मजबूत किरदारों वाली वेब सीरीज़ 'अखाड़ा फिर से' स्टेज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक साफ़-सुथरी हवा है. हालांकि क्लाइमेक्स के बाद का प्लॉट पुराने फॉर्मूले पर चलता है और अंत की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाता. फिर भी, यह निर्देशक आशु छाबड़ा और संदीप गोयत के करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित होगी.

स्टेज एप पर आई 'अखाड़ा फिर से' उन गिनी-चुनी वेब सीरीज में से है जो साबित करती है कि "क्लिकबेट" के बिना भी दर्शकों का दिल जीता जा सकता है. ऐसे कंटेंट की वजह से ही भारत के गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा भी इस एप को प्रमोट कर रहे हैं.

आशु छाबड़ा नाम अब जाना जाएगा

साल 2018 में 'कस्तूरी' शॉर्ट फिल्म से चर्चा में आए वेब सीरीज के निर्देशक आशु छाबड़ा ने 'अखाड़ा फिर से' में अपने काम से बड़ा प्रभावित किया है. कर्ण को जब होश आता है तो उसके और टेम्पो चालक के बीच एक दूसरे को जानने वाला दृश्य दिल छू लेता है. मानवीय संवेदनाओं को आशु छाबड़ा ने जिस तरह से स्क्रीन पर दिखाया है, वह काबिलेतारीफ है. 
इंस्पेक्टर गोवर्धन और पूनम के बीच का रिश्ता आशु ने जिस तरह से बुना है वह एक सधा हुआ निर्देशक ही कर सकता था, पुलिस स्टेशन में जब दोनों करीब बैठे होते हैं तो इंस्पेक्टर का अपनी जगह से उठ इसकी बानगी है. ऐसे ही पूनम और  कर्ण के बीच भी कई बार बातचीत होते एक दूरी ही रखी गई है. 

निर्देशक ने हरियाणा के घरों में महिलाओं का चूल्हे में रोटी बनाते दिखाया तो वह अब महिलाओं की स्थिति में आ रहे बदलावों को भी दर्शकों के सामने रख देते हैं, ऐसा करते उन्होंने वेब सीरीज में एक महिला सब इंस्पेक्टर पूनम को जगह दी है और यह किरदार सिर्फ मोम की गुड़िया नहीं है, पूनम वेब सीरीज में अहम निर्णय लेते भी दिखती है.

दीपा और जुगनी का किरदार ऐसा है जो महिलाओं का वह रूप है, जिसमें वह समाज की दबी हुई है. दीपा एक नेता के साथ संघर्ष करती दिखती है तो जुगनी जीवन के संघर्षों को समाधान खोजने के लिए कुश्ती लड़ती है. यह दोनों किरदार सब इंस्पेक्टर बन चुकी पूनम से सीख लेते दिखते हैं.

अहम है स्क्रिप्ट राइटिंग

वेब सीरीज की स्क्रिप्ट राइटिंग सही लिखी गई है, नेता का अंत हो या इंस्पेक्टर गोवर्धन की मौत से जुड़ी सभी कड़ियां, इन सब को जोड़ते हुए कहीं कुछ भी छूटा हुआ नहीं लगता. स्क्रिप्ट में वेब सीरीज के लगभग हर किरदार पर बराबर काम किया गया है और जिसका जितना बनता था, स्क्रीन पर उसे उतनी जगह दी गई है. स्क्रिप्ट के बाद शायद किसी कलाकार को वेब सीरीज मेकरों से शिकायत हो और शायद जब ऐसा होता है तब कोई भी फ़िल्म या वेब सीरीज बेहतर बनकर ही दर्शकों के सामने आती है. वेब सीरीज के क्लाइमेक्स के बाद पूनम का किरदार सबसे अहम बन जाता है.

कहानी का अंत निराश करता है

वेब सीरीज में कई कहानियां समानांतर चलती हैं- जुगनी, दीपा, कर्ण और पूनम की अपनी-अपनी जिंदगियां दिखाई गई हैं. अंत तक आते-आते ये सभी कहानियां एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं. कर्ण का किरदार महाभारत के कर्ण से प्रेरित है.
वेब सीरीज की कहानी अंत तक कई ट्विस्ट लेती है, सभी किरदारों का परिचय कराने के साथ, कर्ण के किरदार को चौथे एपिसोड 'दानवीर दानव' में जिस तरह दिखाया गया है, उससे कहानी और मजबूत होती है. क्लाइमेक्स दर्शकों को चौंकाता है, लेकिन अंत को और बेहतर किया जा सकता था, क्योंकि कहानी का अंत दर्शकों को आसानी से अनुमान हो जाता है.

सिनेमाटोग्राफी और संवाद ऐसे कि याद रह जाएं

वेब सीरीज़ की सिनेमाटोग्राफी प्रभावित करती है, इसके चौथे भाग 'दानवीर दानव' में कर्ण और पूनम नदी के किनारे खड़े होते हैं, यह दृश्य शानदार दिखता है. गांव के खेतों और नदियों को खूबसूरती के साथ स्क्रीन पर दिखाया है. सवादों के जरिए वेब सीरीज दर्शकों में अपना असर छोड़ती है.

एपिसोड तीन 'राज और राजनीति' में कुश्ती के भरपूर टिप्स देते कोच कहते हैं 'खेलते समय सामने वाले की आंख में आंख डाल कर चलो ताकि तमने पता चल सके कि सामने वाली के मन में के चल रा से.'

'शिक्षा शेरनी का दूध है.' जैसे संवाद से निर्देशक महिला सशक्तिकरण के लिए सशक्त संदेश देते हैं. 'पुलिस की नौकरी में इंसान न घर का न घाट का' संवाद पुलिस विभाग की सच्चाई दिखाता है.

अपनी मां से 'सुखी रोटी दे दो मैं दूध के साथ खा लूंगी' संवाद कहती पूनम उस घरेलू भारतीय लड़की का प्रतिनिधित्व किया है जो नौकरी करने के बाद भी अपने परिवार से जुड़ी रहती हैं.

संदीप गोयत लंबी रेस के घोड़े हैं

वेब सीरीज में बड़ी संवेदनशीलता के साथ 'गरीबी की बेड़ी सिर्फ मेहनत और सच्चाई ते टूट सके है' कहने वाले कर्ण बने संदीप गोयत फ़िल्म इंडस्ट्री में लंबी रेस का घोड़ा बन सकते हैं. उनमें एक सफल एक्शन हीरो बनने की सारी क्वॉलिटी मौजूद हैं. संदीप साल 2015 में आई फ़िल्म 'गुड्डू रंगीला' में भी दिखाई दिए थे, उनके काम को 2023 में आई शॉर्ट फिल्म 'अहसास' में काफी सराहा गया था और उसी साल 'अखाड़ा' के लिए उन्हें 'हरियाणा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव' में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवार्ड मिला.

सब इंस्पेक्टर पूनम का किरदार निभाने वाली मेघा शर्मा ने अपने अभिनय से बेहद प्रभावित किया है. प्रेमिका और पुलिस अधिकारी जैसे दो विपरीत किरदारों के साथ वह न्याय करती हैं. 

इंस्पेक्टर गोर्वधन का किरदार निभाने वाले मनीष शर्मा को शुरू में तो 'पुष्पा' के फवाद फासिल की तरह कड़क दिखाया गया है लेकिन 'अखाड़ा फिर से' का यह पुष्पा बाद में फायर नही फ्लॉवर ही निकलता है. गोवर्धन के किरदार को विस्तार दिया गया होता, तो मनीष शर्मा का अभिनय दर्शकों को दीवाना बना सकता था.

(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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