25 साल बाद फिर याद आया बाबरी विध्वंस का वो मंजर

विवादित स्थल पर मैं सुबह करीब 10:30 पहुंच गई थी. जैसे ही अपनी टीम के साथ मस्जिद की तरफ कतारों में बढ़ रही थी, वहां संघ प्रमुख सुदर्शनजी मिले थे. उनका इंटरव्यू भी किया था.

25 साल बाद फिर याद आया बाबरी विध्वंस का वो मंजर

फाइल फोटो

बाबरी मस्जिद को ढहाए हुए 25 साल हो गए, आप वहां थीं, आपको कुछ लिखना चाहिए. हमारे सहयोगी अमितेश ने मुझसे यह बात कही. मैंने सोचा क्यो कुछ पीड़ा सी होती है उस विध्वंस के बारे में लिखने पर. इतना समय बीत गया, कई अदालतों की दर पर ये मामला पहुंचता रहा या फिर इसलिए कि वो सिहरन याद आती है जिस हिंसा से उसे ढहाया गया. या वो अंतहीन सवाल की राम को उनके घर में जगह क्यों नहीं या फिर वो कि वह तो बस तुलसी, वाल्मीकी के पन्नों भर थे. अभी कुछ दिनों पहले 5 अक्टूबर को लखनऊ गई थी, सीबीआई के समन मिलने पर. इस तारीख से कुछ दिन पहले ऑफिस से फोन आया था सुबह-सुबह कि सीबीआई के लोग पहुंचे हुए हैं, आपके लिए समन है. पहले तो मैं थोड़ा सकपकाई थी. जेहन में अनेकों सवाल थे कि सीबीआई का ये फरमान क्यों आया होगा. मैंने जब पूछा, किसके नाम पर है तो फोन पर दूसरी तरफ से आ रही आवाज ने 1992 में मेरे तब के ऑफिस का पता बताया था Live India Communique, Lodhi Estate. मैडम ये अयोध्या प्रकरण के सिलसिले में है. एकाएक मैं 25 साल पीछे 1992 में पंहुच गई थी. धूल, शोर, उन्माद, हिंसा के बीच वो घंटे याद आ गए थे. एक गहरी सांस निकली थी तब.

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बहरहाल 5 तारीख को मैं आदेश के अनुसार लखनऊ के पुरानी हाईकोर्ट बिल्डिंग पहुंच गई थी जो केसरबाग में है. सीबीआई की विशेष अदालत सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोज सुनवाई कर रही थी. करीब 70 पत्रकारों से प्रोसिक्यूशन अब बयान दर्ज करा रहा था. वहां पहुंचने पर मुझे बताया गया कि 1993 मार्च में सीबीआई के अधिकारियों के सामने जो बयान दिया गया था, वो अब अदालत के समक्ष रखना है. अदालत पहुंचने के कुछ देर बाद सीबीआई के वकील एक-एक कर पहुंचने लगे. उन्होंने अपना परिचय कराया और समझाया कि आज के दिन सिर्फ जज के सामने सिर्फ मेरे से ही पूछताछ की जाएगी. 1992 में जो मैंने बयान दिया था, उसकी कॉपी मेरे सामने रख दी गई. कहा गया कि यही आपको जज के सामने दोहराना है. बड़ा सा कोर्ट रूम था. 7-8 लोग काले कोट में मेरे इर्द गिर्द टेबल पर बैठ गए. मामले से जुड़े सबसे पुराने वकील जिनके पैर में अब चोट है, मुझे मेरा बयान पढ़कर सुनाने लगे, लेकिन मैं असमंजस में पड़ गई. उस बयान को पढ़ा तो लगा कुछ याद ही नहीं था कि 6 दिसम्बर को क्या झेला था. बयान सुनते हुए और फिर खुद पढ़ते हुए उस दिन की यादें फिर से आखों के सामने तैरनी सी लगी.

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विवादित स्थल पर मैं सुबह करीब 10:30 पहुंच गई थी. जैसे ही अपनी टीम के साथ मस्जिद की तरफ कतारों में बढ़ रही थी, वहां संघ प्रमुख सुदर्शनजी मिले थे. उनका इंटरव्यू भी किया था. बयान में ये नहीं था कि क्या बातें की. शायद उस समय संघ प्रमुख को मिलना ही बता देना महत्वपूर्ण रहा होगा. भीड़ में अपनी टीम के साथ आगे महाराष्ट्र से आई उन लड़कियों के नाम भी थे, जिन्होंने मुझे बचाया था. हिंसा भड़कने और मस्जिद को तोड़ने से पहले वीएचपी के अशोक सिंघल ने एक परिक्रमा सी की थी, जिसके बाद बड़ी तादाद में कारसेवक या कहें वो उग्र तत्व मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गए थे और उसे तोड़ना शुरू कर दिया था. फिर वो उन्माद देखने को मिला था जिसने बहुत कुछ ढहा दिया था. उस धूल भरी हिंसा और शोर के बीच मेरी आंखों के सामने मेरी टीम खो गई थी. लाठियों के साथ चीखने की आवाजें भी सुनाई दे रही थीं. इसी कोहराम में कैमरामैन और साउन्ड रिकार्डिस्ट रवि को चोटें आई थीं. रवि का तो पैर तोड़ दिया गया था. उसके कंधे पर लटके रिकॉर्डर में ही तो टेप हुआ करता था, जिसमें काफी कुछ दर्ज हो चुका था. वो सब तोड़ दिया गया था. ये भी साफ हो गया थी की मीडिया निशाने पर थी. इस दौरान ही महाराष्ट्र से आई मार्शल आर्ट्स में ट्रेंड लड़कियों ने मुझे बचाया था. ये वही लड़कियां थीं, जिन्होंने कहा था कि उन्हें क्यों नहीं चढ़ने दिया गया था तोड़फोड़ के लिए, हम इन लड़कों से कौन से कम थे. भावनाओं का वो उबाल हर तरफ देखने को मिल रहा था. टीम को खोजने अस्पताल भी पहुंची थी, लेकिन वहां कोई बिछड़ा साथी नहीं मिला था. बचते-बचाते अयोध्या थाने पहुंची थी. विदेशी पत्रकारों की मदद की हिन्दी में उनकी अर्जी दी. फिर करीब साढ़े तीन बजे कैमरामैन और असिस्टेंट मौर्या मिले थे. रवि का पता अगले दिन लगा था. कुछ पत्रकार उसे सीधे दिल्ली ले गए थे.

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बयान पढ़कर जज साहब का इंतजार किया जा रहा था. इस बीच उस टेप की खोज शुरू हुई, जो मार्च 1993 को सीबीआई को दिल्ली में मेरे बयान के साथ दिया गया था. वो भी बेहद जरूरी सबूत था जो जज के सामने रखना था. आधे घंटे के इंतजार के बाद दो बड़े-बड़े ट्रंक कमरे में आए, जिनमें वो टेप थे. मुझे उनकी तस्दीक भी करनी थी. टेपों के ढेर में उस एक टेप की खोज शुरू हुई, जिस पर मेरे हस्ताक्षर थे. मामले की तरह वकीलों और मेरी भी उम्र हो चुकी है. बेसब्र होकर मैं भी जुट गई टेप को ढूंढने में. उस अंबार में वीएचएस और यूमैटिक दोनों तरह के टेप मौजूद थे. कुछ देर में मैंने वो टेप खोज निकाला. 25 साल पुरानी अपने हाथों से लिखी तारीख और हस्ताक्षर ने मुझे कुछ हैरत तो कुछ अपनत्व में डाल दिया. कैसे सीबीआई ने इतने सालों से इन सबूतों को संभाले रखा. मुझे बताया गया कि बीच में दूरदर्शन के लोगों ने इन्हें क्यूरेट भी किया. सीबीआई के वकीलों ने भी राहत की सांस ली कि सूबत पूरे हो गए.

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फिर शुरू हुआ जज साहब के सामने मेरा बयान दर्ज कराने की प्रक्रिया. इस बीच कमरे में कुछ और वकील भी आ गए थे. बताया गया कि वे बचाव पक्ष के हैं. मैं करीब 15-20 वकीलों से घिरी हुई थी. मेरे ऑफिस से साथ पहुंची वकील मेरे साथ लगातार खड़ी रहीं. बीच में कुछ तीखी बहस भी हुई, जो मैं इस समय नहीं लिख सकती क्योंकि मामला कोर्ट में है, लेकिन ये एहसास हो रहा था कि बाबरी मामले के इतिहास के पन्नों में मेरा एक पन्ना भी दर्ज हो गया. कुछ संतोष भी था कि अपने बयान के साथ विजुयल रिपोर्ट का टेप भी देकर अपना दायित्व पूरा किया. सुबह 10 से दोपहर के 2 बज चुके थे. मुझे कहा गया कि बचाव पक्ष भी बुलाएगा. फिलहाल इंतजार है.

इंतजार बहुत सवालों के जवाबों का भी रहेगा. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जो 5 दिसम्बर को शुरू होनी थी, वह नहीं हो सकी. लंबी बहस के बाद सुनवाई फरवरी तक के लिए टल गई है, लेकिन इसकी आंच गुजरात चुनावों तक पहुंच गई है. कौन मंदिर बनवाना चाहता है? कौन इसका प्रयोग वोट के लिए करना चाहता है? किस कौम का कौन भरोसेमंद है? कौन सी कौम का विश्वास जीता जाए? एक जमीनी विवाद है या हमारी आस्था का सवाल है? जवाब का इंतजार अभी लंबा रहेगा.

VIDEO : बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के 25 साल पूरे
धर्म और राजनीति के मेल में देश में विकास छूटता न रह जाए. हमारे समाज में बिखरा तो बहुत कुछ है, इंतजार अब जुड़ाव का है.

निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं.

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