...क्योंकि अंडरवर्ल्ड जिंदा रहना जानता है

...क्योंकि अंडरवर्ल्ड जिंदा रहना जानता है

मुंबई के नागपाड़ा में दाऊद के नाम पर एक छोटा सा रेस्त्रां है। कभी माफिया सरगना यहीं बैठकर साज़िशें रचा करता था। अब वो बिक रहा है। सरकार नीलामी करना चाहती है। विज्ञापन निकाल दिया है। खरीदारों की तलाश है। कीमत एक करोड़ से कुछ ज्यादा है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या सरकार दाऊद की जायदाद बेच पाएगी? वो भी उस जगह की प्रापर्टी जहां अब भी दाऊद ख्यालों और कामों में जिंदा है।

दाऊद की इस जायदाद को खरीदने के लिये एक पुराने एडिटर ने भी जोर लगाया है। वो भी नीलामी में हिस्सा लेना चाहते हैं, लेकिन इसके पहले ही उन्हें संदेशे आने लगे हैं। उनके खरीदार बनने पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। बड़ा सवाल है कि एक ऐसी प्रापर्टी के बिक जाने से दाऊद को क्या फर्क पड़ता है, जिसका वो इस्तेमाल ही नहीं कर पाता? तो जवाब है - फर्क पड़ता है इमेज पर। डॉन को हर हाल में अपना रुतबा चाहिये, वो और उसके गुर्गें कैसे सहन करेंगे कि जहां उसका घर हुआ करता था, ठीक उसके पास सरकार अपने दखल से जायदाद बेच दे।

अंडरवर्ल्ड जानता है कि दूसरे मुल्क में रहकर भी कैसे ख्यालों में जिंदा रहा जा सकता है। ये जिंदा रहने का मार्केंटिंग प्लॉन ही है जो दाऊद के 1986 में भागने से लेकर अब तक उसे मिटने नहीं दे रहा। माफिया खौफ बेचता है और ऐसे डॉन से कौन डरेगा जो अपनी जायदाद ही ना बचा सकता हो? पहले भी सरकार ने कोशिश की थी। एक वकील ने लड़-भिड़कर दाऊद की एक जायदाद खरीदने की हिम्मत दिखाई। सरकार ने बेच भी दी, लेकिन उसे आज तक कब्ज़ा नहीं मिला। ऐसे और भी चक्कर होते रहेंगे, क्योंकि माफिया सरकारी सिस्टम का फायदा उठाकर अब तक नीलामी से अपनी प्रोपर्टी बचाता रहा है। वो और वक्त निकालता रहेगा। जताता रहेगा कि उसे हर किस्म से जिंदा रहना आता है।

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