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This Article is From Mar 30, 2016

नेताओं के अच्छे दिन आ गए!

Nidhi Kulpati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 30, 2016 20:34 pm IST
    • Published On मार्च 30, 2016 20:29 pm IST
    • Last Updated On मार्च 30, 2016 20:34 pm IST
जन के नहीं, लेकिन जन-प्रतिनिधियों के अच्छे दिन आ गए हैं। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना... यहां विधायकों और मंत्रियों की तनख्वाह दोगुनी-चौगुनी हो रही है। महंगाई के इस दौर में इन्हें तो भरपूर राहत मिल रही है। हमारे नेता जिनका निजी खर्चों के अलावा चुनाव क्षेत्र में सामाजिक दायित्व भी होता है, इसलिए तनख्वाह बढ़े तो हो-हल्ला नहीं होना चाहिए!

मध्य प्रदेश में विधायकों और मंत्रियों का वेतन बढ़ गया है। विधायकों को अब 1 लाख 10 हजार रुपये मिलेंगे। मुख्यमंत्री का वेतन 2 लाख रुपये महीना और मंत्रियों का वेतन एक लाख 70 हजार रुपये होगा। तेलंगाना में तो वेतन में 163 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। अब वहां के विधायकों को 95 हजार की जगह ढाई लाख रुपये वेतन मिलेगा। मुख्यमंत्री के वेतन में भी मोटी बढ़ोतरी की गई है। सीएम को अब 2 लाख 44 हजार रुपये की बजाए 4 लाख 21 हजार रुपये वेतन मिलेगा।

आंध्र प्रदेश में भी विधायकों-मंत्रियों का वेतन हर स्तर पर दोगुना हो गया है। पिछले साल दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने विधायकों की बेसिक सैलरी 12,000 से सीधे 50,000 कर दी थी। गाड़ी के लिए रकम 4 लाख से 12 लाख कर दिया गया। कहा गया कि 400 गुणा वेतन बढ़ा लिया गया। दलील यह कि ईमानदारी से काम करना चाहते हैं। हालांकि ये बात और है कि इस पर केंद्र में मामला अटका पड़ा है।

लेकिन सवाल इसलिए उठते हैं जब इतनी बढ़ोतरी के बावजूद कई नेताओं की ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न लगते हैं। इस लोकसभा में 542 सासंदो में से 443 करोड़पति हैं यानी 82 प्रतिशत और आपराधिक मामलों वाले 34 प्रतिशत यानी 542 में से 185 सांसद हैं। सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है ये वो मामूली मुकदमे नहीं होते जो धरना प्रदर्शन पर दाखिल होते हैं, बल्कि वो मामले जिन पर चार्चशीट दाखिल हो चुकी होती है। लोकसभा में भी वेतन बढ़ाने की पेशकश संसदीय समिति कर चुकी है, लेकिन इस पर मुहर लगना बाकी है।

मध्य प्रदेश में विधायकों का वेतन 45-55 प्रतिशत बढ़ गया है। राज्य विधानसभा में करीब 70 प्रतिशत सदस्य करोड़पति हैं, 230 में से 161। आपराधिक मामलों वाले 32 प्रतिशत सदस्य हैं यानी 230 में से 173। यह वो राज्य है, जिस पर 1,17,000 करोड़ का कर्ज है। 2003 में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह की सरकार के समय यह आंकड़ा 3,300 करोड़ का था, लेकिन 2013 तक आते-आते शिवराज सिंह चौहान की सराकर में ये 91,000 करोड़ का हो गया। शिवराज सरकार का दावा है कि उसने राज्य पर लगे 'बीमारू' का तमगा हटा दिया है, जो उसके साथ 1956 से लगा हुआ था। लेकिन अब वो फिर आईसीयू जैसे हालात में पहुंच गया है। 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य बना, तब मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 18,000 रुपये थी, अब 59,000 रुपये है, जबकि छत्तीसगढ़ में 69,000 रुपये है। ये वो राज्य हैं जहां हमारे किसानों की आत्महत्या लगातार खराब बनी हुई है।

एनसीआरबी की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें 2568 किसान महाराष्ट्र के थे। तेलंगाना में 898 किसानों ने और मध्य प्रदेश में 826 किसानों ने खुदकुशी की।

कुछ नेताओं की बेरुखी एक और स्तर पर नजर आती है। जो उनका सामाजिक दायित्व होता है, वो नदारद दिखता है। हाल में गुजरात में राजकोट से सांसद विठ्ठल रदाडिया एक बुजुर्ग को लात मारते नजर आए। वो शख्स अपने लोन से परेशान था।

महाराष्ट्र के सांसद गोपाल शेट्टी ये कहते सुनाई दिए कि आत्महत्या को लेकर किसानों में फैशन सा चल पड़ा है। राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद ने कहा कि अगर कोई खुद को पेड़ से लटका ले तो इसमें सरकार क्या करे।
कर्नाटक में धारवाड़ के एक एमएलए ने डॉक्टर की पिटाई कर दी थी।

फिर वो तस्वीर भी हमारे सामने आती रहती है जब विधानसभाओं में कुर्सियां फेंकी जाती हैं, हाथापाई होती है।
एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमॉक्रेटिक रिफॉर्म के प्रमुख जगदीप छोकर का कहना है कि नेताओं की तनख्वाह में पारदर्शिता लाना बेहद जरूरी है। जिस तरह से आम नागरिक के लिए कॉस्ट टू कम्पनी (सीटीसी) के तहत तनख्वाह बनाई जाती है, ठीक उसी तरह नेताओं के लिए भी कॉस्ट टू कन्ट्री का पैमाना होना चाहिए। सभी भत्ते बंद करने चाहिए भले ही तनख्वाह मोटी हो जाए। ये जब होगा तब होगा, फिलहाल नेताओं के अच्छे दिन आ गए हैं।

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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