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This Article is From May 19, 2017

कुलभूषण जाधव मामले में इस जीत के बाद...

Chandra Mohan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 19, 2017 18:54 pm IST
    • Published On मई 19, 2017 18:54 pm IST
    • Last Updated On मई 19, 2017 18:54 pm IST
कुलभूषण जाधव के मामले में भारत को अंतरराष्‍ट्रीय अदालत (आईसीजे) में बड़ी जीत मिली है. विशेषतौर पर वरिष्ठ वकील हरीश साल्‍वे ने हमारा केस बहुत बढिय़ा ढंग से प्रस्तुत किया है. लेकिन अभी लंबी लड़ाई आगे है क्योंकि सामने पाकिस्तान की सरकार ही नहीं पाकिस्तान की सेना भी है जो पहले ही हमारे दो सैनिकों के सर कलम कर संदेश दे चुकी है कि वह भारत के साथ रिश्ते बेहतर नहीं होने देंगे.

आईसीजे के फैसले से पाकिस्तान सदमे में है. पूछा जा रहा है कि वहां करने क्या गए थे? दिलचस्प है कि जिस पाकिस्तान की सरकार के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज अपनी ही संसद में कह चुके हैं कि जाधव के खिलाफ ठोस सबूत नहीं है, उसी पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी.

पाकिस्तान की गुंडा सेना का यह रवैया पुराना है. 1999 में वाजपेयी लाहौर गए और परवेज मुशर्रफ ने कारगिल करवा दिया. नरेंद्र मोदी लाहौर गए तो पठानकोट एयरबेस पर हमला हो गया. सद्भावना का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि भारत के हर प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की शरारतों की उपेक्षा कर दोस्ती का प्रयास किया है. लाहौर के गवर्नर हाऊस में अपने बढ़ि‍या भाषण में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि ''आप इतिहास बदल सकते हो, भूगोल नहीं. दोस्त बदल सकते हो, पड़ोसी नहीं.

लेकिन हमारी बड़ी समस्या पड़ोस की सेना है जिसने अब कुलभूषण जाधव को पकड़ कर अपने देशवासियों पर यह प्रभाव जमाने की कोशिश की है कि जैसे उन्होंने इस एक व्यक्ति को पकड़ कर पाकिस्तान को अस्थिर करने की साजिश नाकाम कर दी.

अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी जो वाशिंगटन में रहते हैं, ने लिखा है, ''जाधव को सजा दिलवा पाकिस्तान की व्यवस्था पाकिस्तानियों को यह जतलाने की कोशिश कर रही है कि अगर सेना या आईएसआई न हो तो वह भारत की दया पर आश्रित रह जाएंगे.

कुलभूषण जाधव को ईरान से पकड़ कर बलूचिस्तान में दिखाया गया है कि वह जासूसी कर रहे थे. अगर जासूसी की बात मान भी ली जाए तो भी जासूस को फांसी की सजा आजकल कौन देता है, वह भी सैनिक अदालत में? हर दूतावास में जासूस भरे हुए हैं. दिल्ली स्थित पाकिस्तान के दूतावास में भी होंगे. पकडऩे पर इन्हें वापस देश भेज दिया जाता है, फांसी की सजा नहीं दी जाती. लेकिन पाकिस्तान की सेना संबंध खराब करना चाहती है.

अंतरराष्‍ट्रीय बरादरी के सामने तो पाकिस्तान उसी वक्त हार गया था जब जाधव को सैनिक अदालत में सजा दी गई. आजकल के जमाने में सैनिक अदालत? 16 बार आवेदन के बावजूद हमें जाधव को मिलने नहीं दिया गया. मोटी बुद्धि वाले जनरलों को अपने घमंड में यह अंदाजा नहीं था कि चुस्त भारत सरकार मामला अंतरराष्‍ट्रीय अदालत में ले जाएगी जहां अदालत कहेगी कि वियना कनवेंशन की धारा 36 के नीचे कुलभूषण जाधव का अधिकार बनता था कि उन्हें काउंसलर एक्‍सेस दिया जाए.

ठीक है अंतरराष्‍ट्रीय अदालत का अंतिम निर्णय आना बाकी है लेकिन अदालत ने जिस तिरस्कार के साथ पाकिस्तानी वकीलों के तर्क रद्द किए हैं उससे पता चलता है कि पाकिस्तान को अब और आशा नहीं करनी चाहिए. अदालत के निर्णय ने पाकिस्तान को जकड़ दिया है.

लेकिन इसके कई उल्‍टे परिणाम निकल सकते हैं. पाक के जरनैलों के लिए यह बहुत असुखद स्थिति है क्योंकि उनकी सैनिक अदालत के फैसले पर रोक लग गई है. अपनी प्रतिष्ठा पर लगे धब्बे को धोने के लिए वह नई साजिश रच सकते हैं. पाकिस्तान अपने वकीलों को तो बदल ही रहा है लेकिन उनकी सरकार तथा सेना में तल्‍खी बढ़ जाएगी.

नवाज शरीफ पर बहुत विश्वास तो नहीं किया जा सकता, पर उनकी सरकार फिर भी भारत के साथ बेहतर संबंध चाहती है. समझ है कि दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था से स्थाई वैर फटेहाल पाकिस्तान के हित में नहीं है. पर सेना का नजरिया और है. भारत विरोध उनके डीएनए में है. वह टकराव जारी रखना चाहेंगे नहीं तो कुलभूषण जाधव को लेकर वह रिश्तों का भविष्य दांव पर न लगाते.

नवाज शरीफ की सरकार को समझ है कि अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान का स्तर बहुत बढ़ि‍या नहीं है. वहां जेहादियों को मिल रहे समर्थन पर चीन भी कई बार शिकायत कर चुका है. दोनों यह भी जानते हैं कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का भविष्य बहुत कुछ भारत के सहयोग पर निर्भर करता है. अगले साल अपने आम चुनाव से पहले नवाज शरीफ देश को दिखाना चाहेंगे कि उनमें भारत के साथ संबंध बेहतर करने की क्षमता है लेकिन पनामा पेपर्स स्कैंडल के कारण वह कमजोर हैं. और सेना उनकी चलने नहीं दे रही. नागरिक कानून पर सेना का कानून भारी है.

कुलभूषण जाधव मामले में यह हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है. पाक जरनैलों को अंतरराष्‍ट्रीय संवेदनाओं की चिंता नहीं है, वह आर-पार की नीति पर चलते हैं. उनके लिए यह पचाना बहुत मुश्किल होगा कि उनकी सैनिक अदालत के निर्णय पर रोक लगा दी गई. वह तो निकले थे दुनिया को यह बताने की भारत पाकिस्तान की धरती पर आतंकवाद फैला रहा है, उल्‍टा वियना कनवेंशन तथा सैनिक अदालत के निर्णय के चक्कर में भारत ने उन्हें अडंगा दे दिया.

पाकिस्तान तीन दशकों से जेहादी कैंप चला रहा है. दुनिया भर में आतंकी वारदातों में कहीं न कहीं पाकिस्तान का हाथ निकल आता है. अर्थात इस मामले में पाकिस्तान को अंतरराष्‍ट्रीय सहानुभूति मिलने की संभावना नहीं है कि एक अकेला कुलभूषण जाधव इतना पैसा बांट रहा था कि पाकिस्तान में आतंक की बाढ़ आ जानी थी.

लेकिन इस घटनाक्रम से भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने के प्रयासों पर फिर पानी फिर गया है. पहले ही बोल चाल बंद है. वहां जरनैल अपनी प्रतिष्ठा पर लगे जख्म को संभालने में लगे रहेंगे. मीडिया वहां पहले ही उत्तेजित है. इस हालात में नफरत और दूरी बढ़ेगी. चिंता की बात है कि कुलभूषण जाधव का भविष्य पाक जरनैलों के हाथ होगा, वहां की न्याय प्रणाली और सरकार के हाथ में नहीं इसलिए उनके स्वेदश लौटने की जल्द कोई संभावना नहीं लगती. जाधव को फांसी देना अवश्य मुश्किल हो गया है लेकिन तत्काल रिहाई की संभावना नजर नहीं आती. अपने लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए पाक सेना कुछ अप्रत्याशित भी कर सकती है. आईसीजे के निर्णय से पाकिस्तान की सरकार तथा सेना में तनाव बढ़ेगा, इसका बुरा असर भारत-पाक रिश्तों पर पड़ेगा. रिश्तों में सुधार की उम्मीद खत्म हो रही है.


चंद्रमोहन वरिष्ठ पत्रकार, ब्लॉगर और कॉलम लेखक हैं...

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